Weekly News Roundup Dhanbad: हाय री बीसीसीएल की व्यवस्था, जीएम साहब को ही नहीं मिली एंबुलेंस
Weekly News Roundup Dhanbad लॉकडाउन शुरू हुआ तो कोल इंडिया कंपनी ने कागजात पर कोरोना संक्रमण से बचाव को कई निर्देश दिए। जो समय के साथ हवा हो गए।
धनबाद [ रोहित कर्ण ]। Weekly News Roundup Dhanbad: बीसीसीएल के कार्मिक महाप्रबंधक एके दुबे। करीब महीने भर पहले केंद्रीय अस्पताल में बने कोविड-19 सेंटर की अव्यवस्था की जांच की जिम्मेदारी उनको मिली। दो बार अस्पताल गए। लौटकर बताया, सब ठीक है। भोजन से लेकर सफाई तक दुरुस्त। कुछ ही दिन बीते कि साहब खुद पॉजिटिव निकल गए। उसी अस्पताल में बतौर रोगी पहुंच गए। बुखार आने लगा, दोबारा जांच में भी पॉजिटिव। चिकित्सकों ने बाहर ले जाने की सलाह दी। कोलकाता में मेडिका, फोर्टीज, कोठारी जैसे अस्पतालों को लाइनअप किया गया। पर ये क्या, साहब को ले जाने को एंबुलेंस नहीं मिली। यूं सीएमएस एके गुप्ता की मानें तो बीसीसीएल के पास 60 एंबुलेंस हैं लेकिन वे क्षेत्रीय कार्यालयों के मार्फत हैं। सीएचडी 108 के भरोसे है। यूं सीएचडी पर फिलहाल सिविल सर्जन हावी हैं। ऐसे में महाप्रबंधक बिना एंबुलेंस केंद्रीय अस्पताल में पड़े हैं। यह व्यवस्था तो ठीक नहीं साहब।
सैनिटाइजर रहा न चैंबर बचा
लॉकडाउन शुरू हुआ तो कोल इंडिया कंपनी ने कागजात पर कोरोना संक्रमण से बचाव को कई निर्देश दिए। जो समय के साथ हवा हो गए। यूं भी ये निर्देश कभी धरातल पर ठीक से उतरे ही नहीं। अब संकट महामारी का रूप ले रहा है। लोग डरे सहमे हैं, नतीजा पोल खुलने लगी। कोल इंडिया की इकाई ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड की मुगमा भाग्यलक्खी खदान को ही लीजिए। यहां तकरीबन 500 मजदूर हैं। 150 पश्चिम बंगाल से आते हैं। शुरू में यहां सैनिटाइजर चैंबर बनाया गया। वीडियोग्राफी कराकर उसे वायरल भी किया गया। अब, दो माह हो गए, न सैनिटाइजर का पता है न मशीन और चैंबर का। पता नहीं कहां हैं। वीडियोग्राफी के कुछ दिन बाद सब खत्म हो गया। कोलियरी प्रबंधक केआरपी सिंह के मुताबिक वरीय अधिकारियों से सैनिटाइजर की मांग की है। इधर मजदूर कह रहे, यही कोल इंडिया है साहब।
इस हमाम में सब...
क्या पक्ष और विपक्ष, लाल, हरा और भगवा यहां सब बेमानी है। कोयले की काली कमाई में सबके हाथ काले हैं। भरोसा न हो तो सुदमाडीह आइये। एएसपी कोलियरी न्यू कोल डिपो में वाशरी-2 ग्रेड के 10,000 टन कोयले का ई-ऑक्शन हुआ। नौ कारोबारी इसमें सफल हुए। कोयला उठाव का दिन अब बीतने को है, पर उठा एक छटांक नहीं। वजह रॉ कोल के लिए बोली लगी। कोयला उठाने का वक्त आया तो यूनियनों ने खम ठोक दिए। संयुक्त मोर्चा, यूनाइटेड फ्रंट, ग्रामीण संयुक्त मोर्चा, जमसं और स्थानीय पार्षद। सभी मोर्चे में हर दल का स्थानीय नेता। लॉकडाउन भूल सभी ने मोर्चेबंदी की। कमजोर पड़े तो स्थानीय राजनीति के धुर विरोधी दो पार्षदों के गुटों ने भी हाथ मिलाए। प्रशासन ने हल्की सक्रियता दिखाई तो भीड़ छंट गई पर नेता डटे हैं। उन्हें क्यों नहीं हटाया? क्या मिलीभगत है। क्या वे प्रशासन-प्रबंधन के ही प्यादे हैं।
हड़ताल के बाद
कॉमर्शियल माइनिंग के बाद मजदूर संगठनों में कार्रवाई का सिलसिला शुरू हो गया है। धकोकसं ने कुछ कमेटियां भंग कीं तो माना गया कि यह हड़ताल में साथ नहीं देने का नतीजा है। लेकिन जनता मजदूर संघ में ठनी रार की कुछ दूसरी कहानी है। अरसे से बस्ताकोला क्षेत्र सचिव रहे अक्षय यादव को हटाया तो कार्यकर्ता उद्वेलित हो गए। पहले दिन ही विरोध में 150 ने इस्तीफा दिया। अगले दिन 350 लोग और संगठन छोड़ गए। दबंग घराने के संगठन में ऐसा विरोध? यह तभी संभव है, जब पीठ पीछे किसी का मजबूत हाथ हो। जमसं कुंती गुट की बच्चा गुट से अदावत है। अक्षय को ऑफर भी मिला बताया जा रहा। पर वे फिलहाल जाने को तैयार नहीं। फिर? बताते हैं कि अक्षय की जगह आए रुद्र प्रताप सिद्धार्थ गौतम के करीबी हैं। क्या यह कुंती गुट की अंदरूनी लड़ाई है? शायद।