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    धनबाद में बनी नैनो पार्टिकल आधारित तकनीक धूप के सहारे सोख लेगी पानी का जहर

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Wed, 18 May 2022 04:29 PM (IST)

    शोध में जर्मनी की लीबनिज यूनिवर्सिटी हनोवर के प्रो. डी बान्नेमन और चीन की शानक्सी यूनिवर्सिटी आफ साइंस एंड टेक्नोलाजी के प्रो. सी वांग का भी सहयोग मिल ...और पढ़ें

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    प्रयोगशाला में काम करते विज्ञानी अनीक कुइला।

    आशीष सिंह, धनबाद: प्लास्टिक उद्योग से निकलने वाला खतरनाक कार्बनिक रसायन बिस्फिनाल मानव स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है। यह कैंसर समेत कई बीमारियों की वजह माना जाता है। धनबाद स्थित भारतीय प्रौद्यगिकी संस्थान (आइआइटी) आइएसएम के विज्ञानियों ने पानी में घुले इस रसायन को अलग कर पानी शुद्ध करने की तकनीक विकसित की है। विज्ञानियों के अनुसार इस विधि में नैनो तकनीक के सहारे सूर्य की ऊर्जा का प्रयोग किया जाएगा। सूरज का ताप आक्सीकरण प्रक्रिया को तेज कर पानी से बिस्फिनाल को अलग करेगा। इस अभिक्रिया की दर बढ़ाने वाला उत्प्रेरक (कैटलिस्ट) प्रयोगशाला में विज्ञानियों की टीम ने तैयार कर लिया है। शोध का प्रकाशन अप्लाइड कैटलिस्ट बी जर्नल में हो चुका है।

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    इस तकनीक की खोज करने वाले आइआइटी-आइएसएम के इन्वायरमेंटल नैनो टेक्नोलाजी रिसर्च टीम के प्रमुख प्रो. सर्वानन पी ने बताया कि इस तकनीक का प्रयोग कर ऐसा जल शोधन संयंत्र बन सकेगा जो बिस्फिनाल के अणुओं को पानी से अलग करेगा। काफी प्रयास के बाद हमारी टीम ने यह उन्नत नैनो मैटीरियल विकसित किया है, जो सौर ऊर्जा के सहारे पानी को प्रभावी ढंग से शुद्ध करेगा। सूरज की किरणों से जलीय माध्यम में आक्सीकरण को उत्प्रेरित करने में यह विधि सक्षम है। इस विधि से किसी भी कार्बनिक पदार्थ का क्षरण संभव है। उन्होंने बताया कि प्लास्टिक की बोतलों के निर्माण से कचरे के रूप में बिस्फिनाल-ए बनता होता है। हम थ्री-स्टेज जलशोधन प्रणाली के माध्यम से जलीय प्रदूषित पदार्थों को विघटित या अलग करने के लिए सौर फोटोकैटेलिटिक रिएक्टर बना रहे हैं। टीम में आइआइटी-आइएसएम के शोधार्थी अनीक कुईला व अन्य विज्ञानी शामिल हैं।

     

    पानी को फिल्टर करने का रेखाचित्र।

    ऐसे काम करेगी तकनीक: इस तकनीक में सिल्वर वैनाडेट, बिस्मथ आक्सीक्लोराइड के साथ सिल्वर नैनो कणों की कोटिंग का प्रयोग हुआ है। सोलर फिल्टरेशन प्लांट के अंदर लगी फिल्टर कैंडल के ऊपर इसकी लेप चढ़ाई जाती है। दिन में जब टैंक के ऊपर धूप पड़ेगी तो उसके अंदर पानी को फिल्टर करने के लिए छोड़ देते हैं। धूप से मिलने वाली गर्मी से प्रतिक्रिया कर फिल्टर कैंडल के ऊपर लगी कोटिंग (लेप) पानी में मौजूद बिस्फिनाल को अलग कर देगी और शुद्ध पानी मिल जाएगा।

    प्लास्टिक की वजह से होतीं कई बीमारियां: प्लास्टिक की बोतल व बर्तन में खाद्य सामग्री रखने से इसके जहरीले तत्व भोजन व पानी के साथ मानव शरीर में पहुंच जाते हैं। ये मानव की हार्मोन स्रावण प्रणाली को प्रभावित करते हैं। इस कारण उच्च रक्तचाप, पक्षाघात, शरीर की शिरा व धमनियों में रक्त के थक्के जमने, दमा, कैंसर, गठिया जैसे खतरनाक रोग होते हैं। बच्चों में इसका असर ज्यादा दिखता है। इसलिए प्लास्टिक की जगह कांच या धातु के बर्तन में रखे खाद्य व पेय पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए। जिन क्षेत्रों में कचरे के साथ प्लास्टिक भी डंप कर दिया जाता है वहां के भूगर्भ जल में भी बिस्फिनाल पहुंच जाता है। प्लास्टिक इंडस्ट्री के आसपास के जलस्रोत में भी यह पहुंचता है। इन क्षेत्रों के लिए यह विधि बेहद लाभकारी है।