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Bokaro: पेड़ा बेचने वाले ने लिखी कहानी, पैसा चुनने वाला बना हीरो; जान‍िए और क्‍या है खास Age 17 वेब सीरीज

कोरोना काल में प्रधानमंत्री के सलाह का कहीं असर पड़ा है तो बोकारो के उन कलाकारों पर पड़ा जिनमें प्रतिभा तो थी पर प्लेटफार्म नहीं था। इसी प्रकार के कलाकारों ने जो किया वह काबिले तारीफ है ।

By Atul SinghEdited By: Published: Thu, 05 Aug 2021 11:27 AM (IST)Updated: Thu, 05 Aug 2021 07:14 PM (IST)
Bokaro: पेड़ा बेचने वाले ने लिखी कहानी, पैसा चुनने वाला बना हीरो; जान‍िए और क्‍या है खास Age 17 वेब सीरीज
ओटीटी पर रिलिज होने वाली फिल्म एज-17 का पोस्टर और ट्रेलर रिलिज होगा। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

बीके पाण्डेय, बोकारो : कोरोना काल में प्रधानमंत्री के सलाह का कहीं असर पड़ा है, तो बोकारो के उन कलाकारों पर पड़ा जिनमें प्रतिभा तो थी पर प्लेटफार्म नहीं था। इसी प्रकार के कलाकारों ने जो किया वह काबिले तारीफ है । गुरुवार को ओटीटी पर रिलिज होने वाली फिल्म एज-17 का पोस्टर और ट्रेलर रिलिज होगा। फिल्म  र‍िलीज आने वाल माह में किया जाएगा।

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एज -17 फिल्म के लिखने वाले से लेकर पूरी फिल्म में काम करने वाले लोग की कहानी ही अलग है। कहानी उन बच्चों की है जो कि गंगा सहित अन्य नदी में चुंबक के सहारे पैसा चुनने का काम करते हैं। फिल्म के निदेशक गुड्डू रूप दिव्यांग हैं पर उन्होंने अपनी दिव्यांगता को अपनी ताकत बनाया और कलाकारों को आगे बढ़ाने में लगे रहे । जबकि गुड्डू रूप का कहना था कि छोटे शहर के कलाकार हैं बेहतर कर सकते हैं खासकर सामाजिक समस्याओं पर सिनेमा बनाने का उनका पुराना शौक है।

इस एज-17 को बनाकर लगता है कि उनकी फिल्म यदि देश भर में 10 बच्चों के जीवन पर भी प्रभाव डाल पाए तो उनका फिल्म सार्थक साबित होगी। फिल्म का लीड रोल करने वाली आभा रानी उर्फ डोली बोकारो के झाेपड़ी कालोनी में रहती है। उनके पिता बसंत दास होमगार्ड में है। बचपन से नृत्य संगीता का शाैक था जिसे गुुड्डू ने मदद कर यहां तक पहुंचाया। अब वे आगे बालीबुड में अपना पहचान बनाना चाहती हैं। रामजस नायक उर्फ आरजे कश्यप बोकारो के चिकिसिया के रहने वाले हैं। वे भी इसमें सहायक कलाकार हैं।

कैसे लिखी गई कहानी

फिल्म के लेखक दिलीप कुमार का कहना है कि इस कहानी के पीछे उनका उद्देश्य उन हजारों बच्चों के लिए प्रेरणा पैदा करना है जो कि पानी में पैसा तो चुनते हैं लेकिन उसे ही अपना किस्मत मान बैठते हैं । वह चाहे तो पैसा चुनकर उसकी सार्थक पहल करते हुए राकेश की तरह सफल बन सकते हैं। इस दिशा में उन स्थानों के स्वयंसेवी संगठनों और सामाजिक व्यक्तियों को भी कदम उठाना चाहिए इसी दिशा में किया गया यह प्रयास है।

कहां से मिली कहानी की प्रेरणा 

लेखक दिलीप कुमार का नया मोड़ बस पड़ाव के पास पेड़ा की दुकान है। झोपड़ी में पेड़ा बेचने वाले दिलीप का परिवार बोकारो का एक प्रतिष्ठित ट्रांसपोर्टर व व्यवसायी है। राजनंदनी पेड़ा के दुकान को आज तक उन लोगों ने नहीं बंद किया है। दिलीप के अनुसार पेड़ा के लिए खोवा की खरीद व ट्रांसपोर्ट के काम से कई बार बनारस जाने का मौका मिला। जब भी ट्रेन से गुजरते थे लोगों को ट्रेन से पैसा फेंकते देखते थे। उस पर बच्चों को उलझते हुए देखा । बनारस के घाट पर उन बच्चों से बात करके उनके जीवन और उनके परिवार की स्थिति जानने का भी मौका मिला। लाकडाउन काम नहीं था तो कहानी लिखने का काम किया।

गंगा के गोद में पहुंचे संगीत सिखने चुनने लगे पैसा 

फिल्म के कालाकार राकेश कुमार जो कि सासाराम के मूल निवासी है। बचपन से कलाकार बनने का शौक था। पर जिसे पूछो कहता था कि मुंबई नहीं तो बनारस जाना होगा। फिर क्या था वर्ष 2012 में बनारस की ट्रेन पकड़ ली। पर बनारस में जीवन काटना मुश्किल हो गया। राकेश के पास कुछ भी नहीं था ऐसे में राकेश बच्चों को देखते थे जो कि ट्रेनों से यात्रियों द्वारा फेंके गए पैसे को चुंबक के सहारे निकालने का काम करते थे। राकेश ने भी यही किया नदी से पैसा चुनना और उससे दैनिक जरूरत को पूरा करना और अलग-अलग उस्ताद लोगों से गीत संगीत सीखना यूट्यूब से फिल्म का डबिंग और मिक्सिंग का काम सीखना। ऐसा कर राकेश कुमार अब राकेश मेहरा हो गए। पैसा चुने से सफर की शुरुआत कर पांच-पांच स्टूडियो के मालिक हैं । उनके स्टूडियो में वॉइस डबिंग से लेकर सिनेमा के सभी प्रकार के तकनीकी काम होते हैं। अब तक के भोजपुरी के सुपर स्टार दिनेश लाल निरहुआ जैसे कलाकारों के फिल्म की वॉइस डबिंग भी उनके स्टूडियो में हो चुकी है। फिलहाल राकेश के पास तीन स्टूडियो बनारस में और एक मिर्जापुर तथा एक जौनपुर में है। उनका कहना है कि इस फिल्म में बतौर कलाकार जोड़ने का काम रामजस सर , गुड्डू रूप और दिलीप जी ने किया फिल्म काम कर यह लगा कि उन्होंने उन बच्चों के लिए कुछ प्रयास किया है जो कि नदियों में पैसा चुनकर परिवार चला रहे हैं लेकिन आगे का उनका जीवन बदल सके।


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