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Weekly News Roundup Dhanbad: अब ये भी लॉकडाउन से ऊब गए, सड़कों पर नहीं दिख रही सेवा

क्लीनिक बीमार। पढ़कर चौंक गए होंगे। बता दें यहां मरीजों को ठीक करने वाले क्लीनिक की नहीं पंडित क्लीनिक रोड की बात हो रही है। व्यवस्थागत खामियों ने इसका नाम खराब कर दिया है।

By MritunjayEdited By: Published: Tue, 26 May 2020 09:14 AM (IST)Updated: Tue, 26 May 2020 01:55 PM (IST)
Weekly News Roundup Dhanbad: अब ये भी लॉकडाउन से ऊब गए, सड़कों पर नहीं दिख रही सेवा
Weekly News Roundup Dhanbad: अब ये भी लॉकडाउन से ऊब गए, सड़कों पर नहीं दिख रही सेवा

धनबाद [आशीष सिंह ]। लॉकडाउन शुरू होने के साथ ही शहर सन्नाटे में चला गया। कुछ दिन बीते सड़कों पर रौनक दिखने लगी। ये थे सेवादार यानी जरूरतमंदों को भोजन कराना, राशन बांटना और पानी पिलाना। देखते ही देखते इनका हुजूम बढ़ता गया। कोई स्कूटी से तो कोई कार से खाने का पैकेट बांटने में लगा है। बढिय़ा काम कर रहे थे तो किसी ने रोका भी नहीं। लॉकडाउन-1 और दो में तो सबकुछ ठीक-ठाक चला। लॉकडाउन-तीन आते-आते संख्या घटने लगी। लॉकडाउन-4 में इनकी संख्या और भी कम हो गई। शहर की सड़कों पर अब कोई पानी पिलाते या भोजन का पैकेट बांटते नजर नहीं आ रहा। हां, यह जरूर है कि कुछ संस्थाएं जरूर हैं जो भोजन बनाकर बांट रही हैं। कुछ लोग राशन भी दे रहे हैं, लेकिन इन सबको अंगुलियों पर गिन सकते हैं। चेकपोस्ट पर तैनात पुलिसकर्मी तो पानी के लिए भी तरस जा रहे हैं।

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जल नहीं, लटक रही लाइट

एक व्यवस्थित मॉडल कॉलोनी की जरूरत है सड़क, नाली और बिजली। 14वें वित्त आयोग में करोड़ों रुपये खर्च किए गए। सड़क, नाली और स्ट्रीट लाइटों की व्यवस्था करनी थी। सड़क-नाली तो बन गई। बिजली अभी तक नहीं जल सकी। पोल खड़े हैं, एलईडी लाइट भी लगी है। बस यह जल नहीं रही। शहर की दर्जनभर मॉडल कॉलोनियों का यही हाल है। यहां के लोग शाम होते ही एक बार जरूर स्ट्रीट लाइट को देखकर व्यवस्था को कोसते हैं। यह कहने से भी गुरेज नहीं करते कि निगम को सिर्फ पैसा चाहिए। होल्डिंग लेना हो तो मुनादी जरूर कराएंगे। स्ट्रीट लाइट की कंप्लेन लिखकर देने पर फरियाद तक अनसुनी कर दी जाती है। आलम यह है कि पुरानी जल नहीं रही और नई लाइट लगाने की निविदा प्रक्रिया शुरू हो गई। कई जगह तो पार्षदों ने चुनावी रणनीति के तहत समानांतर लाइट तक लटका दी है।

बीमार है यह क्लीनिक

क्लीनिक बीमार। पढ़कर चौंक गए होंगे। बता दें, यहां मरीजों को ठीक करने वाले क्लीनिक की नहीं, पंडित क्लीनिक रोड की बात हो रही है। व्यवस्थागत खामियों ने इसका नाम खराब कर दिया है। बीमारी है कि ठीक होने का नाम नहीं ले रही। कई जतन किए गए। उबड़-खाबड़ सड़क, बजबजाती नालियां, जगह-जगह कचरे का ढेर है। अपार्टमेंट पर अपार्टमेंट बन गए। न तो पानी निकासी की समुचित व्यवस्था की गई और न ही कचरे का ढेर समेट पा रहे हैं। हर दिन इस रास्ते से बदबू के चलते मुंह ढक कर गुजरना पड़ता है। ऐसा नहीं कि यह कोई आम सड़क है। कई प्रसिद्ध चिकित्सक, अफसर, बिल्डर, मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने वाले अधिकारी इधर रहते हैं। कुछ अपार्टमेंट वाले तो सड़क पर ही कचरा फेंक रहे हैं। गंदा पानी भी पहुंच रहा है। निगम की गाड़ी गाहे-बगाहे कचरा साफ करने जरूर पहुंच जाती है।

खास से हो जाएंगे आम

एक माह के अंदर शहर के प्रथम नागरिक खास से आम हो जाएंगे। मेयर का कार्यकाल 17 जून को खत्म हो रहा है। कोरोना वायरस ने निगम का चुनाव भी स्थगित कर दिया है। अब अगले वर्ष चुनाव होने की संभावना है। ऐसे में मेयर की सारी शक्ति नगर आयुक्त को मिल जाएगी। वित्तीय अधिकार से लेकर परियोजनाओं का क्रियान्वयन तक उनके ही जिम्मे होगा। बेशक पांच वर्षों में क्षेत्र को संवारने की दिशा में काम दिखा। सड़क और नाली बनी, स्ट्रीट लाइट भी लगी। झारखंड की पहली आठ लेन सड़क भी बन रही है। मगर, अब भी कई कसक है।


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