नए निजाम के इंतजार में अटका उपभोक्ता फोरम का इंसाफ
तीन महीने के दौरान लंबित मामलों की संख्या 248 का आंकड़ा पार कर गई है। नए मामलों में नोटिस और पुराने में तारीख बढ़ाकर उपभोक्ताओं को वापस लौटाया जा रहा है।
धनबाद, शशिभूषण। सरकारी और निजी कंपनियों की मनमानी रोकने और उपभोक्ताओं को उनका अधिकार दिलाने वाले उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष की कुर्सी तीन महीने से खाली है। इससे मुकदमों की सुनवाई प्रभावित हो रही है। अध्यक्ष पद खाली रहने से फोरम में इन दिनों सन्नाटा छाया रहता है। कहने के लिए काम तो हो रहा है, पर आदेश नहीं निकल रहे हैं।
तीन महीने के दौरान लंबित मामलों की संख्या 248 का आंकड़ा पार कर गई है। नए मामलों में नोटिस और पुराने में तारीख बढ़ाकर उपभोक्ताओं को वापस लौटाया जा रहा है। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष नित्यानंद सिंह अक्टूबर में सेवानिवृत्त हो गए थे। उसके बाद से पद खाली है। अध्यक्ष के बिना बेंच के सदस्य कोई निर्णय नहीं ले पा रहे, क्योंकि बेंच के तीनों सदस्यों की सहमति से ही निर्णय होता है। फोरम में महिला सदस्य का पद भी रिक्त है। केवल एक सदस्य ही यहां काम कर रहे हैं। फोरम में आयोग और सरकार की अनुशंसा के बाद ही नियुक्ति होती है। इनका कार्यकाल पांच वर्ष होता है।
फुरसत में बैठे रहते कर्मचारी : फैसले नहीं होने के कारण कर्मचारियों का काम काफी कम हो गया है। सिर्फ नए प्रकरणों को दर्ज कर वादी को पेशी में आने की बात कह दी जाती है। संबंधित कंपनी को नोटिस की औपचारिकता के बाद पेशी की तारीख बढ़ाई जा रही है। इससे उपभोक्ता परेशान हैं।
फोरम के फैसलों पर है भरोसा : लंबे समय से फोरम में धूल फांक रही लटानी पैक्स के मामले पर फैसला कर अध्यक्ष नित्यानंद सिंह ने फोरम के प्रति उपभोक्ताओं का भरोसा पैदा किया। यहां डाक विभाग, एसबीआइ, बैंक, इंश्योरेंस कंपनी, रेलवे, नर्सिंग होम, झोला छाप डॉक्टर, मोबाइल कंपनी, शोरूम के मामलों में उपभोक्ताओं को न्याय दिया जाता है। बार एसोसिएशन के खिलाफ अधिवक्ता विजय कुमार ने उपभोक्ता फोरम में मुकदमा दायर किया। इस पर फोरम ने फैसला सुनाते हुए बार एसोसिएशन को चैंबर आवंटित करने या साढ़े आठ प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से 45 दिनों के अंदर डेढ़ लाख रुपये भुगतान का आदेश दिया था।
फैक्ट फाइल
- अगस्त 2015 में नित्यानंद सिंह ने फोरम की बागडोर संभाली, तब एक हजार से भी अधिक मामले लंबित थे।
- तीन वर्षों के दौरान लंबित 685 मामले का निष्पादन किया गया, साथ ही 1488 नये मामलों का भी निष्पादन हुआ।
- वाद निष्पादन से 2 करोड़ 55 लाख 71 हजार 89 रुपये मुकदमा जीतने वालों को मिले।
- औसतन 26 मामले प्रतिमाह फाइल होते थे। 38 का निष्पादन हर माह हो रहा था।