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पिता की माैत के बाद वाट्सएप पर मुकेश दे रहा था सुसाइड संकेत, नहीं समझ पाया परिवार

मुकेश रिश्तेदारों को व्हाट्सएप पर दो दिन से मैसेज भेज रहा था। उसमें लिखा था कि पिता के बिना लोग कैसे रह जाते हैं। जिंदगी में पिता का होना जरूरी है।

By mritunjayEdited By: Published: Tue, 11 Jun 2019 11:26 AM (IST)Updated: Tue, 11 Jun 2019 11:26 AM (IST)
पिता की माैत के बाद वाट्सएप पर मुकेश दे रहा था सुसाइड संकेत, नहीं समझ पाया परिवार
पिता की माैत के बाद वाट्सएप पर मुकेश दे रहा था सुसाइड संकेत, नहीं समझ पाया परिवार

धनसार, जेएनएन। पिता की मौत के कारण तनाव में आकर खुदकशी करनेवाले गांधी रोड निवासी मुकेश अग्रवाल दो दिन पहले से सोशल मीडिया पर इसका संकेत दे रहा था। वह वाट्सएप और फेसबुक पर लगातार ऐसे मैसेज कर रहा था जिससे लग रहा था कि वह जिंदगी से नाउम्मीद हो चुका है। लेकिन कोई इसे समझ नहीं सका। परिजनों को ऐसी आशंका भी नहीं थी कि मुकेश आत्मघाती कदम उठा लेगा।

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भूली से आए मुकेश के परिजनों ने बताया कि पिता की मौत के बाद मुकेश काफी तनाव में था। वह रिश्तेदारों को व्हाट्सएप पर दो दिन से मैसेज भेज रहा था। उसमें लिखा था कि पिता के बिना लोग कैसे रह जाते हैं। जिंदगी में पिता का होना जरूरी है। पिता बिना जिंदगी अधूरी है। इस मैसेज से परिजन उसकी मंशा तो समझ नहीं पाए पर उसे दुख सहने के लिए ढांढ़स जरूर बंधा रहे थे। परिजनों को उम्मीद नहीं थी मुकेश ऐसा अप्रत्याशित कदम उठा लेगा। उसके फांसी लगाकर आत्महत्या करने की सूचना मिलते ही परिजन हतप्रभ रह गए। परिजनों का कहना है कि मुकेश को अपने पिता से काफी स्नेह व प्यार था। इसलिए उनकी मौत के सदमे को वह बर्दाश्त नहीं कर सका।

मुकेश ने आत्महत्या के पहले छह जून को अपने फेसबुक पर भी अपने पापा की मौत को लेकर पोस्ट किया था। फेसबुक पर उसने लिखा था कि पापा... मेरे पापा क्यों छोड़ कर चले गए। अनाथ हो गये हम। पापा याद आपकी आएगी, मुझको बड़ा सताएगी। उसने यह पोस्ट भी शेयर किया था जिसमें दर्ज था-खुद का अपमान कराकर जीने से अच्छा है मर जाना क्योंकि प्राणों के त्यागने से केवल एक बार ही कष्ट होता है पर अपमानित होकर जीवित रहने से आजीवन दुख होता है।

बेसुध हो गई मां, बिलखने लगी पत्नी, अवाक रह गए मासूमः दोपहर में पोस्टमार्टम के बाद मुकेश का शव उसके गांधी रोड स्थित आवास ले जाया गया। पत्नी संगीता देवी पति के शव को देखकर पछाड़ खाकर रोने लगी। बस उसकी जुबान से यही निकल रहा था कि- तुमने ऐसा क्यों किया? उठो तो। अभी बहुत कुछ करना है। पत्नी के आंसू थमने के नाम नहीं ले रहे थे। आसपास के रिश्तेदार संगीता को संभालने में जुटे थे। वहीं ढाई वर्षीय का पुत्र अक्षत भी अपने पिता के शव के पास बैठकर रोता रहा। मां द्रौपदी पांच दिन के अंदर पति और पुत्र की मौत से गहरे सदमे में थी। वह सुधबुध खोकर अपने पुत्र को आंसू भरी आंखों से निहार रही थी। यह देख आसपास के लोग भी अपने आंसू रोक नहीं पाए। मुकेश का अंतिम संस्कार गमगीन माहौल में परिजनों व मुहल्ले के लोगों ने बस्ताकोला गौशाला श्मशान घाट में किया। मुखाग्नि मृतक के पुत्र अक्षत ने दिया।

आर्थिक तंगी से भी था परेशान : मुकेश गांधी रोड हल्दी पट्टी में भाड़े के मकान में रहता था। उसके साथ पिता महावीर अग्रवाल, मां द्रौपदी देवी, पत्नी संगीता देवी, दो पुत्र अक्षत व अॢपत रहता था। अर्पित महज एक वर्ष का है। मुकेश के बड़े भाई संजय अग्रवाल जोड़ाफाटक कब्रिस्तान रोड में रहते हैं। मुकेश गोङ्क्षवदपुर की एक फैक्ट्री में काम करता था। पिता सहारा इंडिया के अभिकर्ता थे। बताते हैं कि आॢथक तंगी के कारण भी मुकेश हमेशा तनाव में रहता था। लेकिन पिता की मौत ने उसे अंदर तक झकझोर दिया था।

क्योंकि उम्मीदें कभी खत्म नहीं होती : मुकेश अग्रवाल ने अपने पिता की मौत के सदमे में स्वयं तो जान दे दी पर अपने मासूम बच्चों के बारे में नहीं सोचा। आखिर मुकेश की मौत से उनके सिर से भी तो बचपन में ही पिता का साया उठ गया। मुकेश की मौत पर परिजन इसी बात पर अफसोस जता रहे थे कि मुकेश को ऐसा आत्मघाती कदम नहीं उठाना चाहिए था। उसे सोचना चाहिए था कि खुदकशी समस्या का समाधान नहीं। उसकी मौत उसके परिजनों पर कितनी भारी पड़ेगी। उसे उम्मीद का दामन नहीं छोडऩा चाहिए था कि क्योंकि उम्मीदें कभी खत्म नहीं होती।

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