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World Refugee Day 2021: नदियों से पूछिए इनका पता, मुश्किलें बताएंगी पहचान

गांव के 59 वर्षीय मिलन मंडल ने बताया कि बांग्लादेश के राजखामार जिले में उनकी जमीन-जायदाद थी। बहुसंख्यकों ने अत्याचार किया तो पिता सब छोड़कर बंगाल आ गए। यहां दक्षिण 24 परगना में इच्छामती नदी के किनारे बनगांव में रहे।

By MritunjayEdited By: Published: Sun, 20 Jun 2021 05:46 PM (IST)Updated: Sun, 20 Jun 2021 05:46 PM (IST)
World Refugee Day 2021: नदियों से पूछिए इनका पता, मुश्किलें बताएंगी पहचान
दामोदर नकी किनारे बसे मतुआ समुदाय के लोग ( सांकेतिक फोटो)।

दुर्गापुर [ हृदयानंद गिरि ]। साल 1950 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से ये ङ्क्षहदू परिवार भारत आ गए। वहां इतने अत्याचार हुए कि उसे सोच इनकी रूह कांपती है। वहां पूर्वजों ने दर्द सहा और यहां भी मुश्किलें झेल रहे हैैं। इनका मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड, राशन कार्ड तो बने, मगर स्थायी ठिकाना नहीं हो सका। फिलहाल नदियों के किनारे ही यहां जीवन गुजरा है। मतुआ समाज के ये 40 परिवार बांकुड़ा जिले के मेजिया ब्लाक के सोनाई चंडीपुर गांव में बसे हैैं। जो दामोदर नदी के किनारे है। सरकारी जमीन पर खेती कर ये जीवन यापन कर रहे हैैं।

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बांग्लादेश में बहुसंख्यकों ने अत्याचार किया तो चले आए

गांव के 59 वर्षीय मिलन मंडल ने बताया कि बांग्लादेश के राजखामार जिले में उनकी जमीन-जायदाद थी। बहुसंख्यकों ने अत्याचार किया तो पिता सब छोड़कर बंगाल आ गए। यहां दक्षिण 24 परगना में इच्छामती नदी के किनारे बनगांव में रहे। वहां न जमीन थी न रोजगार, कुछ साल बाद वहां से हटना पड़ा। बांकुड़ा के कुतुलपुर में दामोदर नदी के किनारे आकर डेरा जमाया। सरकारी जमीन पर खेती करने लगे। अक्सर बारिश में घर व फसल बर्बाद हो जाती थी। तब दामोदर नदी के किनारे सोनाई चंडीपुर गांव आए। यहां ऊंचाई के कारण पानी नहीं आता। झोपड़ी बनाकर रहते हैैं। 62 साल के दुलाल मोहानी ने बताया कि फरीदपुर में हमारे पूर्वज रहते थे। वहां बहुसंख्यकों के जुल्म से परेशान होकर भारत आ गए। बनगांव में आय का कोई साधन न होने पर कुतुलपुर व फिर सोनाई चंडीपुर आए। दो साल पहले वोटर कार्ड, राशन कार्ड व मनरेगा का जॉब कार्ड मिला। पक्के आवास, जमीन के पट्टे का आज भी इंतजार है, ताकि बंजारा जीवन से मुक्ति मिल सके।

गांव आने की सड़क कच्ची, अंधेरा भी

सोनाई चंडीपुर गांव की आबादी 250 है। 77 लोगों का नाम पहली बार मतदाता सूची में वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले शामिल हुआ। लोकसभा व विधानसभा चुनाव में एक-एक बार मतदान किया। गांव में पक्की सड़क नहीं है। अर्चना सरकार, आरती राय कहतीं है 22 साल से यहां हंै, अब तक बिजली नहीं आई। पंचायत ने शौचालय बनाया पर कोई स्कूल नहीं है। दुर्गापुर के अंगदपुर स्कूल में बच्चे पढऩे जाते है।

जमीन के पट्टे व आवास की मांग : ऑल इंडिया मतुआ महासंघ के चार जिले के महासचिव आनंद विश्वास कहते हैं कि यहां 21 घरों में शौचालय बनाए गए हैैं। जमीन का पट्टा, सरकारी आवास, बिजली, पानी, सड़क की मांग हम कर रहे है। बांकुड़ा जिला शासक के राधिका अय्यर का कहना है कि गांव की समस्याओं की जानकारी लेकर निदान करेंगे।

गांव के लोगों की समस्याओं की जानकारी है। कोरोना काल खत्म होते ही लोगों को जमीन का पट्टा, घर समेत अन्य सुविधाएं दिलवाएंगे।

मलय मुखर्जी, उपाध्यक्ष, बांकुड़ा जिला परिषद


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