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Weekly News Roundup Dhanbad: जिनकी उम्र पचपन उनकी बढ़ी धड़कन, पढ़ें रेलवे की खरी-खरी

Weekly News Roundup Dhanbadनियमित ट्रेनों के बंद हुए 174 दिन हो चुके हैं। इतने दिनों के बाद भी गिनी चुनी ट्रेनें ही चल रही हैं। अब लोग रेलवे से ट्विटर पर ट्रेन मांग रहे हैं।

By MritunjayEdited By: Published: Sun, 13 Sep 2020 09:26 AM (IST)Updated: Sun, 13 Sep 2020 09:26 AM (IST)
Weekly News Roundup Dhanbad: जिनकी उम्र पचपन उनकी बढ़ी धड़कन, पढ़ें रेलवे की खरी-खरी

धनबाद [ तापस बनर्जी ]। Weekly News Roundup Dhanbad रेलवे में काम करनेवाले ऐसे कर्मचारी जिनकी उम्र 55 हो चुकी है, उनकी धड़कनें अब बुलेट ट्रेन से भी ज्यादा तेज हो गई हैं। इसकी वजह है रेलवे का वह फरमान, जिसमें यह साफ लिखा है कि 55 की उम्र पूरी करने वाले या फिर रेलवे को 30 साल अपनी सेवा दे चुके कर्मचारियों के सर्विस रिकॉर्ड की समीक्षा होगी। सर्विस रिकॉर्ड दुरुस्त है तो सिग्नल ग्रीन नहीं तो नौकरी पर रेड सिग्नल तय। जुलाई में दिल्ली से निकला आदेश सितंबर में धनबाद तक पहुंच चुका है। अब यहां भी ऐसे कर्मचारियों की उल्टी गिनती शुरू है। तीन दिन पहले उनकी जन्म कुंडली मुख्यालय भी भेजी जा चुकी है। उम्र का ये पड़ाव ऐसा कि जहां पहुंचकर रेल कर्मचारी रिटायरमेंट प्लान बनाना शुरू कर देते हैं। यहां मामला उल्टा हो गया है। रेलवे ने तो उनका दिमाग हिला दिया है। 

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तब खुलती साहब की नींद

शहर में रेलवे ने करोड़ों की जमीन बट्टे खाते में डाल रखी है। कहीं झुग्गी झोपडिय़ां तो कहीं पक्के मकान। रेलवे की कीमती जमीन बेच बेच कर कई तो अपनी जिंदगी संवार चुके हैं। हां, इसके लिए कुछ नकदऊ भी चढ़ाए हैं। पर ऐसा भी नहीं है कि कब्जा करने वालों पर रेलवे कार्रवाई नहीं करती। ऊपर का दबाव हो और सटीक शिकायत आ जाए तो साहब लोग जाग उठते हैं। फिर अवैध कब्जे पर उनकी तीरंदाजी का हुनर देखिए। पिछले हफ्ते की ही बात है। मटकुरिया रेल कॉलोनी में खटाल बनने की शिकायत आई। साहब की आंखें लाल हो गईं। झट फरमान जारी किया। कब्जा हटाओ। आरपीएफ के साथ पूरा कुनबा पहुंच गया। कुछ मिनट लगे और खटाल नेस्तनाबूद।  करीब 2000 स्क्वायर फीट जमीन कब्जा मुक्त हो गई। यह अलग बात है कि मार्च में भी इसे खाली कराया गया था।

मुफ्त के स्टॉल ने रोका काम

धनबाद रेलवे स्टेशन के बाहर एक कैटरिंग स्टॉल है। खास बात ये कि स्टॉल संचालक को रेलवे को इसके एवज में पैसे नहीं देने पड़ते हैं। पूरी व्यवस्था मुफ्त है। दशकों से ऐसा ही चला आ रहा है। स्टॉल को रेलवे ने 25 वर्षों से फ्री सेवा में दिया हुआ है। उसका लाइसेंस भी समाप्त हो चुका है। पर रेलवे के बाबुओं का अपना ही जलवा है। उनका आशीर्वाद संचालक को मिल गया है, सो बगैर लाइसेंस स्टॉल बेधड़क चल रहा है। इसी स्टॉल ने रेलवे स्टेशन को सुंदर बनाने के लिए चल रहे ढाई करोड़ की लागत के काम पर ब्रेक लगा दिया है। संचालक स्टॉल हटाने को तैयार नहीं है। बाबुओं पर तगड़ा एतबार जो है। शनिवार को इंजीनियङ्क्षरग विभाग के सिपहसालार उसके पास पहुंचे, मिन्नतें करके गए, भैया मान जाओ। अब देखिए आगे क्या होता है। स्टाल हटता है या...।

ट्विटर पर मांग रहे ट्रेन

नियमित ट्रेनों के बंद हुए 174 दिन हो चुके हैं। इतने दिनों के बाद भी गिनी चुनी ट्रेनें ही चल रही हैं। ऐसे में ट्विटर पर मदद मांगने में सिद्धहस्त अब रेलवे से ट्विटर  पर ट्रेन मांग रहे हैं। सबसे ज्यादा डिमांड तो धनबाद को पटना से जोडऩे वाली गंगा दामोदर एक्सप्रेस की हो रही है। झारखंड और बिहार को जोडऩे वाली महत्वपूर्ण ट्रेन होने के बाद भी यह अब तक पटरी पर वापस नहीं आई है। यही हाल बिहार की दूसरी ट्रेनों का है। जरा अतीत का पर्दा हटाएं तो पता चलेगा कि अब तक तो दुर्गा पूजा और छठ में चलने वाली स्पेशल ट्रेनों की घोषणा हो जाती थी। उनकी सीटें भी भर जाती थीं। इस बार सिकंदराबाद से दरभंगा की ट्रेन ही विकल्प है। यात्रियों की फौज एक ट्रेन में कैसे समा सकेगी। सोचिए, कलेजा कलप उठेगा। 


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