लेमनग्रास की खेती कर धनबाद की एक हजार महिलाओं ने खोले समृद्धि के द्वार
अजय कुमार पांडेय धनबाद धनबाद में आर्थिक गतिविधियों का केंद्र आज भी कोयला उत्खनन है।
अजय कुमार पांडेय, धनबाद : धनबाद में आर्थिक गतिविधियों का केंद्र आज भी कोयला उत्खनन है। कालांतर से माओवादी गतिविधियों का एक मजबूत इलाका भी। इन सबके बीच हाल के दिनों में एक सुखद बदलाव आया है वह है इस इलाके के लोगों का रूझान खेती किसानी की ओर होना। जो आज उनके लिए आर्थिक उन्न्यन का महत्वपूर्ण जरिया बन कर सामने आया है। खासकर स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर महिलाओं को खेती बाड़ी करना।
इन ग्रामीण महिलाओं के पास जीने का एक अलग कारण है और वह है लेमनग्रास की खेती कर पैसा कमाते हुए अपने जीवन स्तर को और उठाना। कुछ ऐसा ही कर रही है जिला के पूर्वी इलाके के तीन प्रखंडों की करीब एक हजार महिलाएं जो कभी दाने दाने को तरसती थीं। आज वह महीने का करीब पांच से सात हजार रूपये की आमदनी घर ला रही हैं। जिससे वे ना केवल अपने परिवार को उचित आहार मुहैया करा पा रही, बल्कि अपने बच्चों को कहीं बेहतर शिक्षा भी दे पाने में सक्षम हो चली हैं।
इनकी सफलता के कायल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी हैं। जो इनके साहस को अपने मन की बात कार्यक्रम के जरिए सराह चुके हैं।
पूर्वी टूंडी के बड़बाद गांव की रहने वाली पिकी देवी बताती हैं कि उन्होंने एसएचजी से कर्ज लेकर 60 डिसमिल (एक डिसमिल बराबर 435.6 वर्ग फुट) जमीन पर लेमनग्रास की खेती 2020 में शुरू की। उन्होंने पहले कभी लेमनग्रास के बारे में नहीं सुना था, लेकिन जिला मुख्यालय से आए झारखंड राज्य आजीविका संवर्धन सोसाइटी के लोगों ने इसके बारे में बताया और इसकी खेती से जुड़ा प्रशिक्षण भी दिलवाया। इसके बाद इसकी खेती से हुई कमाई के बारे में जब अपने अनुभव दूसरी महिलाओं से बांटा तो वे भी इसके लिए तैयार हो गईं।
सुमति कहती हैं कि 2020 के जनवरी में लेमनग्रास की खेती में आने से पहले उन्होंने किसान सेवा केंद्र से प्रशिक्षण लिया था। लाकडाउन के बावजूद, उसने केवल 20,000 रुपये के खर्च के मुकाबले 1.10 लाख रुपये कमाए थे।
उसी समूह से जुड़ी दूसरी महिला गीता देवी बताती हैं कि 50 डिसमिल पर लेमनग्रास की खेती से 1.45 लाख रुपये कमाए हैं। जिससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति काफी हद तक सुधर गई है। अब अपने दोनों बच्चों को एक अच्छे स्कूल में दाखिला करा दिया है।
टुंडी प्रखंड के तेतराटांड गांव की महिला किसान सुकुरमुनी सोरेन ने बताया कि उन्हें क्षेत्र में सखी मंडल से जुड़ने के बाद लेमनग्रास की खेती के बारे में पता चला। 2020 के मार्च में वे समूह से जुड़ कर इसकी खेती करना शुरू की। इसकी खेती की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे पथरीले और बंजर भूमि पर भी उगा सकते हैं।
जबकि गोविदपुर प्रखंड के जयनगर गांव निवासी सुशांती देवी ने कहा कि वे जुलाई 2020 से लेमनग्रास की खेती कर रही हैं। अब तब करीब सवा लाख रुपये का लेमन ग्रास स्लिप (पत्तियों) की कटाई की है।
उन्होंने बताया कि एक बार लगाए जाने के बाद, कोई अगले पांच वर्षों तक साल में चार या पांच बार पत्तियों की कटाई कर सकता है।
जेएसएलपीएस की जिला प्रमुख रीता सिंह का कहना है कि इसके तेल की बाजार में काफी मांग है जबकि उत्पादन मांग से कम। इसलिए 1500-2000 रुपये प्रति लीटर पर बेचा जाता है। इसके तेल का उपयोग कास्मेटिक साबुन, सुगंधित तेल और दवा के अलावा विम जैसे डिटर्जेंट बनाने में होता है। जिससे अच्छी आमदनी हो जाती है। जबकि एक हेक्टेयर में इसकी खेती से हर साल चार लाख रुपये तक कमाया जा सकता है।