Move to Jagran APP

केवल देशभक्‍त ही नहीं भगत सिंह में थे कई और भी गुण, फांसी पर जाने से पहले पढ़ रहे थे इस महापुरुष की जीवनी

भगत सिंह एक सच्‍चे देशभक्‍त तो थे ही लेकिन इसी के साथ वह एक अध्ययनशील विचारक कलम के धनी दार्शनिक चिंतक लेखक पत्रकार और महान मनुष्य थे। बहुत छोटी उम्र में ही उन्‍होंने अंग्रेजी शासन से लोहा ले लिया था।

By Jagran NewsEdited By: Arijita SenThu, 23 Mar 2023 02:29 PM (IST)
केवल देशभक्‍त ही नहीं भगत सिंह में थे कई और भी गुण, फांसी पर जाने से पहले पढ़ रहे थे इस महापुरुष की जीवनी
23 मार्च को पूरे देश में शहीद दिवस मनाया जाता है

जागरण संवाददाता, धनबाद। मार्क्सवादी युवा मोर्चा ने गुरुवार को मासस (मार्क्सवादी समन्वय समिति) केंद्रीय कार्यालय टेंपल रोड पुराना बाजार में बलिदानी भगत सिंह, सुखदेव एंव राजगुरु की तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी। मार्क्सवादी युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष पवन महतो ने बलिदानी भगत सिंह की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने भारत की आजादी को लेकर अंग्रेजी सरकार की दांत खट्टे कर दिए थे।

14 साल की उम्र से अंग्रेजों से ले लिया लोहा

मात्र 14 वर्ष की आयु में भगत सिंह ने सरकारी स्कूलों की पुस्तक और कपड़े जला दिए थे। इनके पोस्टर गांव में छपने लगे। 17 दिसंबर, 1928 को लाहौर में राजगुरु के साथ मिलकर अंग्रेजी सरकार के सहायक पुलिस अधीक्षक जेपी सांडर्स को मार गिराया था। इसी के साथ आठ अप्रैल, 1929 को क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत के तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में अंग्रेजी सरकार को जलाने के लिए बम और पर्ची फेंके।

सरकारी खजाने को लूट गोरी सरकार को हिलाया

चौरी-चौरा हत्याकांड के बाद बापू ने किसानों का साथ नहीं दिया, तो भगत सिंह पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा और चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में गठित गदर दल का हिस्सा बन गए। चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल आदि प्रमुख क्रांतिकारी के साथ मिलकर नौ अगस्त, 1925 को लखनऊ से कुछ दूरी पर काकोरी और आलमनगर के बीच चली ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया था।

भगत सिंह थे एक महान इंसान

शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली आठ नंबर डाउन पैसेंजर में से काकोरी स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूट लिया। यह घटना काकोरी कांड नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है। भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं, बल्कि एक अध्ययनशील, विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और महान मनुष्य थे।

उन्होंने 23 वर्ष की छोटी सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था। हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भारत को समाजवाद के पहले व्याख्या थे। भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे।

दो अखबाराें का संपादन भी किया

उन्होंने अकाली और कृति दो अखबारों का संपादन भी किया था। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी का किताब पढ़ रहे थे। माल्यार्पण में मुख्य रूप से मायुमो जिला उपाध्यक्ष संदीप कौशल, संतोष रवानी, केके गुप्ता, सत्यवान बॉस, राजकुमार रवानी बाबला दा, अरनोद दत्ता, दीपक सिंह, राहुल कुमार उपस्थित थे।