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दुकान बंद कर खुलवाया था पार्टी का चुनावी कार्यालय

बासुकीनाथ जरमुंडी प्रखंड पहले दुमका लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता था। उस वक्त यहां दुमका लोकसभा से आरक्षित एवं सामान्य कोटे के दो सांसद हुआ करते थे। बताया कि दुमका लोकसभा से पहले आरक्षित कोटे से लाल हेंब्रम एवं सामान्य कोटे से प्रभु दयाल हिम्मतसिंहका दोनों ही कांग्रेस से जीते हुए सांसद थे।

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Mar 2019 06:52 PM (IST)Updated: Fri, 22 Mar 2019 06:52 PM (IST)
दुकान बंद कर खुलवाया था पार्टी का चुनावी कार्यालय

बासुकीनाथ: जरमुंडी प्रखंड पहले दुमका लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता था। उस वक्त यहां दुमका लोकसभा से आरक्षित एवं सामान्य कोटे के दो सांसद हुआ करते थे। बताया कि दुमका लोकसभा से पहले आरक्षित कोटे से लाल हेंब्रम एवं सामान्य कोटे से प्रभु दयाल हिम्मतसिंहका दोनों ही कांग्रेस से जीते हुए सांसद थे। पहले जरमुंडी प्रखंड में कांग्रेस का काफी दबदबा हुआ करता था। लोगों में मतदान के प्रति काफी जागरुकता थी। लोग बिना किसी प्रकार के लोभ, लालच के स्वच्छ मन मस्तिष्क से मतदान करने जाते थे। लेकिन अब के समय में लोग लोभ, लालच में ज्यादा फंसे नजर आते हैं। ये कहना है जरमुंडी बाजार स्थित ब्राह्मण टोला निवासी 92 वर्षीय विश्वनाथ पत्रलेख का, जो शुक्रवार को दैनिक जागरण से पहले और अब के चुनाव में आए बदलाव पर अपने विचार साझा कर रहे थे। विश्वनाथ बताते हैं कि उन्होंने 1952 में स्वतंत्र भारत में हुए प्रथम आम चुनाव से लेकर अब तक के सभी चुनाव में मतदान किया है। पुरानी यादों को ताजा करते हुए विश्वनाथ बताते हैं कि पहले प्रत्याशी व उनके कार्यकर्ता समर्थक सादगीपूर्ण तरीके से चुनाव प्रचार करते थे। लेकिन अब चुनाव प्रचार हाइटेक होता जा रहा है। उस वक्त पूरे जरमुंडी प्रखंड के ग्रामीण बासुकीनाथ एवं जरमुंडी वासियों की रुख पर ही किसी प्रत्याशी विशेष को अपना मत दिया करते थे। विश्वनाथ बताते हैं कि पहली बार विधायक बने जगदीश नारायण मंडल की सादगी आज भी उनके दिलों दिमाग में जिदा है। जगदीश नारायण मंडल 1952 में हुए चुनाव में विधायक चुने गए वह काफी सादगी पूर्ण तरीके से जीवन व्यतीत करते थे। जिनके प्रति सहज ही आकर्षण बढ़ता चला गया बाद में वे सांसद भी बने थे। बाद में जरमुंडी विधानसभा क्षेत्र गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में शामिल हो गया। वर्ष 1977 में जगदंबी यादव को जनता पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया। उस वक्त उनसे प्रभावित होकर मैंने जरमुंडी बाजार स्थित अपनी साइकिल दुकान को बंद करके उसे जनता पार्टी के उम्मीदवार जगदंबी यादव का चुनावी कार्यालय बना दिया था। उस चुनाव में उनकी शानदार जीत हुई थी। विश्वनाथ बताते हैं कि उस वक्त जगदंबी यादव के पास चुनाव लड़ने के लिए या अनावश्यक खर्च करने के लिए रुपया नहीं थे। बावजूद जनता ने उन्हें उनकी सादगी, व्यवहार कुशलता को लेकर वह चुनाव जिताया। वर्ष 2004 में कांग्रेस आई से फुरकान अंसारी सांसद चुने गए। जबकि वर्ष 2009 एवं वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी से डॉक्टर निशिकांत दुबे सांसद बने। विश्वनाथ पत्रलेख मुखर होकर कहते हैं कि इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है कि वर्तमान सांसद डॉ. निशिकांत दुबे के कार्यकाल में क्षेत्र में बहुत सारे विकास कार्य हुए हैं। विश्वनाथ कहते हैं उस वक्त मतदान का तरीका काफी अलग था। पहले चुनाव में कम प्रत्याशी होते थे जिसके कारण प्रत्येक प्रत्याशी का एक बॉक्स होता था। जिसमें उनका नाम और चुनाव चिन्ह रहता था। मतदाता पर्ची पर अपने चहेते प्रत्याशी के नाम पर मोहर लगाकर मतदान करते थे। पहले मतगणना की प्रक्रिया दो, तीन दिन से लेकर चार, पांच दिनों तक चला करती थी एवं उस समय रिजल्ट जानने का एक मात्र माध्यम रेडियो एवं अखबार ही हुआ करता था। लेकिन वर्तमान में संचार प्रणाली इतनी डेवलप हो गई है कि मतदान के बाद से ही चुनावी समीक्षा, मतगणना के दिन भी महज कुछ घंटों में ही मतगणना की प्रक्रिया पूरी करके प्रत्याशी की जीत हार, मत प्रतिशत की जानकारी आ जाती है। विश्वनाथ पत्रलेख बताते हैं कि उस वक्त पार्टी के कार्यकर्ता और समर्थक अपने दल के नेता की जीत सुनिश्चित करने के लिए स्वत: तन, मन धन से सहयोग करते थे। जबकि वर्तमान में चुनावी व्यवस्था में अब कार्यकर्ता और समर्थक भी पार्टी व प्रत्याशी की ओर से मिलने वाले सुविधा की आशा जोहते है। विश्वनाथ पत्रलेख बताते हैं कि वह युवावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक चुनाव के दरम्यान अपने मित्र मंडली के साथ अपने चहेते प्रत्याशी के पक्ष में मतदान की अपील करने को लेकर पैदल ही गांव-गांव घूमा करते थे। रात अत्यधिक हो जाने पर किसी भी गांव में ही पार्टी के समर्थक, कार्यकर्ता या किसी परिचित के यहां शरण लेते थे।

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