Weekly News Roundup Dhanbad : फाइल बढ़ेगी तभी बढ़ेगा आरपीअएफ, जानें रेलवे सुरक्षा बल की कार्यसंस्कृति
15 जून 2017...। भारतीय रेल के लिए सबसे बड़ी रेलबंदी का दिन। ऐसी तारीख जिसने एक ही झटके में 26 जोड़ी ट्रेनें छीन ली थी। धनबाद-चंद्रपुरा रेललाइन बंद होते ही वैकल्पिक लाइन का विकल्प तलाशना शुरू हो गया। राइट्स से अलग-अलग रूटों का सर्वे कराया गया।
धनबाद [ तापस बनर्जी ]। आप बहुत धीरे चलते हैं तो भी 700 मीटर का फासला तय करने में दो दिन तो नहीं लगेंगे। पर अगर आरपीएफ को इतना ही फासला तय करना पड़ा तो पूरे 48 घंटे लग जाते हैं। वाकया रविवार का है। डीएवी स्कूल से होकर धनबाद स्टेशन के दक्षिणी छोर तक जानेवाली जिस सड़क को बनाने में कोर्ट-कचहरी के चक्कर लग गए। स्कूली बच्चों पर लाठियां भांजनी पड़ी। उसे बगैर किसी की अनुमति के शहीद नेपाल रवानी चौक घोषित कर दिया गया। रेलवे की सड़क के बीचोबीच शहीद नेपाल रवानी का बोर्ड भी लग गया। घंटों समारोह भी चला। रेल की रियासत लुटती रही और सिपहसलार बेखबर रहे। खबर मिली तो भी कागजी घोड़े दौडऩे का इंतजार होता रहा। फिर जब इंजीनियङ्क्षरग विभाग के नुमाइंदे ने लिख कर शिकायत की तब जाकर मंगलवार को आरपीएफ को कार्रवाई का ख्याल आया और बोर्ड हटाया गया।
नई मिलती नहीं, पुरानी रुकती नहीं
गजब है भाई...नई मिलती नहीं और पुरानी रुकती नहीं। हां, ठीके कह रहे हैं। पुरनका ट्रेन सबका स्टॉपेजवे हटा दिया है। जोधपुर को पारसनाथ-कोडरमामें नहीं रोक रहा है। दुर्गियाना भी पारसनाथ से गायब्बे है। अरे एथी, कौची नाम है, पुरुषोत्तम एक्सप्रेस, ओकरो अभी तकले गोमो-तोमो कहीं नहीं रोक रहा है जी। गजब्बे कईले है। आर ई सब के बाद जे ट्रेन चला न, शिप्रा, लुधियाना उसका स्टॉपेज सभे स्टेशन पर देल्ले है...। ये बातचीत धनबाद स्टेशन के गेट के बाहर एंट्री के लिए इंतजार कर रहे लोग कर रहे थे। रेलवे और राज्य सरकार के सिस्टम पर ठहाके भी लग रहे थे। राज्य सरकार ने पहली पाली में चली ट्रेनों के लिए जो बंदिशें लगाई थी। उन्हें हटाना अब तक जरूरी नहीं समझा गया। रेलवे ने भी राज्य सरकार के पाले में ही गेंद डाले रखा है। तो अब इनकी किरकिरी को कौन रोके।
देर से ही सही नींद तो खुली
15 जून 2017...। भारतीय रेल के लिए सबसे बड़ी रेलबंदी का दिन। ऐसी तारीख जिसने एक ही झटके में 26 जोड़ी ट्रेनें छीन ली थी। धनबाद-चंद्रपुरा रेललाइन बंद होते ही वैकल्पिक लाइन का विकल्प तलाशना शुरू हो गया। राइट्स से अलग-अलग रूटों का सर्वे कराया गया। खैर, डीजीएमएस की रिपोर्ट ने जिसे बंद कराया, मुख्य रेल संरक्षा आयुक्त ने उसे चालू भी करा दिया। फरवरी 2019 से फिर से बंद रेल लाइन पर ट्रेनें चल पड़ी। यात्री ट्रेनों के साथ मालगाडिय़ों के पहिए भी घूमने लगे। मालगाडिय़ां चलते ही रेलवे का खजाना भरने लगा। आमदनी शुरू होते ही धनबाद से लेकर मुख्यालय हाजीपुर तक के अधिकारियों ने इस रेललाइन के विकल्प की योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया। अब एकाएक फिर अफसरों की नींद खुल गई है। भविष्य में भूमिगत आग के खतरा को भांप कर डायवर्जन का विकल्प तलाशा गया है।
स्टेशन को बिजली मिली नहीं चलाएंगे ट्रेन
सौर ऊर्जा से बड़े पैमाने पर बिजली की खपत कम करेंगे। उत्साह से लबरेज रेलवे ने इसकी तैयारी तकरीबन डेढ़ साल पहले ही की थी। लाखों खर्च कर डीआरएम ऑफिस से लेकर धनबाद स्टेशन की छत तक सोलर पैनल बिछाए गए थे। तब से सोलर पैनल धूप में चार्ज और बारिश में भीग कर डिस्चार्ज हो रहे हैं। उनका इस्तेमाल अब तक शुरू नहीं हुआ। रेल अधिकारियों को इसकी फुरसत भी नहीं मिली। अब सौर ऊर्जा से ट्रेन चलाने की तैयारी शुरू हो गई है। इसके लिए सोलर प्लांट स्थापित किया जाएगा। रेलवे ट्रैक के पास खाली 48 किलोमीटर जमीन ढूंढ़ कर प्लांट लगाने की तैयारी भी शुरू हो गई है। दावा किया जा रहा है कि सोलर प्लांट से मिलने वाली बिजली से ट्रेनों की गति बढ़ जाएगी। प्रोजेक्ट करोड़ों का है और इसलिए इस पर साहबों की कृपा बरस रही है।