बिना हथकड़ी के दीपक को चौकीदार के भरोसे भेजा था अस्पताल
हंसडीहा गौवंशीय पशु तस्करी का फरार आरोपी दीपक यादव का पता लगाने में हंसडीहा पुलिस गुरुवार तक नाकाम रही। हालांकि मोबाईल लोकेशन के आधार पर पुलिस ने चौबीस घंटे में झारखंड व बिहार के कई इलाकों में दबिश दी लेकिन पुलिस के पहुंचने से पहले ही दीपक एक स्थान से दूसरा स्थान बदलता रहा। पुलिस सूत्रों के अनुसार फरार होने के बाद पुलिस ने अपने खुफिया तंत्र व मोबाईल लोकेशन के आधार पर बिहार के बांका जिले के तारापुर के समीप कहीं छापेमारी की लेकिन पुलिस के पहुंचने से पहले दीपक वहां से निकल चुका था।
हंसडीहा : गौवंशीय पशु तस्करी का फरार आरोपी दीपक यादव का पता लगाने में हंसडीहा पुलिस गुरुवार तक नाकाम रही। हालांकि मोबाईल लोकेशन के आधार पर पुलिस ने चौबीस घंटे में झारखंड व बिहार के कई इलाकों में दबिश दी लेकिन पुलिस के पहुंचने से पहले ही दीपक एक स्थान से दूसरा स्थान बदलता रहा। पुलिस सूत्रों के अनुसार फरार होने के बाद पुलिस ने अपने खुफिया तंत्र व मोबाईल लोकेशन के आधार पर बिहार के बांका जिले के तारापुर के समीप कहीं छापेमारी की लेकिन पुलिस के पहुंचने से पहले दीपक वहां से निकल चुका था। पुलिस सूत्रों ने बताया कि तारापुरवाले जगह में दीपक द्वारा उपयोग की गई लाल चादर व दर्द की दवा के रैपर मिला था। दूसरी तरफ यह बात भी सामने आ रही है कि हंसडीहा पुलिस ने दीपक यादव को दुमका भेजते वक्त सिर्फ दो चौकीदार को देखरेख में लगा दिया जबकि मामूली मारपीट के आरोपी को दुमका ले जाते वक्त यही पुलिस हथकड़ी या कमर में रस्सी बांधकर दुमका ले जाती है ताकि आरोपी फरार नहीं हो सके। दीपक को दुमका से देवघर ले जाते समय भी दो चौकीदार ही साथ में थे। दुमका से देवघर जाने के दौरान दो बोलेरो पर सवार करीब दर्जन भर युवकों ने रास्ते में एंबुलेंस को रोक कर दीपक को अपने साथ ले जाना चाहा लेकिन चौकीदारों के विरोध पर वे लोग अपनी मंशा में कामयाब नहीं हो सके। यही नहीं देवघर के कुंडा स्थित जिस निजी अस्पताल में दीपक यादव को इलाज के लिए भर्ती कराया गया था वहां के चिकित्सकों को भी नहीं पता था कि घायल व्यक्ति तस्करी मामले का आरोपी है। चौकीदारों ने वहां की नर्सो को ही बताया था कि दीपक यादव तस्करी मामले का आरोपी है। सूत्र यह भी बता रहे हैं कि देवघर जाने के दौरान दीपक यादव बता रहा था कि तीन लाख में उसके बॉस ने मामले का डील कर ली और वह जल्द आजाद होगा। बहरहाल पशु तस्करी मामले में पिछले कई वर्षो में बदनाम हंसडीहा पुलिस के हाथ से गिरफ्तार तस्कर का निकल जाना कई सवालों को पैदा कर रहा है। यहां बता दें कि पशु तस्करी में सिर्फ कारोबारी की संलिप्ता नहीं रहती बल्कि रास्ते के सभी बाधाओं को सुरक्षित बनाने के लिए एक रैकेट काम करता है। जिसके तार पुलिस विभाग से भी जुड़े हो सकते हैं। पशु तस्करी के कारोबार में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है। मवेशी को लेकर जानेवाले ट्रक चालकों की तनख्वाह महीने के लाखों में होती है। प्रत्येक ट्रक चालक को रास्ते में खर्च करने के लिए प्रति खेप करीब एक लाख रुपया मिलता है। पुलिस विभाग के अधिकारी ने बताया कि अगर पुलिस इस मामले में पशु तस्करों के नेटवर्क को डिकोड करना चाहती है तो मामले की जांच निष्पक्ष अधिकारियों से कराना होगा।
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थाने की मिली भगत तो नहीं
बताया जाता है कि दीपक की गिरफ्तारी के बाद उसे बचाने के लिए भी कई लोगों ने दौड़ लगानी शुरू कर दी थी। हंसडीहा थाने के करीबी एक व्यक्ति गिरफ्तारी के बाद से उसे भगाने का प्रयास कर रहा था। उस व्यक्ति पर हंसडीहा पुलिस आंख बंद कर भरोसा करती है। पुलिस की लापरवाही इस बात का इशारा करती है कि आरोपित को भगाने के लिए पहले से ही भूमिका तैयार की गई थी।
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