स्वतंत्रता आंदोलन में आर्य समाज की रही अग्रणी भूमिका... क्रांतिकारियों में महर्षि दयानंद सरस्वती का था विशेष प्रभाव
देश की स्वतंत्रता में आर्य समाजियों की भूमिका अग्रणी रही है। स्वतंत्रता आंदोलन में आर्य वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी। राष्ट्र के संगठन के लिए जात-पात के झंझटों को मिटाकर एक धर्म एक भाषा और एक समान वेशभूषा तथा खानपान का प्रचार किया।
आशीष सिंह, धनबाद: देश की स्वतंत्रता में आर्य समाजियों की भूमिका अग्रणी रही है। स्वतंत्रता आंदोलन में आर्य वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी। राष्ट्र के संगठन के लिए जात-पात के झंझटों को मिटाकर एक धर्म, एक भाषा और एक समान वेशभूषा तथा खानपान का प्रचार किया। यह कहना है कि धनबाद निवासी राजार्य सभा के प्रदेश अध्यक्ष हरहर आर्य का। उन्होंने कहा कि हिंदी भारत राष्ट्र की राजभाषा बन चुकी है। किंतु पूर्व में जब हिंदी का कोई विशेष प्रचार न था, उस समय महर्षि दयानंद ने हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की घोषणा की। स्वयं गुजराती तथा संस्कृत के उद्भट विद्वान होते हुए भी उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश आदि ग्रंथों की हिंदी में रचना की थी। दीर्घकालीन दासता के कारण भारतवासी अपने प्राचीन गौरव को भूल गये थे, इसलिए महर्षि दयानंद ने उनके प्राचीन गौरव और वैभव का वास्तविक दर्शन करवाया। 1857 के पश्चात के क्रांतिकारियों पर महर्षि दयानंद सरस्वती का अत्यंत प्रभाव था। क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर, लाला हरदयाल, भाई परमानंद, सेनापति बापट, मदनलाल धींगरा इत्यादि जैसे शिष्यों ने स्वाधीनता आंदोलन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इंग्लैंड में भारत की स्वतंत्रता के लिए जितने प्रयास हुए वह श्याम जी कृष्ण वर्मा के इंडिया हाउस से हुए। अमेरिका में भारत की स्वाधीनता के लिए जो प्रयास हुए, वे भाई परमानंद के समर्पण और सहयोग का फल है। डीएवी कालेज लाहौर में इतिहास और राजनीति के प्रो जयचंद्र विद्यालंकार पंजाब के क्रांतिकारियों के मार्गदर्शक रहे हैं।
प्रसिद्ध क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह विशुद्ध आर्य समाजी थे और इनके पिता किशन सिंह भी आर्य समाजी थे। भगत सिंह के विचारों पर भी आर्य समाज के संस्कारों की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है। सांडर्स को मारकर भगत सिंह आदि पहले तो लाहौर के डीएवी कालेज में ठहरे, फिर योजनाबद्ध तरीके से कलकत्ता जाकर आर्य समाज में शरण ली और आते समय आर्य समाज के चपरासी तुलसीराम को अपनी थाली यह कहकर दे आए थे कि कोई देशभक्त आए तो उसको इसी में भोजन करवाना। दिल्ली में भगत सिंह, वीर अर्जुन कार्यालय में स्वामी श्रद्धानंद और पंडित इंद्रविद्या वाचस्पति के पास ठहरे थे। उस समय ऐसे लोगों को ठहराने का साहस केवल आर्य समाज के सदस्यों में ही था। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व लगभग सभी स्थानों में ऐसी स्थिति थी कि कांग्रेस के प्रमुख कार्यकर्ताओं को यदि कहीं आश्रय, भोजन, निवास आदि मिलता था, तो वह किसी आर्यसमाजी के घर में ही मिलता था।
आर्य समाज के गुरुकुल में आश्रय लेते थे क्रांतिकारी
आर्य समाज के गुरुकुलों में ही क्रांतिकारियों के छिपने का स्थान हुआ करता था। काकोरी कांड को अंजाम देने से पूर्व दो दिन पहले काकोरी कांड की योजना मुरादाबाद आर्य समाज में ही बनाई गई थी। इसमें चंद्रशेखर आजाद, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र लहरी आदि क्रांतिकारी उपस्थित थे। जिस कक्ष में लोग रुके थे, उस कक्ष का नाम आज शहीद भवन है। मंगल पांडे, नाना साहब, अजीमुल्लाह खां, तात्या टोपे, कुंवरसिंह, रानी लक्ष्मीबाई, वासुदेव बलवंत फड़के, श्यामजी कृष्णवर्मा, सूफी अंबा प्रसाद, लाला लाजपतराय, सरदार अजीत सिंह, सरदार स्वर्ण सिंह, सरदार किशन सिंह, ठाकुर केसरी सिंह बारहठ, दामोदर हरी चाफेकर, बाल कृष्ण हरी चाफेकर, भाई परमानंद, कन्हैयालाल दत्त, प्रफुल्ला चाकी, बाघा यतींद्रनाथ मुखर्जी, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्रबोस, अशफाकउल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लहरी आदि असंख्य क्रांतिवीर आर्य समाज के ही सिपाही थे। इन्होंने इस देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। अंग्रेजों के रिकार्ड के अनुसार बलिदानी आर्यों की संख्या सात लाख 32 हजार बताई जाती है अर्थात आर्य समाज के इतने क्रांतिकारी शहीद हुए तब जाकर यह देश आजाद हुआ था।