Move to Jagran APP

तीन साल बाद फिर इंदिरा चाैक लाैट रहे भू-धंसान प्रभावित, क्योंकि खदान की आग से भयानक हाेती है पेट की आग Dhanbad News

वर्ष 2017 में हुए भू-धंसान में पिता-पुत्र की माैत के बाद 16 परिवाराें काे बेलगढ़िया टाउनशिप में पुनर्वासित किया गया था। लेकिन राेजगार के अभाव में अब सभी वापस झरिया लाैट रहे हैं।

By Sagar SinghEdited By: Published: Sat, 06 Jun 2020 10:26 PM (IST)Updated: Sat, 06 Jun 2020 10:34 PM (IST)
तीन साल बाद फिर इंदिरा चाैक लाैट रहे भू-धंसान प्रभावित, क्योंकि खदान की आग से भयानक हाेती है पेट की आग Dhanbad News
तीन साल बाद फिर इंदिरा चाैक लाैट रहे भू-धंसान प्रभावित, क्योंकि खदान की आग से भयानक हाेती है पेट की आग Dhanbad News

धनबाद, [रोहित कर्ण]। तीन साल पहले का वह दर्दनाक मंजर लोग अभी भी भूले नहीं होंगे जब पिता-पुत्र एक साथ बीच सड़क पर भू-धंसान में समा गए थे। सप्ताह दिन तक चला बचाव कार्य निष्फल रहने के बाद मुआवजे की राजनीति शुरू हुई। राहत कार्य के ताैर पर बचे हुए परिवाराें काे बेलगढ़िया टाउनशिप में पुनर्वासित किया गया। फिर क्या हुआ। ताजा हालात यह है कि वे सभी परिवार फिर झरिया के इंदिरा चाैक पर पहुंच चुके हैं जहां से उन्हें जान-ओ-माल का खतरा बताकर हटाया गया था।

loksabha election banner

बीसीसीएल प्रबंधन व जरेडा (झरिया पुनर्वास व विकास प्राधिकार) की कार्यप्रणाली काे आइना दिखाते हुए इन परिवाराें ने बता दिया कि पेट की आग के आगे खदान की आग कोई मायने नहीं रखती। जब तक सरकारें रोजगार का प्रबंध नहीं करतीं तब तक पुनर्वास याेजनाओं का काेई मतलब नहीं। प्रबंधन व प्रशासन यदि एकमुश्त मजदूरी व शिफ्टिंग अलाउंस की भी व्यवस्था कर देता ताे उन्हें यह दिन नहीं देखना पड़ता।

जब एकसाथ गड्ढे में समा गए थे पिता-पुत्र : वो 25 मई 2017 की सुबह थी। 13 वर्षीय रहीम खान इंदिरा चाैक स्थित अपनी दुकान का खूंटा पकड़े खड़ा था। उसके पिता बबलू खान की टेंपाे दुरुस्त करने की दुकान थी। अचानक उसके पैराें तले की जमीन धंस गई और रहीम उसमें समा गया। उसके पिता 40 वर्षीय बबलू खान पीछे ही खड़े थे। पुत्र को बचाने वे जैसे ही बढ़े वे भी पाताल में समा गए। चाचा व भाई काे गाेफ (भू-धंसान से हुए गड्ढे) में समाते देख अरमान चीख पड़ा। लाेग जुटे। बीसीसीएल प्रबंधन व जिला प्रशासन काे भी खबर की गई। अगले दिन एनडीआरएफ की टीम भी पहुंची। काफी प्रयास के बाद भी किसी का कुछ पता नहीं चला।

इसको लेकर लोगों ने प्रदर्शन भी किए। कई वाहनाें में ताेड़फाेड़ भी की। महीने भर तक नेताओं का जुटान इंदिरा चाैक पर होता रहा। चाैक काे कई दिनों तक घेरकर रखा गया। हादसे का शाेर राजधानी तक पहुंचा। मुख्यमंत्री ने प्रभावित परिवार काे दाे लाख मुआवजा की घाेषणा की। दबाव में प्रबंधन ने यहां के परिवाराें काे बेलगढ़िया स्थानांतरित कर दिया। बाद में सबकुछ सामान्य हाे गया। इंदिरा चाैक आज भी झरिया का व्यस्त चाैक है जहां से सैकड़ाें वाहन चासनाला, सिंदरी काे जाते हैं।

रुखसाना ने भी बेलगढ़िया काे कह दिया बाय-बाय : भू-धंसान में मारे गए बबलू खान की पत्नी व रहीम खान की मां रुखसाना काे भी बेलगढ़िया टाउनशिप में आवास दिया गया था। वह अपने बचे हुए बच्चाें के साथ कुछ दिन उस फ्लैट में रही। फिर आर्थिक संकट हाेने के बाद रुखसाना ने भी बेलगढ़िया टाउनशिप काे बाय-बाय कह दिया। वह अब कहां रहती हैं उनके पड़ाेसियाें काे ठीक से नहीं पता। हालांकि वह इंदिरा चाैक नहीं लाैटी हैं। भूली टाउनशिप में अपने अन्य परिजनाें के साथ रहती हैं।

खाली पड़ा है इंदिरा चाैक वालाें का ब्लॉक : इंदिरा चाैक से लाए गए लोगों को बेलगढ़िया के बी-64 ब्लॉक में रखा गया था। चार मंजिले इस भवन में 16 फ्लैट हैं। 1009 से 1024 तक के ये 16 फ्लैट 16 परिवाराें काे दे दिया गया था। यह ब्लॉक अब पूरी तरह खाली हाे चुका है। इस ब्लॉक के आसपास और लोग रहते हैं, लेकिन पुलिस-प्रशासन की ढिलाई की वजह से चाेराें का उत्पात यहां चरम पर हैं। इधर ब्लॉक के निवासी गए नहीं कि पहले उनके खिड़की-किवाड़ और बाद में घर के सामान पर भी हाथ साफ कर दिया गया। पड़ाेसियाें से सूचना मिलने पर बचा हुआ सामान लेकर चले गए।

वहां काेई राेजगार नहीं, भूखे कैसे रहें : इंदिरा चाैक से लाए गए मुस्तकीम अंसारी की पत्नी ने दूरभाष पर बताया कि बेलगढ़िया में राेजगार का काेई साधन नहीं है। वहां कई मकान बन रहे हैं, लेकिन उनमें सस्ती दर पर बंगाल से कामगार लाकर काम कराया जाता है। हम लाेगाें काे काम नहीं दिया जाता। भूखे रहने की नाैबत आ गई ताे हमलोग झरिया लाैट आए। प्रबंधन काेई मदद नहीं कर रहा। जाे पैसा मिलना चाहिए वह भी पूरा नहीं मिला। यहां काेई भी काम कर गुजारा हाे जाएगा। लॉकडाउन में दाे महीने इधर ही रह गए ताे वहां खिड़की, किवाड़ भी चाेरी हाे गया। अब जाकर करेंगे भी क्या?

एक किश्त का हुआ है भुगतान : इंदिरा चाैक वालाें के पड़ाेसियाें की मानें ताे वे भी लगभग चार वर्षों से यहां रह रहे हैं। उनके सामने खाने-पीने की समस्या है। कुम्हारपट्टी से लाए गए जहांगीर के मुताबिक उन्हें शिफ्टिंग अलाउंस 10 हजार रुपये मिला है। घनुआडीह 12 नंबर से आईं काैशल्या देवी काे शिफ्टिंग अलाउंस के अतिरिक्त एक किस्त मजदूरी भी 41 हजार रुपये की मिल चुकी है। शेष बकाया है। साउथ तिसरा से आए राकेश उपाध्याय के मुताबिक इंदिरा चाैक से 16 अल्पसंख्यकाें के साथ पंडिताें का भी दाे-तीन परिवार आया था। वे सब भी काम के अभाव में सामान लेकर चले गए हैं।

और भी हैं जानेवालाें की कतार में : ए टाइप में रह रहे मुख्तार अंसारी शिमला बहाल से आए हैं। वहां कामगार थे। अब काम नहीं मिल रहा तो वे भी जाने की फिराक में हैं। कहते हैं यह खुला जेल है। घर में सब साथ रहिए लेकिन अगल-बगल करने काे कुछ है नहीं। गुड्डू अंसारी व मो. नासिर लेथ मशीन का काम करते थे। अब उन्होंने रोजगार मांगा तो नए बन रहे क्वार्टर में ठेकेदार ने 200 रुपये में 12 घंटे खटाया। अब वे फिर झरिया आने-जाने लगे हैं। कहते हैं माैका मिलते ही निकल लेंगे। यहां कोई काम नहीं। प्रबंधन पूरा पैसा एक साथ देता तो कोई रोजगार हो जाता। वह भी नहीं दे रहा। कुछ-कुछ लोगों को बार-बार दाैड़ाने के बाद पैसा देता है।

जरेडा प्रबंधन काे देनी थी यह सुविधाएं : जरेडा प्रबंधन काे प्रभावितों के पुनर्वासित होने के बाद उन्हें शिफ्टिंग अलाउंस के ताैर पर 10 हजार रुपये देना था। इसके अतिरिक्त उन्हें 500 दिन की मजदूरी न्यूनतम मजदूरी की दर से भुगतान करना था। वर्षों बाद भी इनका भुगतान नहीं हाे सका है। कुछ काे पहली किस्त का भुगतान 41 हजार रुपये का हुआ है ताे कुछ का वह भी नहीं। लिहाजा अधिकांश परिवार यहां राेजगार की समस्या से जूझ रहे हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.