Weekly News Roundup Dhanbad: इंतजार करते रहिए, चक्कर जो हजार रास्ते का है
झारखंड स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन (जेएससीए) से जुड़े अंपायरों व स्कोररों का बुरा हाल है। कोरोना के कारण एक तो लगातार दो सीजन प्रभावित हुआ। मैच नहीं मिले तो मैच फीस कहां से मिलता। कई ऐसे ऑफिशियल्स हैं जो मैच फीस पर ही निर्भर रहते हैं।
धनबाद [ सुनील कुमार ]। अगर किसी काम को करना हो तो प्रशासन के पास उसके दस रास्ते होते हैं। और वह काम प्रशासन नहीं करना चाहे तो फिर उसके लिए हजार रास्ते होते हैं। प्रशासनिक दांवपेंच से भली-भांति बावस्ता रखने वाले अपने बाबूभाई का ऐसा ही मानना है। लगता है धनबाद में क्रिकेट स्टेडियम के निर्माण का मामला इसी हजार रास्ते के चक्कर में उलझ कर रह गया है। स्टेडियम बनाने में सरकार का ढेला भी खर्च नहीं होना है। बीसीसीआइ 90 फीसद रकम देगी अगर जमीन धनबाद क्रिकेट संघ (डीसीए) के नाम हो तो। डीसीए विगत दस वर्ष से जमीन के लिए सरकार से गुहार लगा रही है। वह इसके लिए राशि देने को भी तैयार है। इस दौरान कई उपायुक्त आए और गए। लगभग सभी से आग्रह किया गया। कई बार जमीन चिह्नित भी कर ली गई। लेकिन मामला हजार रास्ते के चक्कर में उलझकर दम तोड़ जाता है।
कराटे में खेला होबे
कराटे खेल है या मार्शल आर्ट यह तो पता नहीं, लेकिन इसमें खेला बड़ा है। इस खेला को अच्छे-अच्छे कराटेकार भी समझ नहीं पाते। पहले ऑल इंडिया कराटे डो फेडरेशन (एआइकेएफ) देश में कराटे का संचालन करती थी। कुछ वर्ष पहले शातिराना ढंग से कुछ लोगों ने कराटे एसोसिएशन ऑफ इंडिया (काई) का गठन कर लिया। इसे विश्व कराटे महासंघ (डब्ल्यूकेएफ) से मान्यता मिल गई। शिकायत के बाद धोखाधड़ी की जांच हुई और काई के राष्ट्रीय महासचिव को जेल जाना पड़ा। काई की मान्यता रद हो गई। अब एआइकेएफ को फिर से मान्यता पर आज ही दिल्ली में बैठक हो रही है। सवाल है कि जब किसी कराटे संघ की कहीं से मान्यता ही नहीं है तो फिर धनबाद में इस दौरान धड़ल्ले से रेवडिय़ों की तरह सैकड़ों लोगों को ब्लैक बेल्ट के फिफ्थ डान, सिक्स्थ डान कैसे बांट दिए गए। जानकारों ने बताया कि इसमें खेला हो गया।
अपनों पर सितम
झारखंड स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन (जेएससीए) से जुड़े अंपायरों व स्कोररों का बुरा हाल है। कोरोना के कारण एक तो लगातार दो सीजन प्रभावित हुआ। मैच नहीं मिले तो मैच फीस कहां से मिलता। कई ऐसे ऑफिशियल्स हैं जो मैच फीस पर ही निर्भर रहते हैं। मौजूदा सत्र में कुछ मैचों का आयोजन हुआ तो कुछ राहत महसूस हुई। जो भी दो-चार मैच का संचालन किया उनका बिल बनाकर भेज दिया, लेकिन महीनों बाद भी भुगतान अटका पड़ा है। आलम यह है कि जहां अंपायर व स्कोरर जेएससीए से कुछ राहत पैकेज की उम्मीद कर रहे थे, उन्हें अपनी जायज कमाई भी संकट में नजर आने लगी। एक भड़के हुए ऑफिशियल्स का कहना था कि मुख्यमंत्री राहत कोष में देने के लिए जेएससीए के पास 51 लाख हैं, लेकिन उन्हें देने के लिए चंद हजार तक नहीं है। बोले तो- गैरों पर रहम, अपनों पर सितम।
इनकी भी सुनो कोई
कोरोना के कारण कइयों की रोजी-रोटी पर संकट आ गया है। कई सेक्टर ऐसे हैं जिसके आर्थिक हालात को लेकर चिंताएं जाती रही हैं। प्रभावित वर्ग को आर्थिक समेत कई मदद भी मिली। लेकिन खेलों से जुड़े लोगों की आर्थिक परेशानियों को लेकर कहीं कोई चर्चा तक नहीं होती। जिले में दो दर्जन से अधिक क्रिकेट कोचिंग कैंप हैं। इनके प्रशिक्षकों का दाना-पानी कैंप से ही चलता है। बीच के दो-तीन महीने छोड़ दिया जाए तो लगभग डेढ़ वर्ष से कैंप की गतिविधियां ठप है। शिक्षक भी ऑनलाइन क्लास लेकर कमाई कर ले रहे हैं, लेकिन खेलों की ऑनलाइन कोचिंग तो नहीं की जा सकती। खेल अब प्रोफेशन बन चुका है। खेल से सैकड़ों लोगों की रोजी-रोटी चलती है। खेल प्रशिक्षकों के पास नियमित आय के साधन नहीं है। अब वे उम्मीद लगा रहे हैं कि हालात जल्द सुधरेंगे और मैदान फिर गुलजार होगा।