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Dhanbad: साहित्य के पुजारी उमेश चंद्र नील के जज्बे को सलाम... कविता लिखकर लोगों को बांट रहे पुस्तक

भगतडीह झरिया में रहने वाले 73 वर्षीय बुजुर्ग कवि साहित्य के पुजारी उमेश चंद्र नील के जज्बे को सलाम करने का जी चाहता है। उम्र के अंतिम पड़ाव में भी नील लगातार कविता का लेखन कर रहे हैं।

By Jagran NewsEdited By: Atul SinghPublished: Thu, 06 Oct 2022 09:36 AM (IST)Updated: Thu, 06 Oct 2022 06:39 PM (IST)
Dhanbad: साहित्य के पुजारी उमेश चंद्र नील के जज्बे को सलाम... कविता लिखकर लोगों को बांट रहे पुस्तक
आधुनिक युग में भी नील सादे कागज में कविता लेखन कर इसे एक पुस्तक का रूप देते हैं।

गोविन्द नाथ शर्मा, झरिया : भगतडीह झरिया में रहने वाले 73 वर्षीय बुजुर्ग कवि साहित्य के पुजारी उमेश चंद्र नील के जज्बे को सलाम करने का जी चाहता है। उम्र के अंतिम पड़ाव में भी नील लगातार कविता का लेखन कर रहे हैं। आज के इस आधुनिक युग में भी नील सादे कागज में कविता लेखन कर इसे एक पुस्तक का रूप देते हैं।माह में एक बार कविता रूपी पुस्तक को लेकर झरिया बाजार हमेशा पैदल आते हैं। पुस्तक में शहर के दर्जनों गणमान्य लोगों के नाम व पद से शुभकामना भी होता है। उन्हें पुस्तक देकर शुभकामना के बदले नील उनसे यथाशक्ति सहयोग राशि निसंकोच लेते हैं। इसी तरह इनका जीवन व्यतीत हो रहा है। हालांकि, अभी वे अपने पुत्र अंकित झा, बबलू झा के साथ ही रहते हैं। पुत्र उनका पूरा ख्याल रखते हैं। लेकिन युवा अवस्था में कविता लेखन के शौक को जीवन के अंतिम दिनों में नहीं छोड़ें हैं। कवि नील एक सौ वर्षों के बाद भी देश के प्रसिद्ध पत्रकार- लेखक गणेश शंकर विद्यार्थी की याद को ताजा कर रहे हैं।

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गोपाल सिंह नेपाली हैं नील के काव्य गुरु 

भागलपुर के सूड़ीहारी ननिहाल में 1948 को जन्मे उमेश चंद्र नील के काव्य गुरु गोपाल सिंह नेपाली हैं।

नील ने कहा कि मैट्रिक की परीक्षा रामपुरडीह उच्च विद्यालय और बीए

आरएनडीजे कॉलेज मुंगेर से किया है। मुंगेर के कॉलेज में कार्यक्रम के दौरान रामधारी सिंह दिनकर के साथ कविता पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। गोपाल सिंह नेपाली के लेखन से काफी प्रभावित हुए हैं। हिंदी, संस्कृत, और अंग्रेजी के जानकार कवि नील कहते हैं कि भागलपुर, मुंगेर, पटना, धनबाद, झरिया, सिंदरी आदि जगह पर हुए कवि सम्मेलनों में अपनी कविताएं पढी हैं।

1970 में नील आए झरिया, स्कूल में बने शिक्षक 

उमेश चंद्र नील का कहना है कि वर्ष 1970 में झरिया के घनुडीह मोहल्ले में आए। इसके बाद लगभग 50 वर्षों तक यहीं रहे। इस दौरान इंपीरियल स्कूल, नवयुग विद्यालय, गोदावरी विद्या निकेतन, नवोदय विद्यालय में 40 वर्षों तक निजी शिक्षक के रूप में कार्य किया। झरिया के सैकड़ों विद्यार्थियों को उनके घर जाकर ट्यूशन भी पढ़ाया।

धनबाद के पत्र-पत्रिकाओं में किया कविता का लेखन 

कवि नील ने कहा कि झरिया आने के बाद विद्यालयों में बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ धनबाद के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता लेखन का कार्य करता रहा। कविता लेखन के शौक के बारे में कहा की उच्च कक्षा में जाने के बाद ही कविता लेखन का शौक मन में जाग गया था। झरिया में रहते हुए कविता लेखन के साथ जल तरंग, मुर्गे की पाठशाला, शैवालिनी कविता संग्रह पुस्तक लिखी। नील ने कहा कि धार्मिक और सामाजिक कविता लेखन में मेरी काफी रुचि है।


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