जिसका कोई नहीं उसकी सद्गति के लिए है यह चायवाला
जिन शवों को लोग छूने से भी परहेज करते हैं, उनका अंतिम संस्कार कर रामगोविंद अपने नाम को सार्थक कर रहा है।
धनसार (धनबाद), सत्येंद्र चौहान। ''जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों'' की जगह यहां के लोगों की जुबां पर जिसका कोई नहीं उसकी सद्गति के लिए चायवाला है। ये चायवाला है धनबाद के विक्ट्री कोलियरी निवासी रामगोविंद पासवान (55)। बेहद साधारण इंसान। मगर इंसानियत की जीती-जागती तस्वीर। चाय बेचकर अपना और परिवार का भरण-पोषण तो करते ही है। साथ ही, इसी कमाई से चुपचाप बिना किसी प्रचार के ऐसा पुण्य का काम कर रहे हैं, जिसकी बदौलत वह लोगों के लिए मिसाल बन गया है।
वह लावारिस शवों की सद्रगति का सारथी बन गया है। जिन शवों को लोग छूने से भी परहेज करते हैं, उनका अंतिम संस्कार कर रामगोविंद अपने नाम को सार्थक कर रहा है। अंतिम संस्कार में आने वाला खर्च उठाने के साथ श्राद्ध भी करता है, ताकि मान्यताओं के मुताबिक मोक्ष की राह पर जीवात्मा चली जाए। उन्होंने इसे अपने जीवन का मकसद बना लिया है। इस पुण्य कार्य में परिवार के साथ क्षेत्र के समाजसेवी भी सहयोग करते हैं।
कोलियरी में चाय की दुकान चलाकर परिवार पालने वाले रामगोविंद कहते हैं कि उन्हें इस कार्य से संतुष्टि मिलती है। लावारिस शव को देखते ही आत्मा कलप उठती है। हम तत्काल उसके अंतिम संस्कार का बीड़ा उठाते हैं। किसी ने मदद कर दी तो ठीक अन्यथा हम अपनी सामर्थ्य के अनुसार उसका संस्कार कर देते हैं। अंतिम यात्रा के लिए खुद ही बांस की ठठरी बनाते हैं। शव पर फूलमाला चढ़ाकर विधि विधान से चांदमारी श्मशान घाट में दफना देते हैं। श्राद्ध के दिन कुछ बच्चों व गरीबों को भोजन कराते हैं।
जब तक जिंदा हूं और हाथ पैर चलते रहेंगे तब तक इस पुण्य में लगे रहेंगे : रामगोविंद
रामगोविंद के मुताबिक, करीब दस वर्ष पहले एक लावारिस शव चांदमारी में देखा था। कई लोग इकट्ठे हो गए थे पर वे शव को छूने से भी परहेज कर रहे थे। तब मन दुखी हो गया। सोचा, इसका तो कोई नहीं पर हम तो इंसान हैं। बस ठान ली कि इसकी अंतिम यात्रा में हम साथ निभाएंगे। बस, वहीं से मुझे अपनी जिंदगी का एक मकसद मिल गया। हमने उस शव का अंतिम संस्कार किया।
क्षेत्र में रहने वाले मुन्नीलाल मांझी, गणेश पासवान, झलिया, यमुना का जब निधन हो गया तो उनका भी अपना कोई नहीं था। वे अनाथ थे। उनका भी अंतिम संस्कार हमने किया। अब तक दो दर्जन से अधिक शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। इलाके में किसी के घर में भी यदि मौत की सूचना मिलती है तो वे बांस की ठठरी बनाने पहुंच जाते हैं। जब तक जिंदा हूं और हाथ पैर चल रहे हैं इस पुण्य काम को अंजाम देते रहेंगे।
परिजनों का हर कदम पर साथ
रामगोविंद के परिवार में पत्नी नगीना देवी, दो पुत्र चंदन पासवान व विकास पासवान हैं। एक पुत्री पूजा देवी की शादी हो चुकी है। पुत्र प्राइवेट नौकरी करते हैं। रामगोविंद का पूरा परिवार और उनके रिश्तेदार भी उनकी इस काम के लिए सराहना करते हैं। सभी का कहना है कि रामगोविंद जो कर रहे हैं वह तो हर किसी को करना चाहिए।
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