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Eid ul-Adha 2020: कुर्बानी के लिए 1.11 लाख में कोलकाता से वासेपुर आया अलबक्श, जानें खासियत

Eid ul-Adha 2020 कोलकाता से लाए गए बकरे का नाम अलबक्श है। यह पत्ते और गेहूं की जगह इंसानों की तरह ड्राई फ्रूट खाता है। इंसानों की तरह पलंग पर सोता है।

By MritunjayEdited By: Published: Thu, 23 Jul 2020 11:09 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jul 2020 08:28 AM (IST)
Eid ul-Adha 2020: कुर्बानी के लिए 1.11 लाख में कोलकाता से वासेपुर आया अलबक्श, जानें खासियत
Eid ul-Adha 2020: कुर्बानी के लिए 1.11 लाख में कोलकाता से वासेपुर आया अलबक्श, जानें खासियत

वासेपुर [ मो. शाहिद ]। Eid ul-Adha 2020 ईद उल अजहा को लेकर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में तैयारियां शुरू हो चुकी है। मुस्लिमों का एक अहम त्योहार बकरीद बस कुछ ही दिनों में आने वाला है। वासेपुर में अलग-अलग नस्ल के बकरों का बाजार लग रहा है। लोग कुर्बानी करने के लिए बकरे की खरीदारी कर रहे हैं। बकरा ईद को लेकर बाजारों में 10 हजार से लेकर एक लाख तक के बकरे उपलब्ध है।

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वासेपुर कमर मखदूमी रोड के रहने वाले समीर खान ने एक लाख 11 हजार का बकरा खरीदा है। कोलकाता से लाए गए बकरे का नाम अलबक्श है। यह पत्ते और गेहूं की जगह इंसानों की तरह ड्राई फ्रूट खाता है। इंसानों की तरह पलंग पर सोता है। समीर खान ने यह बकरा बकरा ईद के मौके पर कुर्बानी करने के लिए खरीदा है। इसी तरह से कुर्बानी को लेकर वासेपुर में जो भी लोग कुर्बानी के लिए बकरे खरीद रहे हैं उसके अलग-अलग तरह के नाम रखे जा रहे हैं। इस बाजार में सलमान, आमिर, शाहरुख सब बिक रहे हैं। अलबक्श के बाद सबसे अधिक बोली सलमान और उसके बाद शाहरुख की लगी है। दोनों ही 50 से 60 हजार में बिके।


ईद उल अजहा (बकरीद) मुसलमानों के मुख्य त्योहारों में से एक है। इस साल ईद उल अजहा का त्योहार चांद देखे जाने के बाद 31 जुलाई या एक अगस्त को मनाया जाएगा। इस साल की ईद थोड़ी अलग रहेगी वासेपुर मस्जिद ए आयशा के इमाम मौलाना मोहम्मद मुबारक हुसैन ने धनबाद के सभी मुसलमानों से और देश के मुसलमानों से अपील की है कि कोरोना संक्रमण का खतरा बना हुआ है, जिसकी वजह से ईद पर सभी एहतियाती कदम उठाने होंगे। कोरोना वायरस की मुश्किल के बीच कुर्बानी कानून के मुताबिक करें। उन्होंने कहा सभी मुसलमानों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि ईद पर शारीरिक दूरी का पूरी तरह से पालन हो और मास्क सैनिटाइजर का भी इस्तेमाल करते रहें। त्याग और बलिदान का ये पर्व ईद-उल-फितर यानी मीठी ईद के लगभग 2 महीने बाद आता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार यह त्योहार हर साल जिलहिज्ज के महीने में आता है। इस महीने हज किया जाता है। ईद-उल-अजहा का चांद जिस रोज नजर आता है। उसके 10वें दिन बकरीद मनाई जाती है।


ईद-उल-फितर के बाद इस्लाम धर्म का यह दूसरा प्रमुख त्योहार माना जाता है। इस्लाम में इस त्योहार को मुख्य रूप से कुर्बानी पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस त्योहार की शुरुआत हजरत इब्राहिम से हुई थी। ईद-उल-जुहा के मौके पर ह•ारत इब्राहिम अल्लाह के हुक्म पर अल्लाह के प्रति अपनी वफादारी दिखाने के लिए अपने बेटे हजरत इस्माइल को कुर्बान करने पर राजी हुए थे। ईद-उल-जुहा को ईद-ए-कुर्बानी भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन नियमों का पालन करते हुए कुर्बानी दी जाती है।


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