Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    एक भारतीय ऐसा भी: रूस में इनके नाम पर है एक सड़क, जर्मनी और फ्रांस में स्‍थापित हैं आदमकद मूर्तियां

    By Deepak Kumar PandeyEdited By:
    Updated: Sun, 27 Nov 2022 11:06 AM (IST)

    अखंड भारत के महामानव विलक्षण प्रतिभा के धनी प्रसिद्ध साहित्यकार इतिहास पुरातत्ववेत्ता प्राचीन लिपि मर्मज्ञ स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी बहुभाषी विद्वान और पाटलिपुत्र अखबार के संपादक रहे डाॅ. काशी प्रसाद जायसवाल की जयंती शनिवार को मनाई गई। उनकी जयंती पर 141वें विश्‍व विधि दिवस का आयोजन हुआ।

    Hero Image
    धनबाद में अधिवक्‍ताओं ने डॉक्‍टर जायसवाल को श्रद्धांजलि दी।

    धनबाद [आशीष सिंह]: अखंड भारत के महामानव, विलक्षण प्रतिभा के धनी, प्रसिद्ध साहित्यकार, इतिहास, पुरातत्ववेत्ता, प्राचीन लिपि मर्मज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी, बहुभाषी विद्वान और पाटलिपुत्र अखबार के संपादक रहे डाॅ. काशी प्रसाद जायसवाल की जयंती शनिवार को मनाई गई। उनकी जयंती पर 141वें विश्‍व विधि दिवस का आयोजन हुआ। धनबाद में अधिवक्‍ताओं ने डॉक्‍टर जायसवाल को श्रद्धांजलि दी। अगर आपको पता ना हो तो बता दें कि ये ऐसे भारतीय हैं, जिनके नाम पर रूस की एक सड़क का नाम है तो जर्मनी और फ्रांस में आदमकद मूर्तियां लगी हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    डॉ. काशी जायसवाल की जयंती पर धनबाद जिला कांग्रेस कमेटी के महासचिव संजय जायसवाल ने इनके बार में कई अनछुए तथ्य उजागर किए। उन्‍होंने बताया कि डाॅ. जायसवाल ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से प्राचीन इतिहास में एमए व बैरिस्टर की पढ़ाई की। कोलकाता विश्वविद्यालय के तत्कालीन उप कुलपति आशुतोष मुखर्जी उनकी प्रतिभा के कायल थे। मुखर्जी ने उन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय में इतिहास का प्रोफेसर नियुक्त किया। हालांकि अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण वह अधिक दिन तक प्राध्यापक नहीं रहे। क्रांतिकारी लाला हरदयाल, मैडम कामा, राजा महेंद्र प्रताप, श्यामजी कृष्ण वर्मा उनके समकालीन थे।

    1911 में डॉ. जायसवाल ने कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की। बाद में पटना में उच्च न्यायालय बनने पर वह पटना उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करने लगे। वकालत उनका पेशा था, लेकिन रुचि इतिहास और अनुसंधान में थी। दुनिया की कठिनतम भाषा चीनी सीखने के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से छात्रवृत्ति मिली। 1935 में राॅयल एशियाटिक सोसाइटी ने लंदन में भारतीय मुद्रा पर व्याख्यान देने के लिए उन्हें आमंत्रित किया, जिसे पूरी दुनिया ने सराहा था। दुनिया के मुद्रा शास्त्रियों ने उन्हें द्वितीय सर एलेग्जेंडर कैनिंग हुम से संबोधित किया था। डाॅ. जायसवाल इंडियन ओरिएंटल कांफ्रेंस (छठा अधिवेशन बड़ोदा) हिंदी साहित्य सम्मेलन, इतिहास परिषद (इंदौर अधिवेशन) बिहार प्रांतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन, (भागलपुर अधिवेशन) के सभापति रहे। संजय जायसवाल ने कहा कि देश ने महान विभूतियों को असमय खोया है। स्वामी विवेकानंद, डाॅ. काशी प्रसाद जायसवाल उनमें से हैं, जो देश को, मानव समाज को, सभ्यता को नई दिशा दे सकते थे।

    अपनी रचनाओं से भारतीय राजाओं के तानाशाह होने की यूरोपीय कल्पना का किया अंत

    डाॅ. जायसवाल ने प्राचीन इतिहास में भारतीय राजाओं के तानाशाह होने की यूरोपीय कपोल कल्पना का अंत किया था और अपने लेखों से प्राचीन भारत में गणराज्य के अस्तित्व को सिद्ध किया। दुनिया को बताया कि गणतंत्र की परंपरा विदेशी नहीं, बल्कि भारत का पुरातन परंपरा में शुमार है। अंग्रेजी शासकों ने भारतीयों को इस बात के लिए हमेशा शर्मिंदगी का अहसास कराया था।

    जायसवाल ने अपने लेख में मापदंडों को निर्मूल बताया था। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक हिंदू पाॅलिटी (1918) को यह बताने का श्रेय दिया जाता है कि प्रतिनिधित्व और सामूहिक निर्णय लेने के सिद्धांतों के आधार पर भारतीय गणराज्य प्राचीन दुनिया के सबसे पुराने और शक्तिशाली है। प्राचीन इतिहास में सबसे बड़ी यह उपलब्धि रही कि मौर्य काल से गुप्त काल के बीच के इतिहास, जो अंधकार युग के नाम से जाना जाता था, उसका सही प्रामाणिक और सुव्यवस्थित क्रम इन्‍होंने प्रस्तुत किया।

    राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने बताया था- कोई भी जायसवाल समान नहीं

    डाॅक्‍टर काशी प्रसाद जायसवाल एक सफल अधिवक्ता थे। उनके व्यक्तित्व की व्याख्या अनेक रचनाकारों और विद्वानों ने तरह तरह से की है। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने उन्हें घमंडाचार्य और बैरिस्टर साहब का दर्जा दिया। रामचंद्र शुक्ल ने कोटाधीश तो प्रथम राष्ट्रपति देशरत्‍न डाॅ. राजेंद्र प्रसाद ने सोशल रिफाॅर्मर ने बताया। पंडित राहुल सांकृत्यायन ने तो डॉक्‍टर जायसवाल को अपना गुरु तक माना। अंग्रेजों ने डेंजरस रेवोल्यूशनरी और तत्कालीन भारत का सबसे क्लेवरेस्ट इंडियन कहा। पीसी मनुक ने जायसवाल इंटरनेशनल, मोहनलाल महतो वियोगी ने विद्या महोदधि का दर्जा दिया। विश्‍वकवि रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि डाॅ. जायसवाल मेरी कला के सच्चे और सटीक पारखी थे। 1930 में डाॅ. जायसवाल के निधन के बाद राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने हैदराबाद से प्रकाशित होने वाली एक पत्रिका कल्पना में लिखा था कि अब जब सूर्य, चंद्रमा, वरुण, कुबेर, इंद्र, बृहस्पति, शमी और ब्रम्हाणी के प्रेम और प्रोत्साहन का रसास्वादन किया है तो स्पष्ट है कि इसमें से कोई भी जायसवाल के समान नहीं है।

    35 भाषाओं के ज्ञाता थे काशी प्रसाद

    डाॅक्‍टर जायसवाल दुनिया की 35 भाषाओं के ज्ञाता थे। जर्मन और फ्रांस भाषा पर उन्‍होंने किताब भी लिखी। नेपाल के इतिहास का संपादन भी किया। भारतीय संस्कृति को उन्होंने उजागर किया। भारतीय सभ्यता और संस्कृति को विश्‍व में चमका दिया था। हिंदू पाॅलिटी पुस्तक उनकी चर्चित किताब थी, जो क्रांतिकारियों को उत्साहित और प्रेरित करती थी। रूस में इनके नाम पर डाॅक्‍टर काशी प्रसाद जायसवाल मार्ग है। जर्मनी और फ्रांस में इनकी आदमकद मूर्तियां लगाई गई हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने डिस्कवरी ऑफ इंडिया में डाॅक्‍टर जायसवाल को प्राचीन इतिहास का सबसे बड़ा विद्वान बताया। बिहार सरकार ने 1950 में डाॅ काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान की स्थापना की।

    1981 में बिहार सरकार ने डाॅक्‍टर जायसवाल का जन्मशती कार्यक्रम आयोजित कर उनके सम्मान में डाॅक्‍टर केपी जायसवाल मेमोरेशन वाॅल्यूम प्रकाशित की। इस अवसर पर भारत सरकार के तत्कालीन उपराष्ट्रपति हिदायतुल्ला ने उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया। काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान पटना सोशल साइंस शोध का बहुत प्रसिद्ध संस्थान है। प्रख्यात समाजशास्त्री दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. डाॅक्‍टर रतन लाल ने काशी प्रसाद जायसवाल पर शोध किया है और जायसवाल की जीवनी पर कई पुस्तकें भी लिखीं।