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भाषाई आंदोलन की कोख से निकली थी झरिया एकेडमी, सेठ रामजश के योगदान को भूलना नामुमकिन Dhanbad News

एक दिन परिसर के मैदान में फुटबॉल खेलते समय छात्रों में कुछ झगड़ा हुआ और मारपीट हो गई। इतना ही नहीं बीच-बचाव करने वाले चार शिक्षक जो हिंदी उर्दू और अंग्रेजी के थे भी पिट गए।

By MritunjayEdited By: Published: Sun, 01 Sep 2019 09:52 AM (IST)Updated: Sun, 01 Sep 2019 09:52 AM (IST)
भाषाई आंदोलन की कोख से निकली थी झरिया एकेडमी, सेठ रामजश के योगदान को भूलना नामुमकिन Dhanbad News

धनबाद [बंनखंडी मिश्र ]। यह बात 1937 की है, जब झरिया नगर में केवल एक उच्च विद्यालय राज स्कूल के नाम पर चलता था। उसी भवन में 2017 तक राजा शिव प्रसाद कॉलेज यानी आरएसपी कॉलेज चलता था। उस भवन की जिस दीवार पर आज राजा शिव प्रसाद कॉलेज अंकित है, वह वस्तुत: राज स्कूल का छात्रावास-खंड था। इस राज स्कूल में काफी लड़के पढ़ते थे। हिन्दी, उर्दू पढऩे वाले अपेक्षाकृत कम थे। शिक्षकों में चार ऐसे थे, जो अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू पढ़ाते थे। शेष बच्चों को पढ़ाने के लिए दूसरी भाषा के शिक्षक थे। विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री रमेशचन्द्र भट्टाचार्य थे।

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एक दिन परिसर के मैदान में, फुटबॉल खेलते समय, छात्रों में कुछ झगड़ा हुआ और मारपीट हो गई। इतना ही नहीं बीच-बचाव करने वाले चार शिक्षक, जो हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी के थे, भी पिट गए। यह सब आकस्मिक नहीं हुआ था। उन दिनों मानभूम जिले में (धनबाद जिसका एक सबडिवीजन था) भाषाई आंदोलन उग्ररूप से चल रहा था, जिस ज्वाला की लपट ने राज स्कूल को भी अपने आगोश में ले लिया था। पिटनेवाले चार शिक्षक, जंग बहादुर प्रसाद, पंडित यागेश्वर मिश्र, विष्णुधारी सिंह और निसार अहमद थे। छात्रों में ङ्क्षहदी, उर्दू और अंग्रेजी पढऩेवाले की संख्या लगभग 40 थी। बात तो छोटी सी थी, लेकिन भाषाई चिंगारी को अफवाहों ने पुरजोर हवा दी। दोपहर तक सारे हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी भाषी छात्र और शिक्षक सड़क पर आ गए। उनके लिए चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था।

संयोग से, सेठ रामजश के इकलौते सुपुत्र किशोरवय प्रभाष घर पर रहकर अपनी पढ़ाई करते थे और सुबह-शाम पंडित योगेश्वर मिश्र उन्हें पढ़ाते थे। शाम को विषण्ण मुद्रा में जब, युवा शिक्षक मिश्रजी, सेठजी के आवास पर पहुंचे, तो सेठजी ने उन्हें अपने ऑफिस में बुलाया और सरल भाव से पूछा- क्यों मास्टर! आज स्कूल में बड़ी जोर की मारपीट हो गई? इस पर मिश्रजी ने सेठजी को प्रत्युत्तर दिया कि, हां, यह घटना इसलिए ज्यादा दुखद हो गयी है कि चालीस बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो गया है।

सेठजी ने मुस्कुराते हुए ही उनसे अगला सवाल पूछा- अब आप मास्टर लोग क्या करोगे? इस पर मिश्रजी ने जवाब दिया- यही चिंता तो मुझे और मेरे अन्य साथियों का भी सता रही है। बच्चों का क्या होगा?

सेठजी ने ठहाका मारते हुए पूछा- यदि तुमलोगों को जगह मिल जाए, तो अपना स्कूल चला सकते हो? अचानक मिश्रजी ने घोर अंधकार में बिजली की चमक देखी। बोले- जगह मिल जाय, तो कल से ही स्कूल शुरू कर दे सकते हैं। हम चारों शिक्षक सक्षम हैं। बच्चों का भविष्य बचाना जरूरी है।

फिर सेठजी, मिश्रजी को अपनी धर्मशाला ले गए। ऊपर-नीचे, पूरे मकान को दिखलाया। बोले- बच्चों के बैठने के लिए बेंच-डेस्क तो दो-चार दिन में बनवा देंगे। तबतक दरी पर बैठाना। ऑफिस के लिए, टेबुल-कुर्सी, आलमारी, घड़ी वगैरह, हमारे स्टोर से चुनकर ले लो। कल सुबह तक सभी गार्जियनों को खबर कर दो, बच्चों का भविष्य उज्ज्वल ही बना रहेगा। रही बात तुम मास्टरों की तनख्वाह की, तो सबको अभी के वेतन से बीस-बीस रूपये बढ़ाकर, मेरी ओर से भुगतान होगा। बच्चों से कोई फीस नहीं लेनी है।

मिश्रजी और उनके साथियों के सम्मुख फैला घोर अंधकार, प्रकाश पुंज में बदल गया। रातों-रात उनलोगों ने छात्रों के घर-घर जाकर यह शुभ-समाचार सुनाया। अगले दिन स्कूल खुल गया। नए विद्यालय में ङ्क्षहदी, उर्दू, अंग्रेजी की पढ़ाई की व्यवस्था की गई। संस्था का नाम 'झरिया एकेडमी' रखा गया। इतनी व्यवस्था के लिए न तो नगर के किसी सेठ-साहूकार से और न ही राजा साहब से कुछ मांगा गया।

लेकिन, छिद्रान्वेषी स्वभाव के कुछ महानुभावों ने, न केवल राज परिवार, बल्कि रामजश के चाचा सेठ हरदेवदास के पास तक यह खबर पहुंचा दी। जहां तक बन पड़ा, नमक-मिर्च भी लगाया। पूरे शहर क्षेत्र में दो दिनों तक चर्चा का विषय बना रहा यह विद्यालय। रामजश ने छोटे-कुंवर दुर्गा प्रसाद जी से बात की। उनसे आग्रह किया कि शीघ्र ही हम, अभिभावकों और आम नागरिकों की एक सार्वजनिक सभा बुलाते हैं, उसमें आप राज-परिवार का प्रतिनिधित्व कीजिए। कुंवरजी सहर्ष राजी हो गए, उन्होंने अपनी सहज उदारता का परिचय दिया।

अगले सप्ताह झरिया एकेडमी के बाहर सीढिय़ों और सड़क पर कुंवर साहब की अध्यक्षता में सार्वजनिक सभा आयोजित की गई। आगत प्रबुद्ध सज्जनों के भाषण हुए। एकाधिक कटु आलोचक ने प्रस्ताव रखा- आपके चाचा सेठ हरदेवदासजी ने स्टेशन के पास जो डीएवी मिडिल स्कूल खोल रखा है, उसी में इस विद्यालय को मिला लीजिए, तो खर्चे से बचिएगा। सेठ रामजश ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। डीएवी स्कूल, तो मिडिल स्तर तक है और एक अलग सांस्कृतिक व्यवस्था के अन्दर चल रहा है। इस एकेडमी का बुनियादी चरित्र राष्ट्रीय है, जिसमें हिंदी-मुसलमान सभी छात्र और शिक्षक शिरकत करेंगे। रही बात मिलाने की, मैं अपने चाचाजी के अभियान में भी सहर्ष सहयोग करने के लिए तैयार हूं। सेठजी के इस स्पष्टीकरण से मामला स्वत: शांत हो गया।


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