Bank Strike के समर्थन में संयुक्त मोर्चा का सत्याग्रह, बीएमएस के बोल- हर चीज में घुसेड़ देते राजनीति
बीएमएस नेता ने कहा मोर्चा के नेता ट्रेड यूनियन के आंदोलन में भी राजनीति घुसेड़ देते हैं। मजदूरों की मांग पीछे छूट जाती है। उनका धारा 370 एनआरसी सीएए राम मंदिर के विरोध का मुद्दा आगे आ जाता है। यही वजह है कि हम उनके साथ नहीं आ रहे हैं।
धनबाद, जेएनएन। एटक, इंटक, एचएमएस व सीटू नेताओं ने संयुक्त मोर्चा के बैनर तले रणधीर वर्मा चौक पर सत्याग्रह किया। सत्याग्रह की अध्यक्षता करते हुए पूर्व मंत्री मन्नान मल्लिक ने कहा कि केंद्र की सरकार सभी सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने पर आमादा है। मिसेज गांधी ने जब बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया तो 400000 लोगों को नया रोजगार मिला। अब इन सभी की नौकरी खतरे में है। उन्होंने कहा कि आज बैंक बिक रहा है, कल रेल और कोयला भी बिक जाएगा। ऐसे में श्रमिकों का एकजुट होना समय की मांग है। हम बैंक हड़ताल का समर्थन करते हैं और सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ अन्य क्षेत्रों में भी मजदूरों को एकजुट होकर आगे आने की अपील करते हैं। सत्याग्रह में एके झा, वैभव सिन्हा, मानस चटर्जी, केके कर्ण, अमरेंद्र कुमार, दिलीप मिश्रा, हरिप्रसाद पप्पू, चंद्रदेव यादव, भूषण महतो, पीएस गुप्ता, आदि थे। एक ज्ञापन भी जिला प्रशासन को सौंपा गया।
भारतीय मजदूर संघ सत्याग्रह से अलग
5 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों में एक भारतीय मजदूर संघ इस सत्याग्रह से अलग रहा। इसके प्रदेश महामंत्री बिदेश्वरी प्रसाद ने कारण पूछे जाने पर कहा कि वह भी बैंक हड़ताल का समर्थन करते हैं। केंद्र की सरकार सार्वजनिक उपक्रमों को तबाह करने पर आमादा है। वह सभी औद्योगिक गतिविधि निजी क्षेत्रों के हाथों सौंपना चाहती है। कोरोना काल में हमने देखा कि सार्वजनिक उपक्रम और उनके संसाधन कितने जरूरी हैं। सभी कोरोना अस्पताल सार्वजनिक उपक्रमों के अस्पतालों में ही खुले। सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारियों से लेकर कंपनी के अकाउंट तक से राशि दी गई। उसके मैन पावर का भी उपयोग किया जा सका। निजी क्षेत्र में यह संभव नहीं है। हमारी मजबूरी है कि संयुक्त मोर्चा के लोग भी राजनीति ही करते हैं।
ट्रेड यूनियन में राजनीति घुसेड़ देते मोर्चा के नेता
प्रसाद ने कहा कि मोर्चा के नेता ट्रेड यूनियन के आंदोलन में भी राजनीति घुसेड़ देते हैं। मजदूरों की मांग पीछे छूट जाती है। उनका धारा 370, एनआरसी, सीएए, राम मंदिर के विरोध का मुद्दा आगे आ जाता है। यही वजह है कि हम उनके साथ नहीं आ रहे हैं। हमारी दिली इच्छा है कि केंद्र सरकार की निजी करण एवं बहुराष्ट्रीय करण के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक आंदोलन खड़ा हो।