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Kargil Vijay Diwas 2020: हर निशाने को चकमा दे गई 'चीता' सवार 'कारगिल गर्ल', मिशन पूरा कर हासिल किया जिंदगी का मकसद

Kargil Vijay Diwas 2020 तेज गति से हेलीकॉप्टर उड़ाते समय हमें अपने निर्णय शक्ति को भी बहुत तेज करना पड़ता है। लगातार निर्णय बदलते रहने के भी अवसर आते हैं ।

By MritunjayEdited By: Published: Sun, 26 Jul 2020 10:59 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jul 2020 10:59 AM (IST)
Kargil Vijay Diwas 2020: हर निशाने को चकमा दे गई 'चीता' सवार 'कारगिल गर्ल', मिशन पूरा कर हासिल किया जिंदगी का मकसद

धनबाद [ तापस बनर्जी ]। Kargil Vijay Diwas 2020 शौर्य चक्र विजेता फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सैना ने दैनिक जागरण संग कारगिल युद्ध के संस्मरण साझा करते हुए कहा, जब मुझे युद्ध क्षेत्र में जाने के लिए कहा गया तो मेरी आंखें चमक उठीं। यह मेरे जीवन के सबसे बड़े सपने के पूरे होने का वक्त था। इससे पहले किसी भारतीय महिला को युद्ध क्षेत्र में जाने का मौका नहीं मिला था। उस समय मेरी तैनाती वायु सेना के 132 फारवर्ड एरिया कंट्रोल उधमपुर में थी। मुझे कारगिल युद्ध के दौरान दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में फंसे अपने देश के वीर सैनिकों को हेलीकॉप्टर से सुरक्षित एअरलिफ्ट कर अपने कैंप तक वापस लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। दुश्मन सेना की पोजीशन को भी देख कर अपनी सेना तक संदेश पहुंचाना था। यह पूरा काम दुश्मन के हमलों से बचते हुए करना था। हिम्मत, आत्मविश्वास और कड़े प्रशिक्षण की बदौलत इस मिशन को बखूबी अंजाम दिया।

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सुरक्षा के लिए सिर्फ एक रायफल थी

गुंजन कहती हैं-मेरे सामने कई चुनौतियां थीं, लेकिन मैं जीतूंगी भी यह भरोसा था। चीता हेलीकॉप्टर में कोई हथियार नहीं होता है। मेरे पास जवाबी हमले की इंतजाम नहीं के बराबर थे। अपनी सुरक्षा के लिए केवल एक रायफल थी। जबकि दूसरी ओर पाकिस्तानी सैनिक लगातार रॉकेट से हमला कर रहे थे। दुश्मनों से बचते हुए मुझे अपने मिशन को अंजाम देना था। मैंने 20 दिनों में युद्ध भूमि के ऊपर अनेक उड़ानें भरी और दुर्गम पॉइंट्स तक पहुंच कर वहां से अपने सैनिकों को लेकर वापस लौटी। कारगिल युद्ध में मेरे साथ की महिला पायलट श्रीविद्या राजन भी अपने मिशन में जुटी थी। बटालिक इलाके में शत्रु बुलेट और मिसाइलों से एयरफोर्स के हेलिकॉप्टर और एयरक्राफ्ट को देखते ही निशाना बना रहे थे। मुझे प्रशिक्षण में बताया गया था कि हेलिकॉप्टर को खुद से अलग समझने की बजाय उसे अपने शरीर का हिस्सा समझो। हमारे हेलीकॉप्टर को लक्ष्य कर चलाए गए गोला बारूद के हमलों से बचने में भी यह सीख काम आई।  कई बार हमले में बाल-बाल बची, लेकिन तब लक्ष्य के अलावा किसी और चीज पर तो ध्यान नहीं था।

लगातार निर्णय बदलते रहना बड़ी चुनाैती

तेज गति से हेलीकॉप्टर उड़ाते समय हमें अपने निर्णय शक्ति को भी बहुत तेज करना पड़ता है। लगातार निर्णय बदलते रहने के भी अवसर आते हैं । चीता हेलीकॉप्टर को चीता जैसे ही फूर्ति दिखानी थी और वह हमने दिखाया। इसी फुर्ती से हमलावरों को भी चकमा दिया। वहीं, पहाड़ों के ऊपर संकरी जगह में हेलीकॉप्टर को लैंड करना और दुश्मन की पोजीशन को देख समझकर रिपोर्ट करना भी चुनौती भरा था। लेकिन यह सब करने में आनंद आ रहा था। इस कोशिश में कई बार लाइन ऑफ कंट्रोल के पास से गुजरना पड़ा। उस समय द्रास और बटालिक सेक्टर में कई भारतीय सैनिक फंसे थे। उनके पास गोली या मैगजीन भी नहीं बची थी। इन सबको सुरक्षित निकालने में कामयाब रही। इस बात का बहुत संतोष है कारगिल युद्ध जीते तो एहसास हुआ कि जिंदगी का बड़ा मकसद हासिल हो गया।

लखनऊ में जन्म, धनबाद में ससुराल

गुंजन का जन्म लखनऊ में हुआ था। पिता लेफ्टिनेंट जनरल रिटायर अनूप कुमार सक्सेना लखनऊ में रहते हैं। भाई और पति भी सेना में हैं । भारतीय वायुसेना में महिला पायलट के रूप में गुंजन का चयन 1996 में शॉर्ट सर्विस कमीशन के जरिए हुआ। ससुराल धनबाद झारखंड में है। ससुर गणेश अनुग्रह नारायण बीसीसीएल के रिटायर्ड अधिकारी हैं। पति विंग कमांडर गौतम नारायण वाराणसी में तैनात हैं।

नेटफ्लिक्स पर आने वाली है फिल्म

गुंंजन की गौरव गाथा पर नेटफ्लिक्स पर गुंजन सक्सेनाः द कारगिल गर्ल, नाम से फिल्म आने वाली है । निर्देशन करन जौहर ने किया है , जबकि श्रीदेवी की बेटी जाह्नवी कपूर गुंजन का किरदार निभा रही हैं। 12 अगस्त को रिलीज होगी।  26 जुलाई को कारगिल दिवस ट्रेलर लांच हो रहा है। 

भाई ने भी लड़ी थी लड़ाई

गुंजन ने बताया, उस युद्ध में मेरे भाई कर्नल अंशुमान ने भी मोर्चा संभाला था। हम दोनों एक ही साथ 1996 में कमीशंड हुए थे। अंशुमान जीओसी के एडीसी थे और युद्ध के एक बड़े हिस्से में प्लानिंग कर रहे थे, जबकि मैं उधमपुर से ऑपरेशन कर रही थी।


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