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अतीत के झरोखे से: प्रतिभा संपन्न धनबाद के पहले सांसद से आजीवन रूठी रहीं लक्ष्मी

अभी पिछले दिनों स्थानीय अखबारों में एक खबर छपी थी- 'पूर्व सासद की पुत्री का निधन।' मरने वाली कोई और नहीं, धनबाद के प्रथम सासद प्रभात चन्द्र बोस उपाख्य पीसी बोस की दूसरी कुंवारी बेटी 'मीरा' थी।

By JagranEdited By: Published: Sun, 13 May 2018 11:02 AM (IST)Updated: Sun, 13 May 2018 11:22 AM (IST)
अतीत के झरोखे से: प्रतिभा संपन्न धनबाद के पहले सांसद से आजीवन रूठी रहीं लक्ष्मी
अतीत के झरोखे से: प्रतिभा संपन्न धनबाद के पहले सांसद से आजीवन रूठी रहीं लक्ष्मी

प्रस्तुति : बनखण्डी मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार

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जागरण संवाददाता, धनबाद: अभी पिछले दिनों स्थानीय अखबारों में एक खबर छपी थी- 'पूर्व सासद की पुत्री का निधन।' मरने वाली कोई और नहीं, धनबाद के प्रथम (1952-57 ई.) और द्वितीय (1957-59 ई.) सासद प्रभात चन्द्र बोस उपाख्य पीसी बोस की दूसरी कुंवारी बेटी 'मीरा' थी। उनकी उम्र करीबन 80 वर्ष हो चुकी थी। गरीबी से जर्जर शरीर, उचित इलाज का अभाव। मीरा का निधन कोई आकस्मिक घटना नहीं मानी जा सकती थी। धनबाद के दो-दो बार सासद रहे उनके पिता के झरिया के आमलापाड़ा स्थित पुराने ढंग के छोटे से घर में शोक जताने वाले लोग नहीं जुटे। दरअसल, यह मृतका का कोई दुर्भाग्य नहीं था बल्कि उस घर की नियति यही थी। इंडियन माइनर्स एसोसिएशन एवं इंडियन माइन वर्कर्स फेडरेशन के अध्यक्ष, इंटक के उपाध्यक्ष, कोल माइंस वेलफेयर एंड एडवाइजरी बोर्ड, कोल परिवहन एडवाइजरी बोर्ड, माइंस रेस्क्यू स्टेशन, झरिया माइंस बोर्ड ऑफ हेल्थ समेत कई संस्थाओं के सदस्य रहे पीसी बोस के इस घर में फिलहाल उनकी एक 75 वर्षीया दूसरी कुंवारी पुत्री एवं 70 वर्षीय पुत्र सपरिवार रहते हैं।

मौजूदा दौर में राजनीति का एक छोटा-सा खिलाड़ी भी इतना धन-ऐश्वर्य जुटा लेता है कि कई पीढि़या समृद्ध रहती हैं। लेकिन दो-दो बार सासद रह चुके पीसी बोस की दो बेटिया अनब्याही रह गई। इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन की सभाओं में अपने भाषण से सबको मुग्ध करने वाले बोस से लक्ष्मी आजीवन रूठी रहीं। ईमानदारी, सादगी और शुचिता के आदर्श रहे प्रभात ने जीवन में प्रसिद्धि का बड़ा से बड़ा मुकाम पाया। लेकिन विवशता और गुरबत में वे इस तरह जकड़े रहे कि पिता का कर्तव्य पूरी तरह से नहीं निभा पाये।

सन 1890 ई. में बंगाल सरकार के एक मुलाजिम प्रियानाथ बोस झरिया राजा के यहा वन संबंधी मामलों की निगरानी करने के लिए आए थे। उनको राज परिवार ने उसी मुहल्ले में रहने की जगह दी जहा और कर्मचारी (आमला) लोग रहते थे और वही है आज का 'आमलापाड़ा'। इस क्षेत्र के निवासी बंगाल की संस्कृति का निर्वहन बखूबी करते हैं। प्रियानाथ बोस के यशस्वी पुत्र हुए प्रभातचन्द्र बोस।

प्रभात की पढ़ाई झरिया के राज स्कूल में हुई। उसी परिसर में बाद में राजा शिव प्रसाद कॉलेज बना। कॉलेज की पढ़ाई के लिए उनको बंगाल के बहरामपुर राज कॉलेज जाना पड़ा। उस कॉलेज की स्थापना दीघापाटिया इस्टेट के राजा ने की थी। वहा से केवल इंटर की परीक्षा पासकर वे पुन: झरिया लौट आये। इस वापसी के बाद वे जीविका के लिए 'स्पोर्ट्स टीचर' के रूप में झरिया राज स्कूल में नियुक्त हो गये। शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए उनके मन में खदान-मजदूरों के जीवन, परिवेश और आर्थिक स्थिति के अध्ययन की इच्छा जगी। तभी ऐसा एक संयोग हुआ कि विश्वानंद नामक एक युवा संन्यासी, भारत के महान समाज-सुधारक लाला लाजपत राय के प्रतिनिधि के रूप में झरिया पहुंचा था। विश्वानंद ने प्रभात को अपना मुरीद बनाया और उसे अपने परिचित राष्ट्रवादी सेठ रामजश के पास पहुंचाया। सेठजी प्रभात को प्यार भरा संबोधन 'खोखा' ही कहते थे। वहीं, खोखा अपने पड़ोसी सेठजी को अंग्रेजी व बाग्ला भाषा के समाचार-पत्रों को पढ़कर सुनाया करता था। स्वामी विश्वानंद ने अपने साथ प्रभात को रखकर विभिन्न खदान क्षेत्रों का दौरा करना चाहते थे और वहा भाषाई दुभाषिया के रूप में प्रभात का उपयोग करना चाहते थे। सेठजी ने दोनों की सहूलियत के लिए साइकिलें खरीद कर दी थी।

श्रमिक-जागरण की दिशा में, देश में एक संगठन एआइटीयूसी का गठन 1920 ई. में हुआ था और इसका पहला राष्ट्रीय सम्मेलन बंबई में आयोजित किया गया था। नये राजनीतिक उत्साह में प्रभात और स्वामी विश्वानंद एक साथ बंबई अधिवेशन में गये थे। झरिया कोयला क्षेत्र में कार्यरत मजदूरों की आर्थिक विपन्नता पर चर्चा बंबई वाले समारोह में भी हुई थी। प्रभात ने वहा उपस्थित देश के अन्य श्रमिक नेताओं से आग्रह किया कि वे झरिया पधारें और वहा के मजदूरों की स्थिति का जायजा लें। उनके इस प्रस्ताव पर सन् 1921 ई. में वह कार्यक्रम झरिया में संभव हुआ। लेकिन, दूसरी ओर ब्रिटिश सरकार ने यह फरमान जारी कर दिया था कि उस सम्मेलन में भाग लेने वाला कोई भी सदस्य नागरिक क्षेत्र में नहीं जायेगा, न मीटिंग करेगा, न जुलूस निकालेगा। उस फरमान में यह भी कहा गया था कि आदेश का उल्लंघन करने वाले न केवल मजदूर बल्कि आयोजकों को भी गिरफ्तार कर लिया जायेगा। इस नादिरशाही फरमान का मुकाबला स्वामी विश्वानंद और प्रभात बोस ने शानदार ढंग से किया था। सारी प्रबंधकीय व्यवस्था के सूत्रधार रहे सेठ रामजश। उन्होंने झरिया चार नंबर स्थित अपने विशाल परिसर की चहारदीवारी के अंदर यह सम्मेलन आयोजित करवाया। इससे अंग्रेजी सरकार के सारे मंसबूों पर पानी फिर गया। इस सम्मेलन में लाला लाजपत राय दीवान चमनलाल, जोसेफ बैपटिस्टा जैसे दिग्गज राष्ट्रीय मजदूर नेताओं ने भाग लिया था।

प्रभात धीरे-धीरे एक परिपक्व नेता का रूप-आचरण अपना चुके थे। उनकी यह उ‌र्ध्वगामी साधना का ही प्रतिफल था कि एटक के आठवें सम्मेलन का स्थल झरिया में 1928 ई. में राज मैदान में ही बना, जिसमें देश के बड़े श्रमिक नेता तो आये ही, काग्रेस के शीर्ष नेताओं में पंडित जवाहरलाल नेहरू और वीवी गिरि भी शामिल हुए। राजनीति-शास्त्र के पंडितों ने उल्लेख किया है कि पंडित मोतीलाल नेहरू की बड़ी इच्छा थी कि उनका 'जवाहर' श्रम-संबंधी मुद्दों से न केवल रूबरू हों, बल्कि पूरे भारत के इस विशाल वर्ग को नेतृत्व देने में भी समर्थ व परिपक्व बनें। सन् 1928 ई. में पंडित नेहरू की सोवियत रूस की यात्रा इसकी परिणति थी।

लेकिन इस बीच वैश्रि्वक प्रजातात्रिक सिद्धात का एक आश्चर्यजनक 'थिसिस' लंदन विश्वविद्यालय के एक विद्वान प्रोफेसर मिस्टर ब्राइस ने 'मॉडर्न डेमोक्रेसीज' के रूप में प्रकाशित किया। इस मोटे ग्रंथ के दो भाग हैं और उसमें विश्व की गरीबी और गणतात्रिक भावना का समुचित विवेचन हुआ है। उन्हीं दिनों ब्राइस महोदय ने भारत जैसे जागरूक और संघर्षशील देश के लिए ऐसा विवादास्पद 'सूत्र' निरूपित किया था, जो आज तक इस 'सुजलाम सुफलाम मलयज शीतलाम' उच्चरित करने वाले नागरिकों को चौंकाने के साथ-साथ स्तब्ध कर देता है। मिस्टर ब्राइस ने 1920 के दशक में यह कहा था-''मुमकिन है कि दक्षिण-एशिया के कुछ देश आजाद होंगे पर वहा की दो समस्याएं आजादी के लम्बे समय के बाद तक वहा बनी रहेगी- गरीबी और अशिक्षा।'' ब्राइस की यह भविष्यवाणी शायद पीसी बोस के जीवन पर अक्षरश: सही साबित हुई। देश की पहली लोकसभा से लेकर आजीवन सासद रहने वाले पीसी बोस के साथ-साथ उनका परिवार गरीबी और बेबसी का दैन्य उदाहरण बना रहा है।


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