Gangs of Wasseypur: कभी गूंजती थी गोलियों की तड़तड़ाहट, आज खनक रहीं लाह की चूडिय़ां Dhanbad News
गैंग्स के लिए बदनाम वासेपुर में तस्वीर बदल रही है। यहां की महिलाएं विकास की नई गाथा लिख रही हैं। एक दौर था जब इलाके में गोलियों की तड़तड़ाहट आए दिन गूंजती थी।
मोहन गोप, धनबाद: बेटी रुखसाना व सौगात के साथ शबाना नूरी घर के एक कमरे में लहठी (लाह की चूडिय़ां) बना रही है। दूसरे कमरे में उनके शबाना के शौहर कासिम अंसारी इसकी पैकिंग में व्यस्त हैं। यह कहानी वासेपुर के करीमगंज की शबाना की ही नहीं है, बल्कि इस इलाके के पांडरपाला की हिना, अफसर कॉलोनी की रुखसाना समेत अधिसंख्य महिलाएं चूडिय़ां बनाकर स्वावलंबी बन गई हैं। गैंग्स के लिए बदनाम वासेपुर में तस्वीर बदल रही है। यहां की महिलाएं विकास की नई गाथा लिख रही हैं। एक दौर था जब इलाके में गोलियों की तड़तड़ाहट आए दिन गूंजती थी। यहां के गैंगवार पर गैंग्स ऑफ वासेपुर पिक्चर भी बनी।
धनबाद मुख्यालय से डेढ़ किमी दूर बसा है वासेपुर। यहां वर्षों से लोहा, कोयला कारोबार में वर्चस्व, रेलवे में ठेकेदारी, जमीन पर कब्जे के लिए गैंगवार होती रही है। अनेक लोगों की जान भी गई है। यहां के गैंगवार की गूंज फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप तक गई। उन्होंने 2012 में गैंग्स ऑफ वासेपुर फिल्म बनाई।
यूपी के फिरोजाबाद की तरह वासेपुर बना रहा पहचान: कांच की चूडिय़ों के लिए यूपी के फिरोजाबाद की बात निराली है। अब लाह की चूडिय़ों के लिए धनबाद का वासेपुर तेजी से आगे बढ़ रहा है। यहां की बनी चूडिय़ों की मांग गिरिडीह, रांची, पटना, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, गया और यूपी के बनारस, फिरोजाबाद, इलाहाबाद, कानपुर, बंगाल के आसनसोल, रानीगंज, बांकुड़ा, पुरुलिया, कोलकाता, सिलीगुड़ी तक है।
ठंडे लाह से ही तैयार कर लेते चूडिय़ां: चूड़ी बनाने के काम में लगीं शबाना, हिना, रुखसाना, अमीना समेत अन्य महिलाओं ने बताया कि बताया कि वर्ष 2012-13 में लहठी बनाने के काम ने यहां जोर पकड़ा। दरअसल यहां की कुछ बहुएं यूपी व बंगाल से आईं। जिनको यह कला आती थी। उनसे अन्य महिलाओं ने यह काम सीखा। बस चूडिय़ां बनाने का काम तेजी से बढऩे लगा। पहले गर्म लाह से चूडिय़ां बनाते थे, 2014 में ठंडे लाह से इसे बनाने लगे।
इन इलाकों में बनती हैंं चूडिय़ां: वासेपुर के करीमगंज, करम मखदूमी रोड, निशात नगर, नया बाजार, भïट्टा मुहल्ला, आरा मोड़, मटकुरिया, गुलजार बाग, पांडरपाला, रहमतगंज, शमशेर नगर, आजाद नगर में चूडिय़ां बनाने का काम हो रहा है।
कच्चा माल वासेपुर में ही उपलब्ध: लहठी-चूडिय़ां बनाने के काम ने जोर पकड़ा तो कच्चे माल की दुकानें सज गईं। लहठी बनाने के लिए जरूरी कच्चे माल की 18 होलसेल की यहां दुकान हैं। इनमें स्टील, पीतल, फाइबर की बाली, जरूरी रसायन, सितारे, चमकदार स्टोन मिलते हैं। कच्चा माल यूपी व बंगाल से आता है।
एक दिन में 40 लहठी तैयार करतीं महिलाएं: कच्चे माल को महिलाएं खरीद कर घर लाती हैं। लाह तैयार कर बाली पर चढ़ाया जाता है। रंग बिरंगे स्टोन, सितारे, बुरादा से सजाया जाता है। कुछ मिनट सूखने के बाद ये विशेष प्रकार से धोई जाती हैं। इसके बाद पैकिंग होती है। लहठी की मांग विवाह समारोहों में बहुत है। बाजार में चार चूडिय़ों का सेट सौ से 500 रुपये तक बिकता है।
घर का बदल गया अर्थतंत्र: शबाना नूरी बताती हैं कि लहठी के काम से घर का अर्थतंत्र बदला है। हर महिलाएं खर्च निकाल रही है। हालांकि सरकार मदद कर बाजार दिला दे तो आमदनी बढ़ जाएगी। वार्ड 14 के पार्षद निसार आलम ने बताया कि नगर निगम के स्तर से सहायता पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।