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गुम होने से पहले हावड़ा-पेशावर मेल पर सवार हुए थे नेताजी, गोमो से जुड़ी है महानिष्क्रमण की यादें; जानिए Dhanbad News

नेताजी 18 जनवरी 1941 को अपनी बेबी अस्टिन कार संख्या बी एल ए 7169 से गोमो पहुंचे थे। इस बात की जानकारी आमी सुभाष बोलछी (मैैं सुभाष बोल रहा हूं) नामक किताब मे मिलती है।

By MritunjayEdited By: Published: Sat, 18 Jan 2020 09:14 AM (IST)Updated: Sat, 18 Jan 2020 05:28 PM (IST)
गुम होने से पहले हावड़ा-पेशावर मेल पर सवार हुए थे नेताजी, गोमो से जुड़ी है महानिष्क्रमण की यादें; जानिए Dhanbad News
गुम होने से पहले हावड़ा-पेशावर मेल पर सवार हुए थे नेताजी, गोमो से जुड़ी है महानिष्क्रमण की यादें; जानिए Dhanbad News

गोमो, जेएनएन। नेताजी सुभाषचंद्र बोस का धनबाद से गहरा संबंध है। 18 जनवरी 1941 को पुराना कंबल ओढ़ कर कार के सहारे गोमो रेलवे स्टेशन पहुंचकर ट्रेन पकड़ी थी। इस एतिहासिक महानिष्क्रमण यात्रा के दौरान नेताजी ने इसी गोमो को साक्षी बनाते हुए ट्रेन पकड़ी थी। आज भी गोमो सहित कोयलांचलवासियों के लिए ये रोमांच का विषय बना हुआ है।

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नेताजी रिसर्च ब्यूरो और रेलवे के सहयोग से इस महानिष्क्रमण दिवस की याद को ताजा रखने के लिए गोमो स्टेशन के प्लेटफार्म संख्या 1-2 के मध्य उनकी प्रतिमा लगाई गई।  इतिहास के पन्नों को पलटने तथा नेताजी के इस यात्रा के कुछ चश्मदीद परिवार से पूछताछ से पता चलता है कि दो जुलाई 1940 को हॉलवेल मूवमेंट के कारण नेताजी को भारतीय रक्षा कानून की धारा 129 के तहत गिरफ्तार किया गया था। उस वक्त के डिप्टी कमिश्नर जॉन ब्रिन ने उन्हें गिरफ्तार कर प्रेसीडेंसी जेल भेज दिया था बाद में उन्होंने आमरण अनशन किया था। जिससे उनकी तबीयत बिगड़ती चली गई। हालांकि, गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें पांच दिसम्बर 1940 को इस शर्त पर रिहा किया गया कि तबीयत ठीक होते ही उन्हें पुन: गिरफ्तार किया जा सकता है। यहां से रिहा होने के बाद एल्गिन रोड स्थित अपने आवास गए।

नेताजी के केस की सुनवाई 27 जनवरी 1941 को थी पर ब्रिटिश हुकूमत को 26 जनवरी को पता चला कि नेताजी तो कोलकाता में हैैं ही नहीं तो उनके होश उड़ गए। उन्हे खोज निकालने के लिए सिपाहियों को अलर्ट मैसेज भिजवाया गया लेकिन नेताजी अपने करीबी नजदीकी के सहयोग से महानिष्क्रमण तैयारी शुरू कर दी।  इस योजना के तहत 16- 17 जनवरी की रात करीब एक बजे वेष बदलकर अपनी यात्रा को निकल गए। इस ग्रुप मिशन की योजना बांग्ला वोलंटियर के सत्यरंजन बख्शी ने बनायी थी। उनकी इस योजना के तहत नेताजी 18 जनवरी 1941 को अपनी बेबी अस्टिन कार संख्या बी एल ए 7169 से गोमो पहुंचे थे। इस बात की जानकारी आमी सुभाष बोलछी (मैैं सुभाष बोल रहा हूं) नामक किताब मे मिलती है। जहां वह एक पठान की वेष यहां पहुंचे थे।

लोको बाजार के डॉ. असदुल्लाह के पिता मोहम्मद अब्दुल्ला उस जमाने के प्रख्यात वकील हुआ करते थे वे उनके पास पहुंचे थे। उन्होंने पंपु तालाब होते हुए अलग रास्ते नेताजी को स्टेशन तक पहुंचाया था। इस दौरान गोमो रेलवे स्टेशन से हावड़ा-पेशावर मेल (वर्तमान मे हावड़ा कालका मेल) पर सवार हुए और इसके बाद वे गुमनामी में खो गए आज तक उनके गुम होने की कथा एक पहेली बनी हुई है। 


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