मौत के मुंह से लौटी बिरहोर महिला, स्वस्थ बच्चे को जना
धनबाद शरीर में मात्र दो ग्राम हीमोग्लोबिन। स्थिति बेहद गंभीर। एक समय तो ऐसा लगा कि इस विलुप्त आदिम जनजाति में शुमार बिरहोर प्रसूता को बचा पाना कठिन है। इसके बाद रक्तदाता सामने आए तो पीएमसीएच के डॉक्टरों ने भी टीम बनाकर इलाज शुरू कर दिया।
धनबाद : शरीर में मात्र दो ग्राम हीमोग्लोबिन। स्थिति बेहद गंभीर। एक समय तो ऐसा लगा कि इस विलुप्त आदिम जनजाति में शुमार बिरहोर प्रसूता को बचा पाना कठिन है। इसके बाद रक्तदाता सामने आए, तो पीएमसीएच के डॉक्टरों ने भी टीम बनाकर इलाज शुरू कर दिया। कुछ डॉक्टरों ने आर्थिक सहायता भी की। सबके अथक परिश्रम से बिरहोर प्रसूता बिशनी बिहोरिन (30) की जान बचाई जा सकी। बिशनी ने स्वस्थ बेटे को जन्म दिया। स्त्री व प्रसव रोग विभाग में बेड दस में भर्ती बिशनी लोगों को आभार जता रही है। डॉक्टरों की टीम में डॉ. प्रियंका व उनकी टीम थी। पति शनिचर बिरहोर भी काफी खुश था। उसके साथ गांव की सहिया व बड़ी बेटी भी आई थी।
दो दिन से तड़प रही थी प्रसूता, हो गई थी गंभीर
प्रसव पीड़ा के बाद परिजनों ने 108 एंबुलेंस की मदद से दो दिन पूर्व पीएमसीएच में भर्ती कराया था। बिशनी के शरीर में मात्र दो ग्राम खून देखकर डॉक्टरों का माथा भी चकरा गया था। काफी कम मात्रा में हीमोग्लोबिन देखकर डॉक्टरों ने भी प्रसव नहीं कर रहे थे। डॉक्टरों का कहना था कि ऐसे में महिला की जान जा करती है। इसके बाद ब्लड बैंक के डॉक्टरों ने समाजसेवी शालिनी खन्ना से संपर्क किया। उन्होंने एबी पॉजिटिव ब्लड के लिए डोनर सुधा मिश्रा से रक्तदान कराया। इसके बाद बिशनी को तत्काल खून चढ़ाया गया, तब जाकर स्थिति में सुधार हुआ।
घर में आया छठा नन्हा मेहमान :
शनिचर के घर में छठा नन्हा मेहमान आया है। इससे पहले चार बेटियां व एक बेटा है। शिशु रोग विभाग के डॉक्टरों ने बच्चे को जांच कर स्वस्थ बताया। शनिचर बगल के गांववालों का गाय चराने के काम करता है। शनिचर ने बताया कि स्थायी काम नहीं है, ऐसे में कभी बांस का काम, कभी रस्सी बनाता है तो कभी मजदूरी करता है।