महंगाई की चपेट में मिट्टी के दीपक, लेकिन मांग बरकरार
हंसडीहा : महंगाई का असर अब मिट्टी के दीयों पर भी साफ नजर आने लगा है लेकिन दीवाली जैसे पर्व पर मिट्टी से बने दीयों की मांग अब भी बरकरार है खास कर अर्द्धशहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में।
हंसडीहा : महंगाई का असर अब मिट्टी के दीयों पर भी साफ नजर आने लगा है लेकिन दीवाली जैसे पर्व पर मिट्टी से बने दीयों की मांग अब भी बरकरार है खास कर अर्द्धशहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में। दीपावली के त्योहार पर सदियों से चले आ रहे मिट्टी के दीपक जलाने की परंपरा आज भी निभाई जा रही है। महंगाई की मार कुम्हार परिवारों के इस पुश्तैनी व्यवासय पर भी पड़ा है लेकिन उतना भी नहीं कि इस पेशे को छोड़ने पर मजबूर हों। हंसडीहा बाजार के मेवालाल पंडित बताते हैं कि अब बाजार में सस्ती और रंग-बिरंगी लाइटों की भरमार भले ही पहले की तुलना में कई गुणा बढ़ी है लेकिन मिट्टी के दीयों का क्रेज आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में बरकरार है। आज भी लोग पूजा-पाठ से लेकर घर के दरवाजे में लगाने के लिए मिट्टी से बने दीयों को ही पसंद करते हैं। मेवालाल का कहना है कि किरासन तेल के दाम में इस साल अचानक वृद्धि होने से मिट्टी की ढीबरी की मांग नहीं के बराबर आ रही है। पहले अपने घर गांव में ही मिट्टी की सहजता से उपलब्ध हो जाती थी लेकिन आज अगले साल के लिए एडवांस में दूसरे जगह से मिट्टी मंगा कर रखना पड़ता है। हंसडीहा में मिट्टी के दीपक एवं अन्य सामान बनाने के व्यवसाय में हंसडीहा के करीब एक दर्जन कुम्हार परिवार इस धंधे से जुडे हुए हैं। लक्ष्मण पंडित बताते हैं कि भले ही शहरों में मिट्टी की जगह इलेक्ट्रानिक दीयों ने उपयोग करने लगे हैं लेकिन एक हकीकत यह भी है कि मिट्टी के दीयों की जगह बिजली के दीए कभी नहीं ले सकते और यही कारण है जो हम जैसे कुम्हार परिवारों को अपने इस पुश्तैनी व्यवसाय से आज भी जोडे़ रखा है। बताया कि दीपावली से लेकर छठ महापर्व तक मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ जाने से हमलोग अच्छा व्यवसाय कर लेते हैं।