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गलत नीति व घोर अनदेखी से बंद हुआ था सिंदरी कारखाना

देश को हरित क्रांति के जरिए आत्मनिर्भरता की सौगात देने वाला सिंदरी समय के साथ पिछड़ता चला गया।

By Sachin MishraEdited By: Published: Tue, 22 May 2018 12:30 PM (IST)Updated: Tue, 22 May 2018 12:30 PM (IST)
गलत नीति व घोर अनदेखी से बंद हुआ था सिंदरी कारखाना

बरमेश्वर, सिंदरी। सुनहरे भविष्य की ओर कदम बढ़ा चुके सिंदरी का अतीत कम गौरवशाली नहीं रहा है। स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू सिंदरी को अपना दत्तक पुत्र मानते थे। आजाद भारत में सिंदरी खाद कारखाने की स्थापना कर पंडित नेहरू ने एक ऐसी इबादत लिख दी थी जो भारत के इतिहास में अमर हो गया था। नेहरू के प्रधानमंत्रित्व के कार्यकाल में देश में जितने भी विदेशी मेहमान आए, सभी को उन्होंने सिंदरी खाद कारखाने का भ्रमण करवाया। सोवियत रूस के निकोलाई बुलगानिन, सोवियत रूस के ही निकिता ख्रश्चेव, युगोस्लाविया के मार्शल टीटो, चीन के चाउ एन लाई, बंगलादेश के शेख मुजीबुर्रहमान, यमन के राष्ट्राध्यक्ष उन मेहमानों में शुमार थे जिन्हें पंडित नेहरू ने गर्व से सिंदरी खाद कारखाने का भ्रमण करवाया था।

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देश को हरित क्रांति के जरिए आत्मनिर्भरता की सौगात देने वाला सिंदरी समय के साथ पिछड़ता चला गया। पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल में सिंदरी उर्वरक उत्पादन के क्षेत्र में अपना परचम लहराता रहा। परंतु प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव के कार्यकाल में सिंदरी को रुग्ण क्या घोषित किया गया, सिंदरी खाद कारखाना की अकाल मौत हो गई। जानकारों के अनुसार, राजनैतिक पहल का अभाव ही इसकी बंदी का कारण बना। 1951 में स्थापित सल्फेट प्लांट, अमोनिया प्लांट पुराने पड़ चुके थे । 1971 में भारत सरकार ने डेनमार्क के सल्फर तकनीकी पर आधारित रेशनलाइजेशन परियोजना की स्वीकृति सिंदरी के लिए दी। 170 करोड़ रुपये की लागत से रेशनलाइजेशन परियोजना निर्माण के बाद 24 घंटे भी उत्पादन नहीं दे सका।

उर्वरक विशेषज्ञों के अनुसार, सल्फर आधारित यूरिया उत्पादन की तकनीकी विश्व में कहीं भी सफल नहीं हुई थी। रेशनलाइजेशन प्रोजेक्ट के निर्माण का निर्णय भारत सरकार का था। परंतु प्रोजेक्ट के विफलता का दोष सिंदरी खाद कारखाना प्रबंधन के सर मढ़ दिया गया। रेशनलाइजेशन प्रोजेक्ट की विफलता के बाद 1976 में 400 करोड़ रुपये के लागत से मॉडर्नाइजेशन प्रोजेक्ट सिंदरी को दिया गया। नेप्था पर आधारित मॉडर्नाइजेशन प्रोजेक्ट काफी सफल रहा। परंतु प्रोजेक्ट में एक खामी थी । इस प्रोजेक्ट में प्रतिदिन 900 मीटिक टन अमोनिया और 1000 मीटिक टन यूरिया का उत्पादन होता था। मात्र 600 मीटिक टन अमोनिया से 1000 मीटिक टन यूरिया का उत्पादन हो जाता था। 300 मीटिक टन अमोनिया सरप्लस हो जाता था। सिंदरी खाद कारखाना को सब्सिडी यूरिया के उत्पादन पर मिलती थी।

सरप्लस अमोनिया से प्रतिदिन 600 मीटिक टन अतिरिक्त यूरिया बनाया जा सकता था। इस पर अतिरिक्त सब्सिडी मिलती तो सिंदरी खाद कारखाना फायदे में चलता । परंतु दुर्भाग्य सिंदरी खाद कारखाना का रहा कि यूरिया की उत्पादन क्षमता के विस्तार के गुहार की सरकार द्वारा लगातार अनदेखी की गयी। विवशता में सिंदरी खाद कारखाना प्रबंधन को अपना सरप्लस 300 मीटिक टन अमोनिया निर्माण लागत पर गोमिया एक्सप्लोसिव को बेचना पड़ता था। सिंदरी खाद कारखाना प्रबंधन ने 1980 से ही यूरिया उत्पादन क्षमता में विस्तार करने की मांग भारत सरकार से शुरु की थी। परंतु क्षमता विस्तार की स्वीकृति एनडीए के शासनकाल में 2002 में मिली। वह भी मुलायम सिंह यादव की अध्यक्षता में गठित पार्लियामेंट्री कमेटी ऑफ पब्लिक अफेयर्स की अनुशंसा पर। मगर तब तक काफी देर हो चुकी थी।

यह कैसी विडंबना थी कि सिंदरी खाद कारखाने का मॉडर्नाइजेशन प्रोजेक्ट और नेशनल फर्टिलाइजर का नांगल प्रोजेक्ट दोनों की तकनीकी और क्षमता एक समान थी। एनडीए सरकार के तत्कालीन रसायन और उर्वरक मंत्री सुखदेव सिंह ढींढसा के नांगल प्रेम के कारण नेशनल फर्टिलाइजर के नांगल संयंत्र को क्षमता विस्तार की सरकारी स्वीकृति मिल गई परंतु सिंदरी खाद कारखाने को कोई सरपरस्त नहीं मिला और यह बंद हो गया।


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