मलूटी में मंदिर ही नहीं तालाब भी मिट गए
धनबाद : झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमा पर दुमका के शिकारीपाड़ा प्रखंड में स्थित मंदिरों
धनबाद : झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमा पर दुमका के शिकारीपाड़ा प्रखंड में स्थित मंदिरों के गांव मलूटी में कभी 108 तालाब हुआ करते थे जो अब बच-बचाकर गिनती के शेष हैं। ग्रामीणों के मुताबिक गांव के चारों तरफ 50 से 60 तालाबों का अस्तित्व मिल जाए तो गनीमत है। अधिकांश तालाब खेत हो चुके हैं। प्रखंड प्रशासन का भी स्पष्ट कहना है कि 10 से 15 तालाब ही शेष बचे दिखते हैं, शेष को ढूंढ़ने व चिह्नित करने की दरकार पड़ेगी। तकरीबन 1720 से लेकर 1845 के बीच मंदिरों के इस गांव को बसाने के क्रम में राजा बाज बसंत राय ने यहां 108 मंदिरों के साथ इतनी ही संख्या में तालाबों का भी निर्माण कराया था। वक्त के साथ यहां मंदिरों की संख्या घट कर 72 रह गई है।
फिलहाल इस ऐतिहासिक गांव की धाíमक व सांस्कृतिक महत्ता को देखते हुए सूबे की सरकार की निगाह गंभीर है। शेष बचे मंदिरों को संरक्षित करने की दिशा में पहल शुरू हुई है। पिछले दिनों दुमका एयरपोर्ट मैदान पर हुई एक जनसभा के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद 13.60 करोड़ रुपये की लागत से शुरू हुई इस जीर्णोद्धार योजना का ऑनलाइन उद्घाटन कर मलूटी को राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय फलक पर फिर से जीवंत करने की इच्छा जता चुके हैं। झारखंड सरकार की मंशा है कि इस गांव को पर्यटन की दृष्टि से मॉडल के तौर पर विकसित किया जाए। सो, सड़क व अन्य आधारभूत संरचनाओं को बहाल करने की दिशा में भी पहल हुई है। सुड़ीचुआ से मलूटी गांव तक जाने वाली मुख्य पथ करोड़ों की लागत से बनाई गई है। पर, दुर्भाग्य से सरकार की निगाह मिट चुके तालाबों पर अब तक नहीं गई है।
मलूटी गांव में प्रवेश करते ही गांव के मुहाने पर ही राजेर बाड़ी के निकट एक बड़ा और सजीव तालाब है। गांव के बुजुर्ग व मौलीक्षा मंदिर सेवा समिति के सचिव कुमुदवरण राय बताते हैं कि इस तालाब का नाम आनंद सागर है जो राजा आनंद चंद्र राय के नाम पर है। कुमुद के मुताबिक इस तालाब का दायरा तकरीबन 52 बीघा में फैला था जो समय के थोड़ा सिकुड़ भी गया है। अब इस तालाब को सरकार ने अपने जिम्मे ले लिया है। ग्रामीण बताते हैं कि समय के साथ तकरीबन 40 से 45 तालाबों का अस्तित्व पूरी तरह से खत्म हो चुका है। शेष बचे तालाबों में अधिकांश अनुपयोगी है। गांव के इर्द-गिर्द स्थित कुछ तालाब का ही इस्तेमाल ग्रामीण कर पा रहे हैं।
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मलूटी का इतिहास
मलूटी के सर्वाधिक बुजुर्ग व मंदिरों के संरक्षण के लिए सबसे अधिक संघर्ष करने वाले गोपाल दास मुखर्जी बताते हैं कि वर्ष 1680 में राजा बसंत राय ने अपनी राजधानी मलूटी को बनाई और वे तथा उनके वंशजों ने मिलकर यहां मंदिरों का गांव बसाये थे। राजा व इनके वंशजों ने स्थापत्य कला एवं टेरोकोटा शैली में 108 मंदिर व इतने ही तालाबों का निर्माण करवाया था। तकरीबन 300 मकानों के इस गांव में ऐतिहासिक, धाíमक व पुरातात्विक महत्व का संगम है। गांव राजेर बाड़ी, मण्यम बाड़ी एवं छय तरफ में बंटा है। गांवों के चारों ओर तालाबों का निर्माण करवाया गया था। वक्त के साथ अब यहां मात्र 72 मंदिर एवं तकरीबन 68 से 70 तालाब शेष बचे हैं।
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कोट-1
सरकार काफी गंभीरता से मलूटी के संरक्षण व संवर्द्धन की दिशा में पहल कर रही है। अर्से बाद मलूटी के समग्र विकास की दिशा में प्रयास शुरु होना काफी सुखद है। मंदिरों के संरक्षण के साथ अगर यहां के तालाबों का भी जीर्णोद्धार हो जाए तो चार चांद लग सकता है। इस दिशा में भी प्रयास की जरुरत है।
सोनाली चटर्जी, सचिव, शिव दुर्गा ग्रामीण उन्नयन समिति
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कोट-2
मलूटी में 108 मंदिर ही नहीं 108 तालाब भी हुआ करता था। गांव के चारों ओर तालाब था लेकिन समय के साथ इसका अस्तित्व मिट चुका है। गांव के बाहर के कई तालाबों का कोई अता-पता नहीं है। सरकार अगर इन तालाबों को ढूंढ़ कर फिर से जीर्णोद्धार कर दे तो इस गांव में आíथक समृद्धि का मार्ग स्वत: प्रशस्त हो जाएगा।
कुमुदवरण राय, राजा आनंद चंद्र राय के वंशज
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कोट- 3
मलूटी में स्थित 108 तालाबों में मात्र 10 से 15 तालाब ही कारगर हैं शेष अत्यंत जीर्णशीर्ण हाल में है। इन्हें बहुत ही परिश्रम कर ढूंढ़ना पड़ेगा। वैसे गांव के चारों ओर तालाब थे और इनका निशान भी मिलता है इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है। चूंकि 108 तालाबों के जीर्णोद्धार का काम वृहत्तर है। जहां तक जानकारी है कि इन तालाबों के जीर्णोद्धार के लिए प्रखंड नहीं, बल्कि दूसरे विभागों के द्वारा प्रस्ताव तैयार जिला प्रशासन से स्वीकृति मांग गई थी। इससे ज्यादा कोई जानकारी प्रखंड प्रशासन के पास नहीं है।
अर¨वद कुमार, बीडीओ, शिकारीपाड़ा