Weekly News Roundup Dhanbad: बंगले का मोह नहीं छोड़ रहे कल्याण आयुक्त, बीसीसीएल को नहीं सूझ रहा वसूली के उपाय
Weekly News Roundup Dhanbad लालबंगले में बाघ बहादुर से कुछ परदेसी मनबढ़ुओं की भिड़ंत हो गई है। मनबढ़ू एक हाई प्रोफाइल मामले में सीखचों के अंदर हैं। तंगहाली से गुजर रहे हैं।
धनबाद [ रोहित कर्ण ]। केंद्रीय उप श्रमायुक्त स्थानांतरित होकर राष्ट्रीय राजधानी चले गए हैं। उन्हें गए महीनों बीत गए, मगर आवास पर कब्जा अब भी बरकरार है। हां, इतना जरूर किया है कि गेट से नेमप्लेट हटवा दिया है। हालांकि इतने से कुछ नहीं होता। कोरोना काल में चार महीने की लेटलतीफी सामान्य बात है। असल मुद्दा है कि बंगला श्रम विभाग का नहीं बल्कि बीसीसीएल का है। कंपनी का नियम है कि वो अन्य विभागों को किराए पर बंगला देती है। बेसिक का पांच फीसद रेंट और एक फीसद रखरखाव का खर्च। मजे की बात ये है कि तीन साल के कार्यकाल में साहब ने फूटी कौड़ी तक नहीं चुकाई। अब वे दिल्ली में कल्याण आयुक्त बन गए हैं। बीसीसीएल वालों को अब सूझ नहीं रहा कि कैसे उनसे वसूली की जाए। ऐसा न हो पाया तो उस मद की राशि की भरपाई कैसे की जाए।
बाघ बहादुर से भिड़ंत
खबर है कि लालबंगले में बाघ बहादुर से कुछ परदेसी मनबढ़ुओं की भिड़ंत हो गई है। मनबढ़ू एक हाई प्रोफाइल मामले में सीखचों के अंदर हैं। तंगहाली से गुजर रहे हैं। कोयला क्षेत्र में अमूमन ऐसे लोग बदहाल रहें तो लानत है उन पर। सो उन्होंने हाथ-पैर मारना शुरू कर दिया। फिर क्या था, बाघ बहादुर से खार खाए लोगों ने उनके कुछ समर्थकों का नाम, नंबर बता दिया। कहा कि खूब मलाई चाभ रहे हैं। लिहाजा तत्काल डिमांड भी हो गई। जाहिर है हुजूर को तिलमिलाना ही था। सो जैसे ही वे तिलमिलाए, मनबढ़ू उनसे भिड़ गए। अफसोस कि उस दौरान अंदर रह रहे उनके कुछ समर्थकों ने भी साथ नहीं दिया। अब देखना है कि टाइगर का अगला पैंतरा क्या होता है। सोशल मीडिया में ये खबरें सुर्खियां बटोर रही हैं। देखना ये भी है कि कोयला कारोबार की रंजिश क्या गुल खिलाती है।
कोयला भवन पर कोरोना संकट
बीसीसीएल मुख्यालय से कोरोना का साया हटाते नहीं हट रहा। जीएम-पी के पॉजिटिव आने के बाद दो दिन लेवल वन बंद रहा। कार्मिक निदेशक का कार्यालय भी उसी तल में आता है। सो सबकी जांच करवाई गई। अब डीपी स्वयं तो निगेटिव आ गए, लेकिन खबर है कि मैडम पॉजिटिव हो गई हैं। हालांकि फिलहाल उन्हें घर में ही क्वारंटाइन किया गया है। इस बीच कुछ कर्मी भी पॉजिटिव पाए गए थे। नित नए केस और उसके बाद रस्मी राहत कार्यों से कर्मचारी ऊब गए हैं। अब तो बाहरी लोगों का प्रवेश भी निषेध है। सो उनकी मांग है कि कंपनी क्यों न सभी कर्मचारियों के लिए कैंप लगाकर जांच करवा देती है। एक ही बार में पता चल जाएगा कि कौन पॉजिटिव है, कौन निगेटिव। बार-बार का झंझट ही खत्म। हालांकि खुलकर कहे कौन, बस सोशल मीडिया तक ही बात रह जा रही है।
अब रेफरल भी नहीं रहा अस्पताल
बीसीसीएल मुख्यालय में कार्यरत कर्मचारी २५ जुलाई की रात कोयला नगर अस्पताल पहुंचे। उनकी तबीयत खराब थी और वह सिर्फ रेफर कराने के कागजात बनाने आए थे। घंटों चिल्लाते रहने के बाद भी अस्पताल का गेट नहीं खुला। वह बार-बार चिल्लाते रहे कि मेरी तबीयत खराब है। इलाज करवाना है, दरवाजा खोल दीजिये, मगर उनकी चीख किसी ने नहीं सुनी। मसला ये है कि केंद्रीय अस्पताल अभी कोविड अस्पताल बना हुआ है। वहां कोई अन्य काम नहीं हो रहा। दरअसल, निजी अस्पतालों में इलाज की मान्यता के बाद अब यूं भी बीसीसीएल के अस्पताल रेफरल ही बनकर रह गए हैं। अब रेफर करने में भी इस तरह की लापरवाही हो तो ऐसे अस्पतालों को पूरी तरह निजी करने में क्या बुराई है। आखिर भुगतान तो कंपनी को ही करना है। कम से कम अधिकारी और मजदूर के बीच का भेद तो खत्म हो जाए।