World Environment Day 2019: जहां कोयला खदान का था मलबा, वहां छा गई हरियाली
पार्क में आध्यात्मिक प्रवृत्ति के लोग भी आते हैं। पार्क में सबसे ऊपर मां काली का मंदिर है। इस मंदिर में विवाह समारोह भी होता है।
झरिया, राजीव शुक्ला। हवा में गैस की गंध, धुएं के गुबार, भूमिगत आग से दहकती जमीन, जलता कोयला। ऐसी ही है धनबाद के झरिया इलाके की भयावह तस्वीर। अत्यधिक प्रदूषित शहरों में शुमार झरिया के नजदीक नार्थ तिसरा इलाके में है गोकुल पार्क। 22 हेक्टेयर में फैले पार्क में 33 हजार से अधिक पेड़ पौधे हैं। यहां की आबोहवा में गैस की कड़ी गंध का अहसास नहीं होता। हवा में फूलों की महक और लहलहाते पेड़ पौधे ऐसी नैसर्गिक आभा पेश करते हैं कि हर आने वाले का मन यहां खो जाता है। अब हैरानगी की बात भी जान लें। यह पार्क कोयला खदान से निकले मलबे पर बनाया गया है। कंकड़ पत्थरों के ऊपर ऐसी हरियाली उगाई गई है जो हवा के जहर को सोख रही है।
एक समय था जब इस इलाके से गुजरने वाले लोगों के बाल धूल से भर जाते थे, इतना धुआं होता था कि नाक पर रुमाल रखनी पड़ती थी। भारत कोकिंग कोल कंपनी के लिए कोयला उत्खनन के दौरान निकले मलबे जगह जगह पहाड़ की तरह दिखते थे। ऐसे ही मलबे कोयलांचल में प्रदूषण बढ़ा रहे हैं। ऐसे ही मलबा पर पार्क बनाने की बीसीसीएल के आला अधिकारियों ने कार्ययोजना बनाई। इको रेस्टोरेशन के तहत गोकुल पार्क का निर्माण शुरू हुआ। कंकड़ पत्थर पर मिïट्टी डाली गई। ऐसी घास लगाई गई जो जल्दी नहीं सूखे। 2014 में पार्क बन कर तैयार। मलबे के पहाड़ पर बना गोकुल पार्क करीब 22 हेक्टेयर इलाके में फैला है। इसमें आम, अमरूद, शीशम, नीम, गुलाब, गेंदा समेत अलग अलग प्रजाति के 33600 पौधे हैं। अब यह पौधे पेड़ बन चुके हैं।
पार्क में बना है मां महाकाली का मंदिरः पार्क में आध्यात्मिक प्रवृत्ति के लोग भी आते हैं। पार्क में सबसे ऊपर मां काली का मंदिर है। इस मंदिर में हमेशा विवाह होते रहता है।
झरिया के लोग चाहते हैं कि और मलबे पर भी पार्क बनेः झरिया के अरुण जायसवाल, मनोज साव, अशोक साव दारा, पूजा देवी एवं तिसरा के छोटू पांडेय बोले कि कोयलांचल की प्रदूषित हवा को साफ करने के लिए कोयला खदानों से निकले और मलबे पर भी पार्क बनना चाहिए।
गोकुल पार्क पर्यावरण संरक्षण की दिशा में शानदार कदम है। इसे और बेहतर का काम लगातार चल रहा है।
-कल्याणजी प्रसाद, जीएम, बीसीसीएल लोदना क्षेत्र
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