प्रकृति की उपासक रही भारतीय संस्कृति
संस निरसा आज पूरा विश्व ग्लोबल वाíमंग से परेशान है। विश्व के बड़े वैज्ञानिकों का मानना है
संस, निरसा : आज पूरा विश्व ग्लोबल वाíमंग से परेशान है। विश्व के बड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका समाधान भारतीय संस्कृति से ही संभव है। आज पूरे विश्व को अहसास हो रहा है कि भारतीय संस्कृति में पेड़- पौधे, नदी-नालों, पहाड़ व झरना की पूजा क्यों की जाती है। हमारी संस्कृति हमेशा से सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की रही है। हमारी संस्कृति कभी भी प्रकृति के विरुद्ध नहीं रही। अपनी संस्कृति एवं सभ्यता के बल पर ही भारत विश्वगुरु था तथा पूरे विश्व को जीवन जीने का संपूर्ण ज्ञान बांटता था। यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ धनबाद विभाग प्रचारक गोपाल शर्मा ने शुक्रवार को निरसा साहू धर्मशाला में संघ की गुरु दक्षिणा कार्यक्रम में कही।
स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आरएसएस में भगवा ध्वज को ही गुरु का स्थान दिया गया है। भगवा ध्वज का मतलब है सूर्य की लालिमा यानी अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला। हमारे देश में सन्यास की परंपरा रही है। उसी परंपरा का निर्वहन करते हुए संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता अपना घर परिवार त्याग कर सिर्फ राष्ट्रहित एवं समाज हित की सोचते हैं। गुरु पूजन भारतीय संस्कृति की परंपरा रही है इसलिए स्वयंसेवक भी गुरु पूíणमा पर ध्वज पूजन करते हैं।
विश्व को अपने ज्ञान से आलोकित करता था भारत
विभाग प्रचारक ने कहा कि विश्व के सभी देश भारत में आकर ज्ञान प्राप्त करते थे। नालंदा तक्षशिला विश्वविद्यालय उस समय ज्ञान विज्ञान के केंद्र हुआ करता था। इस कारण भारत को सोने का चिड़िया कहा जाता था। भारत पर आक्रमण से पहले सिकंदर जब अपने गुरु से आदेश लेने गया तो उसके गुरु ने कहा कि भारत को तुम जीत नहीं सकते हो। परंतु भारत से पांच चीज अवश्य प्राप्त करना एवं मेरे लिए भी लेते आना। गाय, गीता, गंगा, ज्ञान एवं गुरु। विश्व का सबसे ज्यादा आक्रमण झेलनेवाला अपना ही देश है। जब अंग्रेज यहां आए तो उन्होंने कहा कि जब तक यहां की शिक्षा पद्धति को ध्वस्त नहीं किया जाएगा, तब तक यहां पर शासन नहीं किया जा सकता है। इस मौके पर बिट्टू मिश्रा, अमरेंद्र मिश्रा, भूपेश भारती आदि थे।