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Baba Baidyanath Jyotirlinga Temple: सोमवारी को सूना बाबा का दरबार, देवघर पहुंचने से पहले ही रोक दिए जा रहे भक्‍त

Baba Baidyanath Deoghar श्रावण मास के पहले दिन देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर में लाखों श्रद़धालुओं का जुटान होता था लेकिन इस बार बाबा का दरबार सूना रहा। कोरोना के कारण मंदिर बंद है। श्रद़धालुओं को मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत नहीं है।

By MritunjayEdited By: Published: Sun, 25 Jul 2021 05:27 PM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 09:15 AM (IST)
Baba Baidyanath Jyotirlinga Temple: सोमवारी को सूना बाबा का दरबार, देवघर पहुंचने से पहले ही रोक दिए जा रहे भक्‍त
बाबा बैद्यनाथ मंदिर में सावन के पहले दिन सुबह सरकारी पूजा हुई ( फोटो जागरण)।

जागरण संवाददाता, देवघर। Sawan 2021 श्रावण महीना शुरू हो गया है। इस महीने झारखंड के देवघर में बाबा बैद्यनाथ को जलाभिषेक करने के लिए प्रतिदिन लाखों की संख्या में लोग आते हैं। यहां विश्वप्रसिद्ध श्रावणी मेला लगता है। इस मेला का आयोजन बिहार और झारखंड में संयुक्त रूप से होता है। बिहार के भागलपुर जिले के सुलतानगंज से गंगा जेलकर श्रद्धालु पैदल कावंर यात्रा करते हुए देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर पहुंचते हैं। इसके बाद बाबा बैद्यनाथ को जलाभिषेक करते हैं। सुलतानगंज से देवघर की दूरी करीब 108 किलोमीटर है। इस 108 किमी की पट्टी में श्रावणी मेला लगता है। लेकिन कोरोना के कारण श्रावणी मेला-2021 का आयोजन नहीं हो रहा है। पिछले साल यानी साल-2020 में भी कोरोना के कारण मेला नहीं लगा था। श्रावणी मेला नहीं लगने और बाबा बैद्यनाथ मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं मिलने से भक्त निराश हैं।

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सोमवारी पर सिर्फ सरकारी पूजा, भक्तों में निराश

सावन महीने में सोमवार को खास स्थान है। इस माैके पर पूजा करने से भोले शंकर की कृपा प्राप्त होती है। लेकिन कोरोना के कारण बाबा बैद्यनाथ मंदिर बंद रहने के कारण भक्त निराश हैं। सोमवारी पर उन्हें पूजा करने की इजाजत नहीं है। बाबा बैद्यनाथ मंदिरि में सिर्फ सरकारी पूजा हो रही है। सरकारी पूजा सुबह और शाम होती है। इसके अलावा भक्त बाबा बैद्यनाथ की ऑनलाइन पूजन-दर्शन कर सकते हैं। पहली सोमवार को देखते हुए देवघर जिला प्रशासन व पुलिस कर्मी पूरी तरह से मुस्तैद हैं। उन्हें कांवरियों को सीमा पर ही रोकने का सख्त निर्देश है। श्रावणी मेला के दौरान देवघर का कावंरिया पथ 24 घंटे बोल बम के नारो से गूंजता रहता था लेकिन इस बार यहां सन्नाटा पसरा हुआ है। शहर में भी रास्तों पर रविवार को बहुत कम लोग नजर आए।

सावन के पहले दिन पहुंचे बड़ी संख्या में भक्त, देवघर शहर में प्रवेश की नहीं मिली इजाजत

सावन के पहले दिन देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर में लाखों श्रद़धालुओं का जुटान होता था, लेकिन इस बार बाबा का दरबार सूना है। कोरोना के कारण मंदिर बंद है। श्रद़धालुओं को मंदिर में प्रवेश करने से रोकने के लिए करीब दो हजार पुल‍िसकर्मी लगाए गए हैं। बिहार से पहुंच रहे श्रद़धालुओं को देवघर की सीमा में प्रवेश करते ही रोका गया, वहीं से भक्‍तों ने क‍िया जलार्पण। अगली बार आएंगे बाबा के उद़घोष के साथ भारी मन से वापस लौटै। पेड़ा, फूल की दुकानों से गुलजार रहने वाला पूरा इलाका वीरान है।

दुम्मा प्रवेश द्वार पर पुलिस वालों ने कांवरियों को रोका

कोरोना संक्रमण के कारण इस बार लगातार दूसरे वर्ष विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला का आयोजन नहीं हो रहा है। लेकिन बाबा भोले के भक्त नहीं मान रहे। वे बाहर से ही बाबा का दर्शन करने को तैयार है इसी कारण लगातार बाबाधाम की ओर बढ़े चले आ रहे हैं। उन्हें रोकने के लिए प्रशासन ने कई स्तर पर इंतजाम किया है। कांवरिया पथ स्थित झारखंड के प्रवेश द्वार दुम्मा में खासतौर पर सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया गया है। वहां दंडाधिकारी व पुलिस बल 24 घंटे पूरी तरह से मुस्तैद हैं। इसके साथ ही दर्दमारा, रिखिया, बुढ़वाकुरा, खिजुरिया, कोठिया, चौपामोड़, ठाढ़ी मोड़ पर भी पुलिस कर्मी कांवरियों के वाहनों को देवघर शहर के अंदर प्रवेश करने से रोकने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। ये व्यवस्था गुरु पूर्णिमा से ही लागू कर दिया गया है। श्रावण के पहले दिन भी यहां पुलिस का सख्त पहरा नजर आया। दुम्मा में कांवरियों को रोकने के लिए लोहे का बैरिकेट व बांस का बेरियर लगा दिया गया है। गुरु पूर्णिमा के मौके पर कांवरिया पथ पर करीब एक दर्जन कांवरियों का जत्था सुल्तानगंज से बाबा धाम की ओर सधे हुए कदमों से बढ़ा चला आ रहा था। दुम्मा प्रवेश द्वार पर पहुंचते ही वहां तैनात पुलिस कर्मियों ने उन्हें रोक लिया। कांवरिया बाबा भोले का दर्शन मात्र करने देने की अनुमति दिए जाने की विनती करने लगे। पुलिस वाले भी करते तो क्या करते वे आदेश से जो बंधे थे। इस कारण न चाहते हुए भी कांवरियों को वहीं रोक दिया गया। काफी प्रयास करने के बाद भी जब कांवरिया नहीं सीमा में प्रवेश नहीं कर पाए तो उन्होंने तोरण द्वार पर ही जल चढ़ा दिया और उसके बाद बाबा मंदिर की ओर मुख कर प्रणाम करते हुए यहां की धूल को अपने माथे से लगा लिया। उसके बाद मायूस होकर वे वहीं से लौट गए। यहीं सिलसिला पूरे दिन चलता रहा। रविवार को भी यहां कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला।


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