चीन के बेलन को टक्कर दे रहा झारखंड का यह माओवाद प्रभावित गांव
धनबाद से डेढ़ दर्जन ट्रेनों का परिचालन अब बंद हो चुका है अथवा किसी और स्टेशन से वे ट्रेन खुल रही हैं। अभी तक टुंडी के गांवों के बेलन बनाने वालों ने ट्रेन को अपना बाजार बनाया है
धनबाद, गौतम कुमार ओझा। मां के हाथों की रोटी की मिठास की पहचान है बेलन, तो गृहिणी के अचूक हथियार के लिए बदनाम भी। यही बेलन माओवाद (नक्सलग्रस्त) से प्रभावित टुंडी के दर्जनों गांवों में रहने वाले सैकड़ों परिवारों के लिए समृद्धि की इबादत लिख रहा है। उनके घर का अर्थतंत्र यह बेलन ही तैयार करता है। टुंडी में बने बेलन में खूबी इतनी है कि देश भर से डिमांड आती रहती है। अब चीन से आयात होकर आया सस्ता बेलन भी बाजार में उपलब्ध है। सो, टुंडी के गांवों में बेलन बनाने वालों को अपने पुश्तैनी कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए चीनी उत्पाद से टक्कर लेनी पड़ रही है।
इस पुश्तैनी धंधे से जुड़े छाताबाद के मुमताज काजी कहते हैं, करम, कुरची और पेशर की लकड़ी के बेलन को महिलाएं अधिक पसंद करती है। यह अधिक टिकाऊ होते हैं, चिकनाहट भी बेजोड़ आती है। बेलन की जुंबिश के साथ ही रोटी गोल होने लगती है। बेलन की लकड़ी के लिए हर साल करम, कुरची और पेशर के पौधे लगाते हैं। गांव के ही कलीम काजी और हमीद अंसारी बताते हैं, घर के बूढ़े बुजुर्ग बेलन बनाते हैं। युवाओं की जवाबदेही उनको बेचने के लिए फेरी लगाने की है। धनबाद स्टेशन से चलने वाली सभी ट्रेन में फेरी लगाई जाती है। लगातार 15-15 दिन तक ट्रेनों में बेलन बेचने के लिए युवा सफर करते रहते हैं। रोचक तथ्य यह है कि बेलन बेचने के सिलसिले में गांव के अधिकतर युवा देश के एक दर्जन से अधिक प्रदेशों की सैर कर चुके हैं।
मोबाइल पर मिलता है बेलन का ऑर्डरः गांव के रज्जाक काजी और आजाद काजी ने बताया कि मोबाइल आने से उन लोगों को फायदा हुआ है। ट्रेन में सफर करने वाले यात्री मोबाइल नंबर लेते हैं। कभी यात्रा करते हैं तो फोन कर ट्रेन में बुला लेते हैं और बेलन खरीदते हैं। यह नया ट्रेंड हैं।
इन गांवों में तैयार हो रहे बेलन : छाताबाद, काशीटांड, अगलीबाद, गोसाईडीह, अदरो, करमाटांड, बेगनरिया, चुनकडीहा, पतरो, दुर्गाडीह, सालपहाड़, कमयाडीह, केशका आदि। देश के इन राज्यों तक बिक रहे बेलन :
झारखंड, बिहार, पंजाब, दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, उत्तराखंड राज्यों में यहां का बेलन पसंद किया जाता है।
कई ट्रेनों कापरिचालन रद होने से बढ़ी चुनौती : धनबाद से डेढ़ दर्जन ट्रेनों का परिचालन अब बंद हो चुका है अथवा किसी और स्टेशन से वे ट्रेन खुल रही हैं। अभी तक टुंडी के गांवों के बेलन बनाने वालों ने ट्रेन को अपना बाजार बनाया है। ट्रेन का परिचालन बंद होने से चुनौती बढ़ गई है। अब पहले की तुलना में कम ट्रेनों में बेलन बेच पा रहे हैं। लकड़ी की कीमत बढऩे, धातु के बेलन का बाजार बढऩे और चीनी उत्पादों के इस बाजार में प्रवेश के कारण टुंडी के बेलन निर्माताओं को सोचना पड़ रहा है। बेलन के पुश्तैनी कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए टुंडी के गांवों के लोग सरकार की तरफ आस भरी निगाहों से देख रहे हैं।
सरकार से आस
- केंद्र की कौशल विकास योजना के दायरे में उनके काम को भी लाया जाए।
- बेलन बनाने की आधुनिक मशीन खरीदने को बिना ब्याज का ऋण मिले।
- बेलन बनाने की लकड़ी के लिए पौधरोपण में सरकारी सहायता मिले।