कॉमरेड, आपकी पॉलिटिक्स क्या है
नगर निकाय में नए साहब के आते ही चेहरा चमकाने और परिचय बढ़ाने की होड़ लग गई।
धनबाद, जेएनएन। कहने को तो कामरेड हैं। हर मंच और हर मौके पर खुद को साबित करने की पुरजोर वकालत भी करते हैं। औरों की तरह ढोल-नगाड़ा पीट भाजपा का विरोध भी करते हैं। यह तो ऊपर की बात हुई। और अंदर की। यह अब राज की बात नहीं रह गई है। जिस जमीन पर खड़े होकर राजनीति करते हैं उस पर इन दिनों ऐसे गुलाटी मार रहे हैं कि देखने वाले दंग रह जाते हैं। आउटसोर्सिग की मलाई के लिए कापासारा में महाभारत हुआ तो दोनों तरफ का खून बहा। कॉमरेड ऐसे उछल रहे थे कि उन्हें तो सिर्फ समर्थकों और मजदूरों की चिंता है। कुछ भी हो जाये मलाई पर उनकी जीभ नहीं लपलपाएगी। तीन दिन में ही कॉमरेड का इरादा बदल गया। मिल-बांटकर मलाई खाने का फार्मूला ढूंढ निकाला। भाईजी के पास पहुंच गए। बंद कमरे में गुफ्तगू की। मिल-बांट मलाई खाने का फार्मूला पेश किया। कमरे से बाहर निकले तो चेहरा चमक रहा था। भाजपाई भाईजी की शरण में शीश नवाने का तनिक भी लाज-शर्म का भाव नहीं। राज्यसभा चुनाव के समय पर कामरेड बिकने की कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। अब समर्थक जानना चाहते हैं-कॉमरेड, आपकी पॉलिटिक्स क्या है?
चेहरा देखना जरूरी है
नगर निकाय में नए साहब के आते ही चेहरा चमकाने और परिचय बढ़ाने की होड़ लग गई। यह स्वभाविक भी है। साहब नहीं पहचानेंगे को काम कैसे होगा? काम होगा तभी तो राजनीति भी होगी। सो, पार्षदों की टोली साहब के चैंबर में पहुंची। परिचय सत्र शुरू हुआ। एक-एक कर सब अपना नाम और क्षेत्र का नंबर बता रहे थे। बीच-बीच में पार्षद पति भी अपना बाजार बना रहे थे। पहले तो साहब ने पार्षद पतियों को नहीं टोका। यह सोच रही होगी कि गिनती के पार्षद पति होंगे। जब संख्या बढ़ तो साहब चकरा गए। उन्होंने पूछ डाला-आप सब पार्षद पति हैं? ठीक है। आपको तो पहचान लिए। पार्षद का भी चेहरा दिखाइये। चेहरा नहीं देखेंगे तो पहचानेंगे कैसे? अपने पार्षदों को पहचानना जरूरी है। अब पार्षद पति साहब को पत्नी को चेहरा दिखाएंगे।
अंत भला को सब भला
इन कोयला कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी कुछ ज्यादा ही धार्मिक नजर आ रहे हैं। सौ सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज पर वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हैं। दफ्तर आते-जाते ईश्वर का सुमिरन करते रहते हैं। मुलाकात करने वालों को भी ईश्वर की महिमा बताते हैं। इस ह्रदय परिवर्तन के क्या कारण हो सकते हैं? पता करने वालों ने कर लिया है। सेवानिवृत्ति की कगार पर खड़े सब साहब अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उनके पहले वाले साहबों का हस्त्र देख-सुन सबके होश फाख्ता हैं। डर सता रहा है कि कहीं सेवानिवृत्ति से पहले पुराने पाप का भूत सामने न आये। ऐसा हुआ तो पेंशन-पावना पर रूक जाएगी।