बलि का आशय किसी जीव की हत्या नहीं, बल्कि बुराई का त्याग
हंसडीहा : बलि शब्द से आशय किसी जीव की हत्या करना नहीं बल्कि परोपकार के लिए अपनी प्रिय वस्
हंसडीहा : बलि शब्द से आशय किसी जीव की हत्या करना नहीं बल्कि परोपकार के लिए अपनी प्रिय वस्तु और सुख को त्यागने से है। राजा बलि और भगवान वामन की कथा हमें यही संदेश देती है। यह विचार आचार्य राधा दास महाराज ने हंसडीहा हटिया मैदान में चल रहे सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान महायज्ञ में रविवार को प्रात: कालीन सत्र में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में पशु बलि या अन्य किसी जीव की हत्या भगवान के नाम पर गलत है। दरअसल सर्वस्व का त्याग ही बलि है। वामन भगवान को जब राजा बलि ने अपना तन, मन और धन समर्पित कर दिया तो भगवान प्रसन्न हो गए। आचार्य ने कहा कि देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि का प्रयोग किया जाता है। लेकिन क्या बलि प्रथा हिन्दू धर्म का हिस्सा है। यदि वेद, उपनिषद और गीता की मानें तो नहीं और अन्य धर्मग्रथों की मानें तो हां। भगवती और माता काली के लिए इस संसार में सभी मनुष्य जीव-जंतु उनके बच्चे के समान है ऐसे में कोई माता अपने बच्चे की बलि मांग सकती है क्या। यदि आप हर जीव में ईश्वर को देखेंगे तो आप पर हमेशा ईश्वर की कृपा बनी रहेगी। आचार्य ने कहा कि जीव के कल्याण के लिए राजा परीक्षित का जन्म हुआ और जन-जन तक भागवत कथा का ज्ञान पहुंचाने के लिए शुकदेव का आगमन हुआ। उन्होंने सबसे पहले भागवत कथा राजा परीक्षित को सुनाई थी। रविवार को भागवत कथा के संध्याकालीन सत्र में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का सजीव चित्रण करने के लिए पूरे पंडाल को विशेष रूप से सजाया गया था। साथ ही कथा के अनुसार झांकी के माध्यम से श्रद्धालुओं को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर झूमने पर विवश कर माखन-मिश्री की बरसात भी की गई। कथा के दौरान आयोजन कमेटी के सूरज साह, पंकज जायसवाल, ¨टकू ¨सह, राजेश जायसवाल, अमरेश जायसवाल एवं रविकंचन जायसवाल आदि उपस्थित थे।