Weekly News Roundup Dhanbad: आरपीएफ बैरक में मिला गायब बैग, पढ़ें रेलवे स्टेशन पर सुरक्षा की खरी-खरी
रेल यूनियनों के नेता अब एक बार फिर सक्रिय हो जाएंगे। वजह साफ है। रेल मंत्रालय ने मतदाता सूची बनाने के आदेश देकर चुनावी लड्डू दिखा दिया है। मुद्दे भी ज्यादा ढूंढऩे नहीं होंगे और न ही उपलब्धियां गिनाने के लिए ज्यादा मशक्कत करनी होगी।
धनबाद [ तापस बनर्जी ]। रेलवे सुरक्षा बल यानी आरपीएफ का कारनामा एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार एक यात्री का गायब बैग आरपीएफ बैरक में मिला है। कहानी कुछ यूं है। 15 अक्टूबर को नई दिल्ली से पुरी जाने वाली पुरुषोत्तम एक्सप्रेस से कोडरमा पहुंचे यात्री के पास काफी सामान था। घर पहुंचने पर उन्हें एक बैग कम मिला। कोडरमा जीआरपी तक शिकायत पहुंची तो आरपीएफ इंस्पेक्टर को भी इत्तला किया गया। बैग आरपीएफ पोस्ट में था, इसलिए इंस्पेक्टर ने अपना मोबाइल नंबर देकर सामान ले जाने की सूचना सार्वजनिक कर दी, लेकिन एक जवान ने ही इस पर पानी फेर दिया। बैग को वह बैरक ले गया। बैरक में बैग मिल भी गया। अब यात्री आएगा और सामान ले जाएगा, लेकिन बड़ा सवाल यह कि आखिर बैरक तक बैग क्यों गया। तरह-तरह की चर्चा हो रही है। समझदार लोग अंदाजा लगा सकते हैं। आप भी लगा सकते हैं।
अब फिर ताल ठोकेंगे नेताजी
रेल यूनियनों के नेता अब एक बार फिर सक्रिय हो जाएंगे। वजह साफ है। रेल मंत्रालय ने मतदाता सूची बनाने के आदेश देकर चुनावी लड्डू दिखा दिया है। मुद्दे भी ज्यादा ढूंढऩे नहीं होंगे और न ही उपलब्धियां गिनाने के लिए ज्यादा मशक्कत करनी होगी। बोनस दिलाने की घोषणा को सभी अपनी जीत बताकर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश करेंगे, लेकिन सबसे बड़ा सवाल चुनाव होने को लेकर है। पहले भी यूनियन नेताओं ने ताल ठोका था। उपलब्धियां भी गिनाई थीं। कर्मचारियों से अपनापन दिखाया था, लेकिन चुनाव टल गया और सब बेकार हो गया। ऐसा एक बार नहीं, बल्कि कई दफा हो चुका है। कभी लोकसभा तो कभी विधानसभा चुनाव ने रेलवे यूनियन के चुनाव को लटका कर रखा। अब एक बार फिर नेताजी के लिए अच्छे दिन आनेवाले हैं। दशहरा खत्म होते ही चुनावी रेल पूरी रफ्तार से फर्राटा भरने लगेगी।
ट्रेन रोकिए, कूदने लगे हैं यात्री
एक तो ट्रेनों के मामले में धनबाद की झोली खाली ही है। उस पर जो ट्रेनें चल रही हैं, उनके ठहराव पर कैंची चल रही है। पहले जहां ट्रेन रुकती थी, अब वहां बिना रुके सरपट भाग रही है। नतीजतन यात्री चलती ट्रेन से कूदने लगे हैं। 19 अक्टूबर की ही घटना तो है। हावड़ा से जबलपुर जाने वाली शक्तिपुंज एक्सप्रेस पूरी रफ्तार से दौड़ रही थी। उस पर सवार महिला यात्री ने देखा कि ट्रेन नहीं रुकी तो चलती ट्रेन से ही छलांग लगा दी। वाकया धनबाद रेल मंडल के छिपादोहर का है। पहले ट्रेन लातेहार, बरवाडीह और छिपादोहर में ठहरती थी। अब जब इतने दिनों बाद चली तो आधा दर्जन ठहराव हटा दिए गए। इसके विरोध में धरना-प्रदर्शन भी हुए, मगर परिणाम कुछ भी नहीं निकला। रेलवे ने पुराना राग अलाप लिया। दिल्ली का निर्णय बताकर अपनी मजबूरी गिनाई और पल्ला झाड़ लिया।
अभी कोरोना ने रोका, फिर रोकेगा कोहरा
तकरीबन सात महीने से ट्रेनों को कोरोना ने रोक रखा है। मेल-एक्सप्रेस ट्रेन चली भी, लेकिन ज्यादातर पैसेंजर ट्रेनों के पहिए अब भी थमे हैं। अगर धनबाद रेल मंडल की बात करें तो सात महीने में केवल इकलौती ट्रेन गंगा-सतलज एक्सप्रेस ही इसकी झोली में आई है। दूसरी ट्रेनों का प्रस्ताव ऊपर भेजा गया है, लेकिन ऊपर वालों को नीचे झांकने की फुर्सत नहीं मिल रही है। बाद में त्योहार को देखते हुए स्पेशल ट्रेन के लिए झोली फिर से फैलाई गई है, मगर सब कुछ वेटिंग लिस्ट में है। एक महीने के बाद दिसंबर -जनवरी की सर्दी शुरू हो जाएगी। ठंड शुरू होते ही कोहरा दस्तक देगा और ट्रेनों के पहिए थम जाएंगे। हर साल ठंड में ऐसा ही होता है। हाईटेक हो रही रेलवे के पास अब भी पटरी पर चूना छिड़कने और पटाखे फोडऩे का ही विकल्प मौजूद है।