कभी लालू ने छीन ली थी नौकरी, आज बने रंगमंच की दुनिया के बेताज बादशाह, पूरा परिवार देता साथ
जिस वशिष्ठ प्रसाद सिन्हा की नौकरी बिहार के मुख्यमंत्री रहने के दौरान लालू जी ने छीन ली थी आज वह रंग मंच की दुनिया का बेताज बादशाह हैं। इस कलाकार ने देश के अलग-अलग शहरों में अब तक 21 हजार से ज्यादा नाटक और नुक्कड़ नाटक पेश किया है।
जेएनएन, धनबाद/भूली: जिस वशिष्ठ प्रसाद सिन्हा की नौकरी बिहार के मुख्यमंत्री रहने के दौरान लालू जी ने छीन ली थी, आज वह रंग मंच की दुनिया का बेताज बादशाह हैं। रंगमंच को समर्पित इस कलाकार ने देश के अलग-अलग शहरों में अब तक 21 हजार से ज्यादा नाटक और नुक्कड़ नाटक पेश करने का रिकॉर्ड कायम किया है। उनकी पत्नी नूतन सिन्हा भी रंगमंच की अभिनेत्री हैं। पिता की विरासत संभालने के लिए बेटा और तीन बेटियां भी रंग मंच की दुनिया में दस्तक दे चुके हैं। यह कहानी है कला निकेतन के निदेशक भूली के नाटक कलाकार वशिष्ठ प्रसाद सिन्हा की।
बिहार के जहानाबाद में है अपना घर: बिहार के जहानाबाद में रहने वाले वशिष्ठ को बचपन से ही नाटक का शौक था। गांव में कई बार अभिनय का भी अवसर मिला था। मैट्रिक पास कर 1981 में उच्च शिक्षा के लिए भूली आ गए। गुरुनानक कॉलेज से इंटर, आरएसपी कॉलेज से बीए ऑनर्स और रांची यूनिवर्सिटी से एमए किया। फिर वाराणसी से साहित्याचार्य की शिक्षा पूरी की। फिर वापस भूली आकर सांस्कृतिक टीम तलाशने लगे। कोल माइंस की नाटक मंडली से जुड़ने का अवसर भी मिल गया।
इसी बीच गया के सेकेंड्री उच्च विद्यालय बौरी में 1993 में शिक्षक पद के लिए इनका चयन हुआ। जिस स्कूल में पढ़े थे, वहीं के शिक्षक बन गये। पर तात्कालिक मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने 1993 में साहित्याचार्य शिक्षकों की नौकरी को निरस्त कर दिया। इससे उनकी नौकरी छिन गई। उसी साल भूली वापस आ गए। भूली में सांस्कृतिक संस्था कला निकेतन की बुनियाद रखी। रंगमंच को समर्पित इस परिवार को गीत नाटक विभाग सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार तथा जनसंपर्क विभाग झारखंड सरकार में सूचीबद्ध कलाकार के रूप में चयन किया गया है। झारखंड सरकार कला संस्कृति विभाग झारखंड कला सम्मान से सम्मानित कर चुकी है। जयपुर, वृंदावन, मुंगेर,रांची, डेहरी समेत देश के कई शहरों में नाटक पेश चुके इस परिवार को राष्ट्रीय सम्मान भी मिल चुका है। पिता की विरासत को बेटी दिव्या सहाय, शैव्या सहाय और नित्या सहाय के साथ बेटा आकाश सहाय संभाल रहे हैं।
[नाटक में अभिनय करते वशिष्ठ सिन्हा के पुत्र आकाश और तीनों बेटियां दिव्या सहाय, शैव्या सहाय व नित्या सहाय]
पति बोले तुम्हें छोड़ दूंगा पर अभिनय नहीं तो पत्नी खुद बन गई अभिनेत्री: वशिष्ठ की पत्नी के रंगमंच की अभिनेत्री बनने का फसाना भी औरों से बिल्कुल जुदा है। एक रात वशिष्ठ नाटक का रिहर्सल कराकर घर आये तो अपनी पत्नी का रौद्र रूप देख कांप गये। कलह सातवें आसमान पर था। पास पड़ोस को भी पता चल गया। इतने अपमानित हुए कि लगा जैसे आत्महत्या कर लेना चाहिए। रात एक बजे चुके थे। गुस्सा शांत होने पर पत्नी ने प्रश्न किया, आप नाटक छोड़िएगा या हमें। कुछ देर पत्नी की ओर देखते रहे। फिर कहा, मैं तुम्हें छोड़ दूंगा पर नाटक नहीं। जवाब सुनकर पत्नी स्तब्ध रह गई। पति की भावना को समझ चुकी थी। कुछ दिनों बाद एकाएक ताज नगरी आगरा में वशिष्ठ को नाट्य प्रतियोगिता में जाना था। किराए के पैसे नहीं रहने से चेहरे पर मायूसी झलक रही थी। उनकी पत्नी ने चुपचाप गुल्लक लाकर फोड़े और सारे पैसे थमाकर बोली, घबराते क्यों हो, मैं हूं न। किराए का जुगाड़ तो गया। पर नाट्य प्रतियोगिता में अभिनेत्री की भूमिका भी अहम थी। परेशान पति को देखकर कहा, बस अब बहुत हुआ, मैं चलूंगी आपके साथ और निभाउंगी अभिनेत्री का किरदार। वशिष्ठ के परिवार के लिए पत्नी का वह फैसला टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। दोनों पति-पत्नी ने मिलकर जिंदगी का पहला नाटक सखाराम बाइंडर पेश किया। जिस नूतन को अभिनय की एबीसीडी नहीं आती थी, उन्होंने न सिर्फ अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ी, बल्कि लक्ष्मी के किरदार में सफल अभिनेत्री का अवार्ड भी हासिल किया।
इन प्रमुख नाटकों में दिखा चुके अभिनय का हुनर: सखाराम बाइंडर,सवासेर गेंहू, खतरे की घंटी, मिट्टी की गाड़ी, आधी हकीकत, सपना, नौटंकी में झमेला और मेरी मज़बूरी।