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PFI: नापाक इरादों को सबसे पहले झारखंड ने पहचाना, प्रतिबंध के लिए यूपी पुलिस ले रही इनपुट

झारखंड सरकार ने 21 फरवरी 2018 को सीएलए (क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट)-1968 की धारा 16 के तहत पीएफआइ पर प्रतिबंध लगाया था। इसके बाद संस्था के सदस्यों पर प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई थी।

By MritunjayEdited By: Published: Sat, 04 Jan 2020 06:11 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jan 2020 10:32 AM (IST)
PFI: नापाक इरादों को सबसे पहले झारखंड ने पहचाना, प्रतिबंध के लिए यूपी पुलिस ले रही इनपुट

धनबाद [ मृत्युंजय पाठक ]। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI )। यह संस्था नागरिकता संशोधन कानून (CAA)- 2019 के लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर हिंसा में अपनी कथित विवादित और राष्ट्रविरोधी भूमिका के लिए चर्चा में है। यूपी सरकार ने पीएफआइ पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र भेजा है। इस संस्था को विधि-व्यवस्था और शांति के लिए बड़ा खतरा बताया जा रहा है। झारखंड ने तो पीएफआइ को दो साल पहले ही पहचान लिया था। इसके खतरनाक इरादे को भांपते हुए 21 फरवरी 2018 को प्रतिबंध लगा दिया था। यह और बात है कि छह महीने के अंदर ही तकनीकी कारणों से झारखंड हाई कोर्ट ने 27 अगस्त 2018 को प्रतिबंध से मुक्त कर दिया। अब जब यूपी सरकार पीएफआइ पर प्रतिबंध लगाना चाहती है तो ठोक-पीटकर कदम बढ़ा रही है। झारखंड जैसा हश्र न हो इसका खयाल रखा जा रहा है। यूपी पुलिस के आला अधिकारी झारखंड पुलिस के अधिकारियों और पीएफआइ के खिलाफ आवाज उठाने वाले राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं से संपर्क कर इनपुट प्राप्त कर रहे हैं। 

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कोर्ट ने प्रतिबंध को माना था बगैर तैयारी की कार्रवाई 

झारखंड सरकार ने 21 फरवरी 2018 को सीएलए (क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट)-1968 की धारा 16 के तहत पीएफआइ पर प्रतिबंध लगाया था। इसके बाद सरकार ने इस संस्था के सदस्यों पर प्राथमिकी भी दर्ज कराई थी। इसके विरोध में पीएफआइ के सदस्य अब्दुल वदूद ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिका में संस्था पर प्रतिबंध लगाने, प्राथमिकी दर्ज करने व सीएलए - 1968 की धारा 16 को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया था कि सरकार ने बिना किसी ठोस साक्ष्य के ही संस्था पर प्रतिबंध लगा दिया है। प्रतिबंध लगाने के पूर्व प्रावधानों का पालन नहीं किया है लिहाजा आदेश को निरस्त किया जाए। इस याचिका पर दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने जुलाई 18 में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 27 अगस्त 18 को कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए पीएफआइ को प्रतिबंध से मुक्त कर दिया। हालांकि कोर्ट ने सीएलए -1968 की धारा 16 के तहत किसी विवादित संस्था पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के अधिकार को बरकरार रखा है। हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा पीएफआइ पर प्रतिबंध लगाने वाली सरकार की अधिसूचना तकनीकी रूप से गलत है। अधिसूचना का गजट प्रकाशन भी नहीं किया गया था और कई प्रावधानों का भी पालन नहीं किया गया। ऐसे में उक्त संस्था पर प्रतिबंध लगाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। इसके बाद कोर्ट ने पीएफआइ पर प्रतिबंध लगाने वाली अधिसूचना को ही निरस्त कर दिया।

तो पीएफआइ का मनोबल नहीं बढ़ता 

झारखंड की तत्कालीन भाजपा सरकार और झारखंड पुलिस मुख्यालय ने बगैर ठोस तैयारी पीएफआइ को प्रतिबंधित करने की कार्रवाई की। आनन-फानन में कानूनी प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन नहीं किया गया। नतीजा, सरकार के स्तर पर हुई इस लापरवाही का फायदा पीएफआइ को मिला और हाई कोर्ट से प्रतिबंध मुक्त हुआ। अगर सरकार के स्तर पर कानूनी प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया गया होता तो पीएफआइ को प्रतिबंध मुक्त कराने में पसीने छूट जाते। और पीएफआइ का मनोबल नहीं बढ़ता। सरकार ने इस तर्क के साथ पीएफआइ पर प्रतिबंध लगाया था कि पीएफआइ पाकिस्तान के एजेंट के रूप में झारखंड सहित कई राज्यों में सक्रिय है। यह संगठन खुलेआम देश विरोधी बातें कर रहा है, संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोगों के खिलाफ बातें व सिर्फ एक समुदाय विशेष के युवाओं को संगठित कर उन्हें उत्प्रेरित कर रहा है। इससे विधि-व्यवस्था संभालने में परेशानी होने के साथ-साथ लोक शांति के लिए संकट उत्पन्न हो गया है। इस संगठन को प्रतिबंधित किया जाना अति आवश्यक है। तब बताया गया था कि यह संगठन झारखंड के पाकुड़, जामताड़ा व साहेबगंज में सक्रिय है।

यूपी पुलिस के आला अधिकारी झारखंड के संपर्क में 

यूपी पुलिस के एक एडीजी स्तर के अधिकारी झारखंड पुलिस के संपर्क में हैं। वे मूल रूप से झारखंड के ही रहने वाले हैं। चूंकि देश में सबसे पहले झारखंड ने ही पीएफआइ के खतरनाक इरादे को भांपते हुए प्रतिबंध लगाने की हिम्मत दिखाई। यूपी पुलिस के अधिकारी झारखंड पुलिस से यह इनपुट प्राप्त कर रहे हैं कि किन तथ्यों के आधार पर प्रतिबंध लगाया गया। उनमें क्या तकनीकी खामी थी जिस आधार पर हाई कोर्ट से पीएफआइ को राहत मिली। झारखंड में पीएफआइ को प्रतिबंधित कराने में भाजपा विधायक अनंत ओझा और सामाजिक कार्यकर्ता विनय सिंह की भी भूमिका रही है। ओझा ने ही झारखंड विधानसभा का ध्यान संताल क्षेत्र में पीएफआइ की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों की तरफ खींचा था। संताल में राष्ट्रविरोधी भावनाओं को भड़काने वाले पोस्टर को सदन में लहराया था। विनय सिंह ने अपनी पुस्तक-'पोपुलर फ्रंट फॉफ इंडियाः मुखौटे के पीछे' के माध्यम से सरकार और पुलिस का ध्यान आतंक घटनाओं में शामिल पीएफआइ की गतिविधियों की तरफ खींचा। पीएफआइ के बाबत यूपी पुलिस के अधिकारी विनय सिंह से भी संपर्क कर इनपुट प्राप्त कर रहे हैं। 

केरल के कॉलेज प्रोफेसर का हाथ काट पहली बार चर्चा में आया पीएफआइ 

करीब डेढ़ दशक पहले 22 नवंबर, 2006 को केरल के कोझीकोड़ में पीएफआइ का गठन किया गया। कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी (KDF) तमिलनाडु के मनीथा नीथी पसाराई और नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट को मिलाकर कथित रूप से फासीवादी संगठन को खड़ा गया। बाद में गोवा की सिटिजन्स फोरम, राजस्थान की कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशनल सोसाइटी, पश्चिम बंगाल की नागरिक अधिकार सुरक्षा समिति, मणिपुर की लिलोंग सोशल फोरम और आंध्र प्रदेश की एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस पीएफआइ में शामिल हो गए। गठन के बाद से ही यह संस्था विवादों में घिरी रही है। पहली बार  4 जुलाई 2010 को केरल के तोडुपुजा के एक कॉलेज प्रोफेसर टीजे थॉमस के एक हाथ को कलाई से काट देने के कारण पीएफआइ राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आया। 

संताल के इस्लामीकरण का ताना-बाना बुन रहा पीएफआइ 

'पोपुलर फ्रंट फॉफ इंडियाः मुखौटे के पीछे'- के लेखक विनय सिंह पीएफआइ पर झारखंड के संताल परगना प्रमंडल में राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को संचालित करने का आरोप लगाते हैं। उनका कहना है कि पीएफआइ संताल के इस्लामीकरण का तानाबाना बुन रहा है। संताल के साहिबगंज, पाकुड़ और जामताड़ा जिले में बडे़ पैमाने पर बांग्लादेशी घुसपैठिए जड़ जमा चुके हैं। इनकी आबादी लाखों में है। पीएफआइ धार्मिक भावनाओं को भड़काकर अल्पसंख्यकों में राष्ट्रविरोध की भावना भर रहा है। एक साजिश से तहत आदिवासी लड़कियों को लव जिहाद का शिकार बनाया जा रहा है। धनोपार्जन के लिए पीएफआइ द्वारा बड़े पैमाने पर पशु तस्करी गिरोह का संचालन किया जा रहा है। पशु तस्करी के माध्यम से प्राप्त धन का इस्तेमाल संताल के अल्पसंख्यकों में राष्ट्रविरोधी भावना को भरने के लिए किया जा रहा है। सिंह झारखंड सरकार से संताल में पीएफआइ की गतिविधियों पर पैनी नजर रखने और कार्रवाई की मांग करते हैं। 


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