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Nirsa Assembly constituency: भाजपा का जोर-एमसीसी कमजोर, अरूप के लिए बजी खतरे की घंटी

Ganesh Mishra आने वाले विधानसभा चुनाव में मासस घासफूस की तरह साफ हो जाएगी। जो वोट लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिले हैं वह विधानसभा चुनाव में भी असर करेगा।

By mritunjayEdited By: Published: Sat, 01 Jun 2019 03:55 PM (IST)Updated: Sun, 02 Jun 2019 08:46 AM (IST)
Nirsa Assembly constituency: भाजपा का जोर-एमसीसी कमजोर, अरूप के लिए बजी खतरे की घंटी
Nirsa Assembly constituency: भाजपा का जोर-एमसीसी कमजोर, अरूप के लिए बजी खतरे की घंटी

धनबाद. जेएनएन। लोकसभा चुनाव में धनबाद से भाजपा प्रत्याशी पशुपतिनाथ सिंह को प्राप्त मतों ने आनेवाले विधानसभा चुनावों की भी झलक पेश कर दी है। आम लोगों के साथ राजनीतिक दल भी विधानसभा वार भाजपा की झोली में गए वोटों को लेकर अभी से ही गुणा-भाग शुरू कर दिया है। विशेषकर निरसा विधानसभा क्षेत्र में पीएन को मिले वोटों ने जिले में वामपंथ के आखिरी गढ़ में रेड सिग्नल दिखा दिया है।

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निरसा विधानसभा का इतिहास : निरसा विधानसभा के राजनीतिक इतिहास पर गौर करें तो यहां पहले निर्मलेंदु भïट्टाचार्य ने लाल झंडा फहराया था। वे 1969 में कांग्रेस के रामनारायण शर्मा को हराकर विधायक बने थे। उन्होंने 1972 से भी सीपीआइ के बैनर तले जीत दर्ज की थी। 1977 के चुनाव में केएस चटर्जी ने निर्दलीय चुनाव जीता हालांकि वे मासस के नेता थे। तब वे एके राय के सहयोगी हुआ करते थे। बाद में वे कांग्रेस में आ गए। कांग्रेस से भी उन्होंने 1985 में जीत दर्ज की थी। 1990 के चुनाव में माक्र्सवादी समन्वय समिति के ही नेता गुरुदास चटर्जी ने केएस चटर्जी को महज 1450 वोटों के अंतर से मात दे दी। इसके बाद 1995 और 2000 तक के विधानसभा चुनाव में भी गुरुदास चटर्जी का जलवा बरकरार रहा और निरसा में लाल झंडा का वर्चस्व स्थापित हुआ। इस बीच 2005 के चुनाव से पूर्व सुशांतो सेन गुप्ता की हुई हत्या के बाद फारवर्ड ब्लॉक के टिकट पर उनकी पत्नी अपर्णा सेन गुप्ता ने चुनाव लड़ा और वे 2337 वोटों के अंतर से जीत गईं। वे झारखंड सरकार में मंत्री भी रहीं। इस चुनाव में गुरुदास चटर्जी के पुत्र अरूप चटर्जी दूसरे नंबर पर रहे थे। 2009 और 2014 के चुनाव में अरूप को जीत मिली। इन दोनों चुनावों में अरूप को क्रमश: 68,965 और 51,581 वोट मिले।

चर्चा की वजह : 2014 के चुनाव में अरूप चटर्जी महज 1035 वोटों से जीते थे, जबकि 2009 में जीत का अंतर 35 हजार से अधिक वोटों का था। ऐसे में 2019 धनबाद लोकसभा चुनाव में सांसद पशुपतिनाथ सिंह को निरसा में मिले 1,41,013 वोट ने यह चर्चा खड़ी कर दी है।

आने वाले विधानसभा चुनाव में मासस घासफूस की तरह साफ हो जाएगी। जो वोट लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिले हैं वह विधानसभा चुनाव में भी असर करेगा। भाजपा को विकास और सरकार के प्रति विश्वास के नाम पर वोट मिला है। 2014 के चुनाव में ही लाल झंडा उखड़ चुकी है।

- गणेश मिश्रा, प्रदेश प्रशिक्षण प्रमुख, भाजपा

लोकसभा चुनाव में निरसा में भाजपा को मिला वोट विधानसभा में कोई असर नहीं करेगा। लोकसभा व विधानसभा चुनावों के मुद्दे और चुनाव का चरित्र अलग होता है। पिछले तीन लोकसभा चुनावों में निरसा में भाजपा को अधिक वोट मिला है, लेकिन विधानसभा में इसका असर नहीं होता। 2014 में मोदी लहर के बावजूद भी कम अंतर से ही सही विधायक अरूप चटर्जी को जीत मिली थी। इस बार जीत का अंतर और अधिक बढ़ेगा।

- हरिप्रसाद पप्पू, जिलाध्यक्ष, मासस

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