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दिन भर शहीद की एक झलक पाने को बेताव थे लोग

दुमका : नक्सली हमले में शहीद हुए जगुआर के सीनियर कमांडर 40 वर्षीय परमानंद चौधरी के पाí

By JagranEdited By: Published: Thu, 28 Jun 2018 06:55 PM (IST)Updated: Thu, 28 Jun 2018 06:55 PM (IST)
दिन भर शहीद की एक झलक पाने को बेताव थे लोग
दिन भर शहीद की एक झलक पाने को बेताव थे लोग

दुमका : नक्सली हमले में शहीद हुए जगुआर के सीनियर कमांडर 40 वर्षीय परमानंद चौधरी के पाíथव शरीर की एक झलक पाने के लिए लोग बेताव थे। मुहल्ले के लोग रात से शव के आने का इंतजार कर रहे थे। भाई के देर से दुमका पहुंचने के कारण दोपहर को होनेवाला अंतिम संस्कार देर शाम को हो सका। गमगीन माहौल में हर किसी ने अपने जवान को अंतिम विदाई दी। पाíथव शरीर पर पुष्प अíपत करनेवालों का तांता लगा रहा।

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बुधवार को शहीद होने की खबर मिलने के बाद परिजन के अलावा मुहल्ले में रहनेवाले परमानंद की एक झलक पाने के लिए दरवाजे पर ही डटे रहे। सुबह चार बजे लोगों को जब पता चला कि शव नगर थाना आ गया है तो बड़ी संख्या में लोग वहां पहुंच गए। यहां से शव को सजी हुए पुलिस से पुलिस लाइन ले जाया गया तो पुलिस लाइन में सन्नाटा छा गया। हर किसी के चेहरे पर जवान के प्रति आस्था साफ झलक रही थी। बस लोग एक झलक पाने के लिए बेताब थे। पुलिस पदाधिकारी के बाद जवानों ने पुष्प अíपत किए तो कई की आंख से आंसू छलक उठे। शव जैसे ही दरवाजे पर पहुंचा तो मुहल्ले के लोग घर पर पहुंच गए और अंतिम दर्शन की होड़ सी लग गई। करीब एक घंटे तक शव घर के आंगन में रखा रहा। इसके बाद शव को अंतिम संस्कार के लिए फिर से पुलिस के वाहन में रख दिया गया। यहां भी लोग आते रहे और अंतिम दर्शन कर जाते रहे। पुष्प अíपत करने का यह सिलसिला तब तक चलता रहा, जब तक पाíथव शरीर घर से निकल नहीं गया।

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पत्नी की मर्जी पर हुआ दुमका में अंतिम संस्कार

सुबह दस बजे ही तय हो गया था कि शव का अंतिम संस्कार कहलगांव के शिव नारायणपुर में किया जाएगा। मृतक की पत्नी के दादा ससुर किसी भी हाल में दुमका में अंतिम संस्कार के लिए तैयार नहीं थे, जबकि परिवार के सभी लोग दुमका में ही कराना चाहते थे। जिला प्रशासन भी ऐसा चाहता था। ससुर के तैयार नहीं होने पर परिवार के लोगों ने पत्नी रूबी चौधरी से बात की तो वे भी दुमका के लिए तैयार हो गई। इस कारण शव यात्रा को पैदल की बजाय पुलिस वाहन से विजयपुर ले जाया गया।

आग देती ही रो पड़ी बेटी

बुधवार से शहीद एक मात्र बेटी दो साल की अíपता को इस बात का अहसास तक नहीं था कि पिता के साथ कुछ हुआ है। वह रोज की तरह हंस बोल रही थी। सुबह शव आने के बाद वह कुछ देर के लिए शांत रही। शाम पांच बजे जैसे ही चाचा अमर नाथ चौधरी भाई को मुखाग्नि देने के लिए उसे लेकर आए तो वह फूट फूटकर रो पड़ी। ऐसा लगा कि उसे इस बात का आभास हो गया कि अब पिता फिर लौटकर नहीं आएंगे। किसी तरह से अंतिम संस्कार की रश्म पूरी होने के बाद उसे वहां से दूर ले जाया गया।

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भाई के इंतजार ने खूब रूलाया

भाई के शहीद होने की खबर मिलने के बाद छत्तीसगढ़ की एक निजी कंपनी में काम करने वाला भाई अमर नाथ घर के लिए रवाना हो गया। दुमका आते आते तीन बज गया। तब तक घर के लोग शव को देखकर रोते रहे। कई महिलाएं तो शव का अंतिम दर्शन करने के बाद खुद को रोक नहीं सकी और जोर जोर से रो पड़ीं।


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