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Durga Puja 2019: बेटों के कंधे पर सवार होकर निकली मां, 86 साल पुरानी परंपरा आज भी कायम Dhanbad News

पहली बार 1933 में दुर्गोत्सव की शुरुआत के साथ ही पूजा कमेटी के पदाधिकारी व सदस्यों ने देवी को कंधे पर रखकर नगर भ्रमण कराया था। आज भी यह परंपरा बरकरार है।

By MritunjayEdited By: Published: Thu, 10 Oct 2019 02:48 PM (IST)Updated: Thu, 10 Oct 2019 02:48 PM (IST)
Durga Puja 2019: बेटों के कंधे पर सवार होकर निकली मां, 86 साल पुरानी परंपरा आज भी कायम Dhanbad News
Durga Puja 2019: बेटों के कंधे पर सवार होकर निकली मां, 86 साल पुरानी परंपरा आज भी कायम Dhanbad News

धनबाद, जेएनएन। विजया दशमी को प्रतिमा विसर्जन की परंपरा तो आम है। पर शहर में एक स्थान ऐसा भी है जहां 86 वर्षों से मातृ मूर्ति अपने बेटों के कंधे पर सवार होकर पहले नगर भ्रमण करती हैं और उसके बाद विदा लेती हैं। हम बात कर रहे हैं हीरापुर के हरि मंदिर की।

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पहली बार 1933 में दुर्गोत्सव की शुरुआत के साथ ही पूजा कमेटी के पदाधिकारी व सदस्यों ने देवी को कंधे पर रखकर नगर भ्रमण कराया था। आज भी यह परंपरा बरकरार है। वर्तमान में शहर के भिस्तीपाड़ा के यादववंशी इस परंपरा को निभा रहे हैं। मंगलवार की शाम जय दुर्गे का जयघोष कर जब मां को कंधे पर उठाकर यादववंशी और मंदिर कमेटी के लोग निकले तो हरि मंदिर से पंपू तालाब तक के मार्ग को खाली करा दिया गया ताकि माता के विसर्जन के दरम्यान रास्ते में कोई रुकावट न आए।

25 सितंबर 1933 में पहली बार हुआ था दुर्गोत्सव का आयोजनः हीरापुर हरि मंदिर में सार्वजनिक पूजा की शुरुआत अंग्रेजों के जमाने में ही हुई थी। आज से 85 वर्ष पहले वो दिन था 25 सितंबर 1933, जब हरि मंदिर में पहली बार बोधनोत्सव (दुर्गोत्सव) का आयोजन हुआ था। बिचाली की कुटिया में पहली बार देवी विराजमान हुई थीं।


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