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मनमाने ढंग से संचालित हो रहा विद्यालय

दलाही राज्य सरकार शिक्षा को लेकर किसी भी तरह से कोई कसर नहीं छोड़ रही है। इसके लिए विभागीय अधिकारी को समय-समय पर दिशा-निर्देश भी देते रहती है लेकिन सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के ग्राम में शिक्षा की हालत बेहतर होने के बजाय दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है। कहीं विद्यालयों में शिक्षक समय पर नहीं आते तो कहीं विद्यालय में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव के कारण बच्चे विद्यालय छोड़ रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 06:01 PM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 06:01 PM (IST)
मनमाने ढंग से संचालित हो रहा विद्यालय
मनमाने ढंग से संचालित हो रहा विद्यालय

दलाही : राज्य सरकार शिक्षा को लेकर किसी भी तरह से कोई कसर नहीं छोड़ रही है। इसके लिए विभागीय अधिकारी को समय-समय पर दिशा-निर्देश भी देते रहती है, लेकिन सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के ग्राम में शिक्षा की हालत बेहतर होने के बजाय दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है। कहीं विद्यालयों में शिक्षक समय पर नहीं आते तो कहीं विद्यालय में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव के कारण बच्चे विद्यालय छोड़ रहे हैं। यूं कहें तो विद्यालय खिचड़ी खाने का भोजनालय बना हुआ है। अभिभावकों का सरकारी विद्यालयों में बच्चों को भेजना बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करने सा लग रहा है। ऐसा ही एक मामला प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय तुड़का में देखने को मिला जहां बच्चों को कुल नामांकन 53 की संख्या में है। वहीं पढ़ाने के लिए दो शिक्षकों की नियुक्ति हुई है। गुरुवार को विद्यालय में दस बच्चों की उपस्थिति देखी गई। ग्रामीणों ने बताया कि प्रधानाध्यापक सिनत सोरेन विद्यालय केवल नाम के लिए आते हैं। आचार संहिता के कारण अभी विद्यालय में बॉयो मैट्रिक सिस्टम से हाजिरी भी नहीं बन रही है, इसका फायदा उठाकर प्रधानाचार्य उठा रहे हैं। एक अन्य सहयोगी शिक्षक सिगराज हेंब्रम हैं। विद्यालय के छात्रों का कहना है कि शौचालय भी नहीं बना है, शौच के लिए विद्यालय छोड़ 500 मीटर दूर स्थित डोभा जाने को मजबूर हैं। भगवान न करे कल कोई अनहोनी हो जाए। जबकि सरकार की ओर से विद्यालयों में शौचालय सुविधा अनिवार्य की गई है। अब ये बच्चे आखिर क्या स्वच्छता की अलख जगाएंगे जो स्वयं ही खुले में शौच जाते हों।

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क्या कहते हैं सहयोगी शिक्षक

विद्यालय के सहयोगी शिक्षक सिगराज हेंब्रम का कहना है कि शौचालय पूरी तरह से जर्जर हो चुका है। इसलिए बच्चों को बाहर शौच के लिए जाना पड़ता है। प्रधानाचार्य महीने में चार दिन आकर रजिस्टर में हाजिरी भर कर चले जाते हैं। विद्यालय की व्यवस्था पर कभी ध्यान नहीं दिया। मैं अकेला हो जाता हूं।

क्या कहते हैं प्राचार्य

कुछ दिन बीमार था फिर बच्चों को विद्यालय में दाखिला कराने से थोड़ी बहुत नागा हुआ है। सूबे की सरकार शिक्षा को लेकर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन विभाग के अधिकारियों की मॉनिटरिग नहीं होने और इन अध्यापकों की मनमानी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। कुछ दिन पूर्व शिमला में भी इसी प्रकार की शिक्षकों की लापरवाही की खबरें प्रकाशित हुई थी। जिसमें अभी तक कोई सुधार नहीं हुआ है।


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