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नहीं रहे Temples Of Maluti के लेखक गोपाल दास, मंदिरों के गांव के लिए आजीवन करते रहे प्रयत्न

गोपाल दास मुखर्जी ने 1981 से 1983 के बीच देवभूमि मलूटी 2002 में बाजेर बदले राज और 2005 में उसी का बांग्ला से हिंदी रूपांतरण किया। इसके बाद अंग्रेजी में टेंपल्स ऑफ मलूटी और गुप्तकाशी मलूटी नामक किताब लिखी। इन्होंने 1989 में मलूटी में रामदेव मंदिर का निर्माण कराया।

By MritunjayEdited By: Published: Thu, 26 Aug 2021 11:59 AM (IST)Updated: Thu, 26 Aug 2021 12:20 PM (IST)
नहीं रहे Temples Of Maluti के लेखक गोपाल दास, मंदिरों के गांव के लिए आजीवन करते रहे प्रयत्न
मंदिरों के गांव मलूटी और लेखक गोपाल दास मुखर्जी ( फाइल फोटो)।

संवाद सहयोगी, शिकारीपाड़ा( दुमका )। दुमका जिला के शिकारीपाड़ा में स्थित ऐतिहासिक मंदिरों का गांव मलूटी के नायक गोपालदास मुखर्जी (मुखोपाध्याय) का निधन मंगलवार की रात को हो गया। उनके निधन की खबर से पूरे इलाके में शोक की लहर दौड़ गई। वे नब्बे साल के थे। उनका अंतिम संस्कार बुधवार को किया किया गया। गोपालदास का जन्म 23 अप्रैल 1932 में मलूटी गांव के जानकीनाथ मुखोपाध्याय के बेटे के रूप में हुआ था। माता का नाम स्वर्गीय परी रानी मुखोपाध्याय और पत्नी का नाम स्वर्गीय लक्ष्मी मुखोपाध्याय था। इन्हें कोई संतान नहीं है। ये अपने भांजा सोमेन बनर्जी और उनके परिवार को अपने साथ रखे थे। इनकी प्राथमिक शिक्षा मध्य विद्यालय मलूटी में शुरू हुई। 1943 में वर्ग सातवीं की परीक्षा दुमका में दिए और उच्च विद्यालय रामपुरहाट वीरभूम से 1948 में मैट्रिक पास किए।

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उच्च शिक्षा के बाद वायुसेना में हुए भर्ती

कोलकाता विश्वविद्यालय से 1962 में इंटरमीडिएट और 1965 में स्नातक पास किए थे। 1969 में इन्होंने इतिहास से एमए किया और 1972 में राष्ट्रीय विज्ञान से स्नातकोत्तर किए थे। इसके बाद वायुसेना में योगदान दिया। जहां से 10 अक्टूबर 1967 को सेवानिवृत्त हुए। फिर एक जुलाई 1968 से मध्य विद्यालय मलूटी में शिक्षक के रूप में योगदान दिया और वहां से 30 अप्रैल 1992 को सेवानिवृत्त हुए। वायु सेना में रहते हुए इन्होंने तीन उपन्यास की रचना की। जिसमें नत सिर उर्मी, मोती बाई, गोपालपूरे रूपकथा शामिल है।

अंग्रेजी में टेंपल्स ऑफ मलूटी और गुप्तकाशी मलूटी नामक किताब

1981 से 1983 के बीच देवभूमि मलूटी, 2002 में बाजेर बदले राज और 2005 में उसी का बांग्ला से हिंदी रूपांतरण किया। इसके बाद अंग्रेजी में टेंपल्स ऑफ मलूटी और गुप्तकाशी मलूटी नामक किताब लिखी। इन्होंने 1989 में मलूटी में रामदेव मंदिर का निर्माण कराया और वर्ष 2001 से इस मंदिर प्रांगण में मुफ्त होम्योपैथिक दवा का वितरण प्रत्येक रविवार औरं गुरुवार को कराना शुरू किया। समग्र विकास परिषद शिकारीपाड़ा के आजीवन सदस्य सदस्य रहे। उनके प्रयास से मलूटी गांव में मसलीन एवं सिल्क का उत्पादन शुरू किया गया था।

मलूटी को पर्यटन के मानचित्र पर लाने का श्रेय गोपालदास को हासिल

मंदिरों का गांव मलूटी को पर्यटन के मानचित्र पर लाने का श्रेय गोपालदास मुखोपाध्याय के नाम दर्ज है। इन्होंने विलुप्त हो रहे इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए जीवनपर्यंत संघर्ष किया। इनके संघर्ष का ही नतीजा है कि आज मलूटी में बदलाव की बयार है। हालांकि, गोपालदास यहां मंदिरों को बचाने के नाम पर किए गए जीर्णाेद्धार कार्य से काफी नाखुश थे। इनका कहना था कि जीर्णाेद्धार के नाम पर मंदिरों की मूल स्वरूप छीना जा रहा है। जबकि अपने मूल स्वरूप के लिए ही मंदिरों का गांव मलूटी को जाना जाता है। टेराकोटा नक्काशी को जाना जाता है।

गोपालदास का निधन अपूरणीय क्षति : समिति

झारखंड का गौरव मंदिरों का गांव मलूटी के नानकर स्टेट के इतिहासकार गोपाल दास मुखर्जी के निधन पर पूरे इलाके में शोक की लहर है। बांग्ला भाषा व संस्कृति रक्षा समिति झारखंड के प्रदेश सचिव गौतम चटर्जी ने गोपालदास के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि उनके निधन से बांग्ला साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति हुई है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 के अगस्त माह में रांची में आयोजित एक समारोह में उन्हें उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू उनके बेहतर कार्यों के लिए प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया था। मलूटी के मंदिरों के संरक्षण से लेकर मलूटी मंदिर समिति, मौलिक्षा सेवा समिति एवं बामदेव मंदिर से जुड़कर लगातार यहां के धरोहर को बचाने के लिए प्रयासरत थे।


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