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IIT Research: अब गाय के गोबर से साफ होगा केमिकल मिला पानी, घरों में कर सकेंगे इस पानी का इस्‍तेमाल

आइआइटी आइएसएम ने गाय के गोबर से ऊर्जा भंडारण करने की तकनीक बनाई है। यह तकनीक ऊर्जा भंडारण करने के साथ ही पानी का शोधन भी करेगी। पानी में मिलने वाले हैवी मैटल्स को भी निकालकर बाहर करेगी। इससे जलशोधन के साथ-साथ ऊर्जा संरक्षण भी संभव हो सकेगा।

By Deepak Kumar PandeyEdited By: Published: Sat, 02 Jul 2022 07:59 AM (IST)Updated: Sat, 02 Jul 2022 07:59 AM (IST)
शोधकर्ताओं ने पाया है कि पानी में से भारी धातुओं को हटाने के लिए गाय का गोबर उपयुक्त है।

जागरण संवाददाता, धनबाद: आइआइटी आइएसएम ने गाय के गोबर से ऊर्जा भंडारण करने की तकनीक बनाई है। यह तकनीक ऊर्जा भंडारण करने के साथ ही पानी का शोधन भी करेगी। पानी में मिलने वाले हैवी मैटल्स को भी निकालकर बाहर करेगी। कहने का तात्पर्य है कि जलशोधन के साथ-साथ ऊर्जा संरक्षण भी एक ही तकनीक के जरिए संभव हो सकेगा।

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शोधकर्ताओं ने पाया है कि पानी में से भारी धातुओं को हटाने के लिए गाय का गोबर उपयुक्त है। इसे बाद में ऊर्जा भंडारण उपकरण विकसित करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। आइआइटी के इंवायरमेंट इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर बृजेश कुमार मिश्रा के नेतृत्व में शोध दल में शामिल पर्यावरण इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर गणेश चंद्र नायक और रसायन विज्ञान और पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग की रिसर्च एसोसिएट डा.सोनालिका ने इस शोध पर काम किया। इस शोध के लिए साइंस फार इक्विटी, इंपावरमेंट एंड डेवलपमेंट और साइंटिफिक यूटिलाइजेशन थ्रू रिसर्च आग्मेंटेशन ने तीन वर्षीय शोध कार्य के लिए 36.16 लाख रुपये की मदद की। प्रो बृजेश कुमार मिश्र ने बताया कि पिछले वर्ष कुछ चुनिंदा जगहों से गोबर का नमूना एकत्रित किया। सूखने के बाद नमूने का परीक्षण शुरू हुआ।

केमिकल मिले जहरीले पानी को भी किया जा सकेगा साफ

प्रो. मिश्रा ने कहा कि उद्योग-धंधों और अन्य माध्यम से पानी में विषाक्त भारी धातु मसलन कैडमियम सीडी, सीआर (क्रोमियम), पीबी (लीड), एनआइ (निकल), सीयू (कापर), जेडएन (जस्ता) आदि छोड़े जाते हैं। बहुत अधिक मात्रा में भारी धातु के पानी में छोड़े जाने के कुछ उदाहरण का हवाला देते हुए मिश्रा ने कहा कि उच्च भारी धातुओं जैसे बैट्री वाटर वेस्ट यानी अपशिष्ट जल के रूप में पानी में लेड की मात्रा 500 मिलीग्राम प्रति लीटर लीटर छोड़ी जा रही है। इसी तरह डाई निर्माण धुलाई से 38.4 मिलीग्राम प्रति लीटर जिंक, टेक्सटाइल मिल से कपड़ा निर्माण के जरिए 45.58 मिलीग्राम/लीटर कापर अपशिष्ट और पेंट व पेपर मिल निर्माण उद्योग से 35.4 मिलीग्राम प्रतिलीटर पेपर मिल और पेंट निर्माण उद्योग से क्रोमियम का अपशिष्ट जल में छोड़ा जा रहा है। गाय के गोबर में फास्फोरस, नाइट्रोजन और कार्बन जैसे कई प्रकार के खनिज होते हैं। ये मुख्य रूप से लिग्निन, सेल्यूलोज और हेमिकेलुलोज से निकलते हैं। यह दूषित जल का शोधन करने में कारगर है। इसी पानी का इस्‍तेमाल फिर घरों में भी किया जा सकेगा।

प्रत्येक मवेशी हर दिन उत्पन्न करता है नौ से 15 किलोग्राम गोबर

प्रो. मिश्रा के अनुसार, गोबर का महत्व भारत, बांग्लादेश और मलेशिया जैसे देशों में अधिक है। कृषि में इसका बहुतायत प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक मवेशी हर दिन नौ से 15 किलोग्राम गोबर उत्पन्न करता है। इससे काफी मात्रा में ऊर्जा का भंडारण किया जा सकता है। उन्‍होंने कहा कि शोध के दूसरे चरण में गाय के गोबर से मिले अधिशोषक का उपयोग कर ऊर्जा भंडारण उपकरण के रूप में इलेक्ट्रोड विकसित किया जाएगा। यह ऊर्जा भंडारण उपकरण अपशिष्ट पदार्थों से विकसित किया जा रहा है। बहुत सस्ता होगा और इसे ग्रामीण क्षेत्रों में सौर पैनलों के साथ जोड़ा जा सकेगा। इससे प्राप्त ऊर्जा गांव देहात में घरों को रोशन, सड़कों, सार्वजनिक शौचालयों को रोशन करने के लिए इस्‍तेमाल की जा सकती है। इसका पर्यावरण पर कोई दुष्‍प्रभाव नहीं होगा। यह डिवाइस सस्ती, टिकाऊ और स्वच्छ होगा।


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