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कोयला आधारित उद्योगों को मिले बढ़ावा तो आत्मनिर्भर बने झारखंड, हार्डकोक से बन सकता रोजगार का गढ़ Dhanbad News

उदारीकरण के बाद विदेशी कोयले की आवक तेज हुई तो हार्डकोक उद्योग बंदरगाहों के आसपास स्थानांतरित हो गए। सरकार दोहरा मापदंड खत्म करे तो काफी संख्या में लोगों को रोजगार मिलेगा।

By Sagar SinghEdited By: Published: Sat, 23 May 2020 11:44 PM (IST)Updated: Sat, 23 May 2020 11:44 PM (IST)
कोयला आधारित उद्योगों को मिले बढ़ावा तो आत्मनिर्भर बने झारखंड, हार्डकोक से बन सकता रोजगार का गढ़ Dhanbad News
कोयला आधारित उद्योगों को मिले बढ़ावा तो आत्मनिर्भर बने झारखंड, हार्डकोक से बन सकता रोजगार का गढ़ Dhanbad News

धनबाद, जेएनएन। उदारीकरण के बाद जब विदेशी कोयले की आवक तेज हुई तो हार्डकोक उद्योग बंदरगाहों के आसपास स्थानांतरित हो गए। सरकार ने इन्हें बचाने को हार्डकोक प्लांटों में वाशरी स्थापित करने, पावर प्लांट लगाने जैसी योजनाएं बनाईं, लेकिन इस पर ठोस कदम नहीं अपनाया गया। परिणाम यह हुआ कि अधिकांश उद्योग जो कोयले से संबद्ध थे वे समाप्त हो चुके हैं। सरकार अब भी इन पर ध्यान दे तो कोयला आधारित कई ऐसे उद्योग हैं जो आत्मनिर्भरता की राह खोल सकते हैं। प्रमुख उद्योगपति बता रहे हैं कैसे बने झारखंड आत्मनिर्भर।

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हार्डकोक प्लांट से बिजली उत्पादन पर हो पुनर्विचार : आइसीए व ऑनर इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग लिमिटेड गोविंदपुर के अध्यक्ष बीएन सिंह का कहना है कि कुछ वर्ष पूर्व सरकार ने हार्डकोक प्लांट से बिजली बनाने की योजना बनाई थी। उद्यमियों ने इसमें खासी रुचि ली। गोविंदपुर स्थित इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग हार्डकोक प्लांट और राजगंज स्थित सीताराम हार्डकोक प्लांट में इस पर प्रयोग भी किया गया। यह सफल भी रहा। इसके बाद सरकार ने कोई सुध नहीं ली। न तो प्लांट को नेशनल ग्रिड से जोड़ने की कवायद हुई न ही इस उपक्रम को बढ़ावा देने हेतु कोई सुविधा या छूट ही दी गई। परिणाम हुआ कि उद्योगपतियों ने भी कदम पीछे हटा लिए। सीताराम हार्डकोक अब बंद हो चुका है। अपने इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग में भी मैनें इस योजना को रोक दिया।

हार्डकोक प्लांटों को नेशनल ग्रिड से जोड़ दे तो सफल होगी योजना : बीएन का मानना है कि केंद्र व राज्य सरकार यदि इस ओर ध्यान दें तो यह योजना सफल हो सकती है। सभी हार्डकोक प्लांटों को नेशनल ग्रिड से जोड़ दिया जाए और उद्यमियों को प्रोत्साहित किया जाए तो एक इंडस्ट्री के ओवेन की गर्मी से दो काम हो सकते हैं। मजदूरों को रोजगार भी मिलेगा और राज्य को बिजली। उद्यमियों को भी लाभ मिलेगा और इसके लिए अतिरिक्त जमीन या संसाधन की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। झारखंड रोजगार और बिजली दोनों ही मामलों में आत्मनिर्भर हो जाएगा। यहां 100 हार्डकोक प्लांट हैं। रिफैक्ट्री उद्योग पर भी ध्यान देना चाहिए। 

एफएसए पर दोहरा मापदंड अपनाना बंद करे सरकार : जीटी अध्यक्ष अमितेश सहाय ने कहा कि बीसीसीएल के गठन के बाद सरकार ने यह महसूस किया कि सिर्फ यही एक कंपनी है जिसके पास कोकिंग कोल है। इसकी गुणवत्ता काफी अच्छी है। लिहाजा इसे अन्य कार्यों में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। सरकार ने तब फ्यूल सप्लाइ एग्रीमेंट (एफएसए) बनाया। इसके तहत निर्धारित किया गया कि इस कोयले का इस्तेमाल उन्हीं उद्योगों में किया जाएगा जो एपएसए से बंधे होंगे। स्टील सेक्टर को इससे संबद्ध किया गया। हार्डकोक स्टील उद्योगों को ही आपूर्ति किया जाता है। लिहाजा यहां 87 ऐसे हार्डकोक थे जिन्हें एफएसए से संबद्ध किया गया। इनके लिए लिंकेज की व्यवस्था की गई।

दोहरा मापदंड कोल आधारित उद्योगों की बर्बादी का बड़ा कारण : अमितेश बताते हैं कि आज भी स्टील सेक्टर को रॉ कोल लिंकेज के द्वारा दिया जाता है, लेकिन हार्डकोक इंडस्ट्री के लिए खत्म कर दिया गया था। दूसरी तरफ पावर कंपनियों को एफएसए के तहत नहीं रखा गया था लेकिन अब उन्हें इसी के तहत कोयला दिया जा रहा है। यह दोहरा मापदंड कोल आधारित उद्योगों की बर्बादी और विदेशी कोयले की मांग बढ़ाने के प्रमुख कारण है। सरकार दोहरा मापदंड खत्म करे तो काफी संख्या में यहां के लोगों को रोजगार मिल सकता है और हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं।

कोयला आधारित ये उद्योग अब इतिहास की बात : एक समय बीसीसीएल के चार कोक प्लांट थे। लोयाबाद, बरारी, लोदना और भौैंरा के इन कोक प्लांटों से हार्डकोक के अलावा अलकतरा, कोलतार, फिनाइल जैसे उत्पाद तैयार किए जाते थे। हार्डकोक बनने के बाद बचे छाई से ईंटें बनाई जाती थी। छाई से निकले कोयले के छोटे टुकड़े भी बिकते थे जिससे कंपनी को लाभ होता था। अब यह सब इतिहास बन चुका है।

वाशरियों की हालत भी खस्ता : कंपनी के आठ हाइटेक वाशरी थे। इनमें अधिकांश अभी भी संचालित हैैं। दुग्दा, मधुबन, बरोरा, महुदा, पाथरडीह, भोजूडीह, मुनीडीह व लोदना में कंपनी ने वाशरी लगाए थे। इन वाशरियों में बरोरा, पाथरडीह व लोदना के वाशरी बंद हो चुके हैैं। हालांकि पाथरडीह नया वाशरी तैयार भी हो गया है। अब कंपनी पुरानी वाशरियों को बंद कर नई बनाने की योजना पर काम कर रही है। मुनीडीह में भी वाशरी बनना है।

कैप्टिव पावर प्लांट भी ठप : बिजली क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए कंपनी ने अपना कैप्टिव पावर प्लांट बनाने की योजना बनाई। मुनीडीह में दो पावर प्लांट वर्ष 1989-90 में बने भी। हालांकि यह योजना सफल नहीं हुई। इसे निजी क्षेत्र को दिया गया, लेकिन उसने भी हाथ खड़े कर दिए। अब मामला न्यायालय में है।


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