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Sensor Technology: भारत में पहली बार कोयला खदानों में स्वदेशी तकनीक से हुई जहरीली गैस की पहचान

एफबीजी(फाइबर ब्रैग ग्रेटिंग) तकनीक के प्रयोग से ऑप्टिकल फाइबर तैयार होता है। खदान के अंदर इसे बिछाते हैं। निश्चित स्थान पर सेंसर लगाते हैं। इसे एक उपकरण इंट्रोगेटर से जोड़ दिया जाता है। खदान मेंजहरीली गैस निकलती है तो उसके अणुओं को घनत्व के आधार पर सेंसर पहचान लेता है।

By MritunjayEdited By: Published: Sun, 24 Jan 2021 09:36 AM (IST)Updated: Sun, 24 Jan 2021 05:11 PM (IST)
Sensor Technology: भारत में पहली बार कोयला खदानों में स्वदेशी तकनीक से हुई जहरीली गैस की पहचान
रामनगर खदान में गैस का परीक्षण करते प्रोफेसर संजीव कुमार रघुवंशी (टोपी लगाए) व उनकी टीम।

धनबाद [ आशीष सिंह ]। पिछले साल चीन में कोयला खदान में गैस रिसाव से 18 कामगारों की जान चली गई। दो साल पहले साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड की कोरबा स्थित बगदेबा खदान में तीन कॢमयों की जहरीली गैस से जान गई। धनबाद की भी कोयला खदानों में गैस रिसाव की घटनाएं हुई हैं। ऐसे में  इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आइएसएम) धनबाद के इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. संजीव कुमार रघुवंशी और उनकी टीम ने स्वदेशी तकनीक से एफबीजी आधारित सेंसर तैयार किया है। यह खदान में रसायन और खतरनाक गैस की मौजूदगी बता देगा। खदान में जहरीली गैस निकलते ही तुरंत सूचना सेंसर से मिल जाएगी। इससे श्रमिकों की जान की सुरक्षा हो सकेगी। हाल में दामागोडिय़ा व रामनगर कोयला खदान में इस सेंसर का सफल परीक्षण भी कर लिया गया है। आस्ट्रेलिया व दक्षिण अफ्रीका की खदानों में ऐसी तकनीक आ गई है, पर भारत में पहली बार खदान में इसका परीक्षण हुआ है।

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प्रोफेसर रघुवंशी व उनकी टीम के सदस्य पूर्णेंदु शेखर पांडेय और यादवेन्द्र सिंह ने बताया कि 2018 में ही भारतीय परमाणु ऊर्जा विभाग ने यह प्रोजेक्ट दिया था। राजा रमन सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी इंदौर का भी सहयोग मिला है। हमारे सेंसर की संवेदनशीलता अभी तक 11.9 नैनोमीटर तक है। यह किसी भी खदान में लगा सकते हैं। जहां जहरीली गैस व खतरनाक रसायन की संभावना होती है। इससे पर्यावरण भी सुरक्षित रखा जा सकेगा। खतरनाक गैस के रिसाव की समय पर जानकारी से प्रदूषण रोका जा सकेगा। टीम लीडर प्रोफेसर रघुवंशी के नेतृत्व में सेंसर का परीक्षण रिसर्च स्कॉलर यादवेंद्र सिंह, पूर्णेंदु शेखर पांडेय,अजहर शादाब और मो. तौसीफ इकबाल अंसारी ने किया है।

ऐसे काम करता है एफबीजी सेंसर

प्रो.रघुवंशी ने बताया कि एफबीजी(फाइबर ब्रैग ग्रेटिंग) तकनीक के प्रयोग से ऑप्टिकल फाइबर तैयार होता है। खदान के अंदर इसे बिछाते हैं। निश्चित स्थान पर सेंसर लगाते हैं। इसे एक उपकरण इंट्रोगेटर से जोड़ दिया जाता है। जब खदान में कोई जहरीली गैस निकलती है तो उसके अणुओं को घनत्व के आधार पर सेंसर पहचान लेता है। सूचना  इंट्रोगेटर को देता है। इस सिस्टम में अलार्म सिस्टम भी लगा सकते हैं जो जहरीली गैस निकलने पर इंट्रोगेटर से दिए संदेश पर बजने लगेगा। इससे कामगार सुरक्षित स्थान पर जा सकते हैं। खदान में मौजूद खतरनाक रसायन की भी सेंसर जानकारी मिल सकती है। विशिष्ट रसायन और विशिष्ट गैस के अनुकूल सेंसर को बनाने के लिए एफबीजी पर विशेष नैनो पदार्थ का लेप चढ़ाया गया है। परीक्षण के परिणाम इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग (आइईईई) जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। रिपोर्ट भी बोर्ड ऑफ रिसर्च इन न्यूक्लियर साइंस में जमा हो चुकी है। कोयला खदानों में अक्सर इनमें मीथेन, कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी गैसों के रिसाव की सूचनाएं आती हैं। कोयले के अलावा अन्य  खदानों में भी जहरीली गैस का रिसाव होता है। इस तकनीक से उसका पता चल जाएगा। 

टिकाऊ है फाइबर सेंसर युक्ति

फाइबर सेंसर एक बार खदान में बिछा देने के बाद कई दशक तक काम करता है। इसलिए यह विधि लंबे समय तक गैस की पहचान में काम करती है। वर्तमान में कार्बन मोनोऑक्साइड व मल्टी गैस डिटेक्टर का प्रयोग गैस की पहचान के लिए हो रहा है। इसमें कामगार ही उपकरण ले जाता है। पूर्व में खदान में चिडिय़ा ले जाई जाती थी, यदि उसकी स्थिति बिगडऩे लगती थी तो पता लग जाता था कि खदान में गैस है।


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