Move to Jagran APP

आपातकाल में 19 माह तक जेल में रहे थे बख्शी

धनबाद सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे एसके बख्शी धनबाद में ट्रेड यूनियन आंदोलन के बड़ा चेहरा थे। बक्शी वह आखिरी नेता थे जो राजनीति से अलग विशुद्ध मजदूर आंदोलन में यकीन रखते थे।

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Apr 2021 01:26 AM (IST)Updated: Mon, 19 Apr 2021 01:26 AM (IST)
आपातकाल में 19 माह तक जेल में रहे थे बख्शी

धनबाद : सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे एसके बख्शी धनबाद में ट्रेड यूनियन आंदोलन के बड़ा चेहरा थे। बक्शी वह आखिरी नेता थे जो राजनीति से अलग विशुद्ध मजदूर आंदोलन में यकीन रखते थे। उनके चले जाने से धनबाद में ट्रेड यूनियन आंदोलन का आखरी चेहरा भी गुम हो गया। वह बख्शी ही थे जो सिर्फ और सिर्फ मजदूरों के सवाल पर सभी यूनियनों को साथ लेकर चलने का माद्दा रखते थे। अभी महीने भर पहले ही वह मिले तो बोले अरे कहां भटक रहे हो, हम लोग को सबको साथ आना होगा। मोदी सब बेच रहा है। हमने भी कह दिया दादा हम लोग कमजोर होंगे तो लोग बेचेंगे ही। यह संस्मरण है लाल झंडा के धुर विरोधी भारतीय मजदूर संघ के प्रांतीय महामंत्री बिदेश्वरी प्रसाद का। प्रसाद ने कहा कि इस उम्र में भी ट्रेड यूनियनों के आंदोलन के प्रति इतना चितित रहना बताता है की बख्शी सिर्फ और सिर्फ मजदूर आंदोलन के लिए ही जिए। वह सही मायनों में आंदोलनकारी थे। उनके निधन से धनबाद में ट्रेड यूनियन आंदोलन का एक बड़ा अध्याय समाप्त हो गया।

loksabha election banner

बक्शी को याद करते हुए जेबीसीसीआई सदस्य व सीटू नेता मानस चटर्जी ने बताया कि वह शुरू से ही आंदोलनकारी थे। आपातकाल के दौरान उन्होंने इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। परिणाम स्वरूप सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। बक्शी 19 महीने तक जेल में रहे। बख्शी ने कई बार विधानसभा चुनाव भी लड़ा। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली।

मा‌र्क्सवादी समन्वय समिति के जिला अध्यक्ष हरिप्रसाद पप्पू के मुताबिक एके राय, एसके बख्शी व आनंद महतो लाल झंडा के तीन प्रमुख आंदोलनकारी धनबाद में थे। उनमें से आज बख्शी भी हमारा साथ छोड़ गए। पप्पू ने बताया कि बख्शी ने 1977 में पहला चुनाव लड़ा था। मा‌र्क्सवादी समन्वय समिति के टिकट पर सिदरी से लेकिन उन्हें विशेष सफलता नहीं मिली। इसके बाद 1980 में उन्होंने निरसा से भी चुनाव लड़ा और 2005 में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मा‌र्क्सवादी के टिकट से झरिया से चुनाव लड़ा। लेकिन उन्हें विशेष सफलता नहीं मिली। आखिरी चुनाव में तकरीबन 9000 वोट आए थे। इसके बाद उन्होंने चुनावी राजनीति छोड़ दी। वह जेबीसीसीआई के सदस्य रहे, अपैक्स कमेटी के सदस्य रहे, सीटू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बने। स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्होंने पद त्याग दिया। 1960 से अब तक का उनका पूरा जीवन आंदोलन से भरा रहा। सिदरी खाद कारखाना बंदी को लेकर के भी उन्होंने विशाल आंदोलन किया था।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.