नेताजी का झरिया से रहा है गहरा लगाव
गोविन्द नाथ शर्मा झरिया झरिया से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी नेता सुभाष चंद्र बो
गोविन्द नाथ शर्मा, झरिया : झरिया से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी नेता सुभाष चंद्र बोस नेताजी का गहरा लगाव रहा है। नेताजी अपने जीवन काल में अपनी यूनियन को लेकर कई बार झरिया आए। झरिया में नेताजी ने टाटा वर्कर्स यूनियन व ईस्ट इंडिया वर्कर्स यूनियन की स्थापना कर यहां के मजदूर आंदोलन को नई दिशा दी। टाटा वर्कर्स यूनियन से टाटा के मजदूरों व ईस्ट इंडिया वर्कर्स यूनियन से निजी कोयला खानों के मजदूरों को उनका अधिकार दिलाया। जामाडोबा में रहनेवाले सत्यविमल सेन उर्फ सत्तो दा टाटा वर्कर्स यूनियन की यहां देखरेख करते थे।
1938 में डिगवाडीह कोलियरी में टाटा वर्कर्स यूनियन के बैनर तले सभा हुई थी। मामला मजदूरों को वेतन बढ़ाने का था। सभा के बाद टाटा प्रबंधन व निजी खान मालिकों से वार्ता होनी थी। सभा में मजदूरों का सैलाब उमड़ पड़ा। यह देख अन्य यूनियन के पदाधिकारी भी नेताजी की लोकप्रियता को देखकर काफी घबड़ा गए। दूसरी ओर टाटा प्रबंधन व निजी खान मालिक भी नेताजी से वार्ता किए बगैर मजदूरों के वेतन बढ़ा दिए।
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डुमरी चाला में नेताजी करते थे बैठक व सभा
झरिया कोयलांचल आने के क्रम में टाटा कोलियरी क्षेत्र के डुमरी चाला में नेताजी बैठक व सभा करते थे। चाला के पास ही दो एकड़ क्षेत्र में मैदान था। इसी मैदान में मजदूर व आम लोग नेताजी के भाषण को सुनने आते थे। 1946 में यहां टाटा प्रबंधन के सहयोग से चाला बनाया गया। 1946 में प्रसिद्ध मजदूर नेता कांति मेहता ने जीर्णोद्धार के बाद चाला का उद्घाटन किया। यहां नेताजी के साथ डॉ. राजेंद्र प्रसाद, कामाख्या नारायण सिंह, केबी सहाय आदि कांग्रेस के पदाधिकारी भी आकर भाषण दिए थे।
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देशबंधु चित्तरंजन दास के साथ पहली बार नेताजी आए थे झरिया
स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चित्तरंजन दास भी स्वतंत्रता आंदोलन के समय झरिया कई बार आए। एक बार 1922 में देशबंधु गया में होनेवाले कांग्रेस के अधिवेशन के अध्यक्ष होने के नाते गांधीजी को लेकर धन संग्रह के लिए झरिया आए। उस समय झरिया के समाजसेवी रामजश अग्रवाल ने गांधी जी को ब्लैंक चेक दिया था। इसके बाद 1923 में देशबंधु चित्तरंजन नेताजी को लेकर झरिया आए थे। 1924 में नेताजी जेल चले गए। वहीं 1925 में देशबंधु चित्तरंजन दास का निधन हो गया। इसके बाद चार-पांच वर्षों तक नेताजी झरिया नहीं आ सके।
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पहली बार झरिया आने पर मजदूरों के दुख-दर्द से हुए थे अवगत
1923 में पहली बार देशबंधु चित्तरंजन दास के साथ झरिया आने के समय नेताजी यहां के कोयला मजदूरों के दुख-दर्द को काफी नजदीक से देखकर व्यथित हुए थे। उसी समय उन्होंने झरिया के कोयला मजदूरों के दुख-दर्द को समाप्त करने का संकल्प लिया था। 1929-30 में झरिया आकर दो अलग-अलग मजदूर संगठन टाटा वर्कर्स यूनियन व ईस्ट इंडिया वर्कर्स यूनियन की स्थापना की। इसके बाद इनका झरिया कोयलांचल में कई बार आनाजाना हुआ।
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बीच बलिहारी में रिश्तेदार के यहां ठहरते थे नेताजी
नेताजी जब भी झरिया आते थे तो बीच बलिहारी में रहनेवाले अपने भतीजा सुधीर चंद्र बोस, सदानंद बोस के यहां जरूर रुकते थे। सुधीर व सदानंद ही इस क्षेत्र में नेताजी की यूनियन को चलाते थे। नेताजी का एक भतीजा अशोक बोस बरारी कोक प्लांट में कैमिकल इंजीनियर थे। अंतिम बार नेताजी कोलकाता से यहां पठान के वेष में कार से 16 जनवरी 1941 को पहुंचे थे। दूसरे दिन यहां से गोमो जाने के लिए निकल गए थे। बीच बलिहारी में आज भी नेताजी के रिश्तेदारों के मकान के अवशेष हैं।
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भतीजा शिशिर ने यहां नेताजी के आने की पुष्टि की थी
बीच बलिहारी में कई बार नेताजी के साथ आने की पुष्टि वर्ष 1999 में यहां नेताजी कुटीर का उद्घाटन करने आए उनका भतीजा शिशिर बोस ने की थी। शिशिर के साथ कोलकाता के सांसद कृष्णा बोस भी यहां के कार्यक्रम में आए थे। शिशिर ने कहा था कि 1941 में मैं भी नेताजी के साथ था। नेताजी स्मारक उद्यान बीच बलिहारी के संस्थापक भारतीय मजदूर संघ के वरीय नेता गोपाल प्रसाद के प्रयास से क्षेत्र का विकास हुआ। यहां नेताजी के नाम से मैदान के अलावा पार्क भी हैं।